दरवाज़े पर एक Young Monk भिक्षा लेने के लिए खड़ा था. शरीर पर गेरुआ वस्त्र, घुटा हुआ सिर, दोनों कानों में बड़े–बड़े कुंडल और हाथ में खप्पर.
घर की मालकिन आवाज़ सुन कर दरवाज़े पर आईं तो Young Monk को देखकर अपनी आखों पर यकीन नहीं हुआ. जहां थी, वहां स्थिर हो गईं, मौन, मुंह खुला तो लेकिन शब्द नहीं फूटे.
आंखों से आंसुओं की धार बह निकली. जो सत्य साक्षात सामने खड़ा था उसे देखते हुए भी यकीन नहीं हो रहा था, या यकीन करने की हिम्मत नहीं थी शायद. लेकिन सत्य सनातन है, टाला नहीं जा सकता.

सत्य ही तो था वो, मां के सामने उनका बेटा Young Monk के भेष में था. कल तक कॉलेज से लौटकर आते इस हंसते- मुस्कुराते चेहरे को देखने की आदत थी और आज उनका नौजवान बेटा अजय सन्यासी रूप में खड़ा था.
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मां का मन कहता कि यह मेरा बेटा नहीं हो सकता, लेकिन दिमाग़ जानता था कि ईश्वर जितना कठोर हो सकता है उससे भी कहीं कठोर हृदय हो गया था उनका बेटा.
वही बेटा जो अपनी मां को बहुत प्यार तो करता था लेकिन इतना भी नहीं कि कह दे मां को, ये Young Monk उनका बेटा नहीं है. सत्य का अन्वेषण भावनाओं पर नियंत्रण की अपेक्षा रखता है.
ये मार्ग दुरुह है और इस मां के लाडले बेटे ने यही दुरुह मार्ग पकड़ लेने का निर्णय कर लिया था. उसे अपनी परवाह न रही थी, तो मां को कैसे गले लगाता. मां मन मसोस कर रह गई. भींचकर गले भी न लगा सकी, खुलकर रो भी न सकी.
बेटे ने स्थिर भाव से कहा, “मां भिक्षा दीजिए.”

भर्राए हुए गले से मां ने कहा, “बेटा ये क्या हाल बना रखा है? घर में ऐसी क्या कमी थी जो तू भीख मांग रहा है?”
“मां यह मेरा सन्यास धर्म है. योगी की भूख इसी भिक्षा से मिटती है. आप भिक्षा स्वरुप जो भी इस पात्र में देंगी, वही मेरे मनोरथ को पूरा करेगा.”
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“पहले तुम अंदर तो आओ!” युवा सन्यासी मां के आंसुओं से भी नहीं पिघला. बेटा ऐसा कठोर हो जाए तो मां पर क्या बीतती है. लेकिन इतना आसान नहीं समाज की रसधार को छोड़कर सन्यास की झाड़-झंखाड़ वाले कठोर रास्ते पर चलने का फ़ैसला. उससे भी कहीं मुश्किल है अपने बेटे को छोड़ देना, उसके बिना जीना.

योगी ने कहा, “नहीं मां! बिना भिक्षा लिए न तो मैं घर के अंदर आऊंगा और न ही यहां से वापस जाऊंगा. आप पहले मुझे भिक्षा दीजिए. मैं रमता जोगी हूं, आप मुझे भिक्षा दीजिए. फिर मैं प्रस्थान करूंगा.”
आंसुओं को छिपाती मां अंदर गई और जो समझ आया, उसने योगी के भिक्षापात्र में डाल दिया. भिक्षा लेते ही योगी आगे चल दिया. आवाज़ अब भी गूंज रही थी पहाड़ों के करीब पहुंचते बादलों तक. अलख निरंजन. सूरज बादलों में छिपने, पहाड़ के पीछे जाने की कोशिश करता दिखा. वैसे भी उसका उजाला बेमायने हो गया था मां के लिए.
नाथपंथ में मान्यता है कि सन्यास दीक्षा के बाद एक नाथ को अपनी मां, पत्नी, बहन आदि से भिक्षा ग्रहण करना ज़रूरी है. अपने परिवार से भिक्षा पाए बिना कोई नाथ सिद्ध नहीं बन सकता. अजय बिष्ट से योगी बने आदित्यनाथ ने उसी परंपरा का पालन करने के लिए गुरू से दीक्षा लेने के करीब दो साल बाद अपनी मां से भिक्षा ग्रहण की.
….. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर लिखी वरिष्ठ पत्रकार विजय त्रिवेदी (Vijai Trivedi) की पुस्तक ‘यदा यदा हि योगी’ (Yada Yada Hi Yogi) से यह अंश लिया गया है. यह पुस्तक हाल में ही प्रकाशित हुई है. उत्तर प्रदेश के महामहिम राज्यपाल आज लखनऊ में इस किताब का विमोचन करेंगे.

इस पुस्तक में योगी के उत्तराखंड की पहाड़ियो से निकलकर योगी बनने और उत्तर प्रदेश की राजसत्ता संभालने की पूरी कहानी का वर्णन किया गया है जिसमें योगी के व्यक्तित्व के विभिन्न पहलूओं का भी सुंदर चित्रण किया गया है. पुस्तक का प्रकाशन वेस्टलैंड ने किया है.
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