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मंजू, अहमदाबाद:

ड्राईंगरूम की सेन्टर टेबल पर फ्राईड काजू की प्लेट्स, पिस्ता बर्फी, गर्म गुलाबजामुन, गर्मागर्म समोसों से सजा था. बेहतरीन क्राकरी सेट में चाय की ट्रे को हाथों में लिए सपनों को बुनती हुई जब उसकी इंट्री हुई तो ठहाकों के बातचीत का शोर एक ही झटके में थम गया मानो, जैसे ही उसने नज़रें उठाई… हाथ से ट्रे गिरते-गिरते बची और वो नौजवान मुस्कराता हुआ चेहरा अचानक घबरा कर पीला जर्द हो गया …

वह बिना रुके तुरंत लौट गई. जैसे-तैसे रसोई में ट्रे को रखा और अपने कमरे तक पहुंच कर धड़ाम से गिर गई अपने बेड पर. आंखों से ज़्यादा मन गीला हो गया. तकलीफ से ज़्यादा गुस्सा आ रहा था और गुस्से से ज़्यादा महसूस हुई अपनी बेचारगी. ना रोना थम रहा था ना गुस्सा. भाभी दौड़ कर घबराती हुई आई कमरे में, क्या हुआ श्वेता?  मां पीछे से खिंच रही थी घबराई हुई, चिल्लाती सी ..पापा दरवाज़े से अंदर आने की हिम्मत नहीं कर रहे थे. शायद किसी को कुछ समझ नहीं आ रहा था .




वो लोग भी हड़बड़ा कर चले गए, उसने ही जल्दी की होगी. पापा बाहर तक छोड़ने भी नहीं जा पाए..समझ कुछ नहीं आ रहा था उसे कि वो अपने घरवालों को क्या कहेगी, कैसे बताएगी कि क्या हुआ था?

उस दिन कॉलेज में फेस्ट चल रहा था. शाम से शुरु हुआ कल्चरल प्रोग्राम रात-रात तक पूरे शबाब पर आ गया. पूरा ग्राउंड ही मानो डांस फ्लोर में बदल गया था. हर कोई नाच रहा था. सब पर मस्ती छाई थी. वह अपने काले स्कर्ट और सफेद स्लीवलेस टॉप में थी. लड़के ही नहीं लड़कियों की निगाहें भी बार बार उस पर जा अटकती. उसे तो शुरु से ही म्यूजिक का शौक रहा था इसलिए पापा ने देर तक रुकने की परमीशन भी दे दी थी.

वह अपनी फ्रेंड्स के साथ डांस कर रही थी कि उसे कुछ महसूस हुआ, लगा कि कोई छूने की कोशिश कर रहा है पीछे लड़कों का एक ग्रुप डांस करते करते करीब तक पहुंच गया था. फिर अचानक उसने उसे कस लिया. उसने झटके से अपने को छुड़ा लिया. मगर थोड़ी देर बाद जो हुआ उसने तो उसके होश उड़ा दिए, लेकिन उसकी बेशर्मी साफ दिख रही थी. उसकी नई काली स्कर्ट पर पीछे कुछ गीलापन सा महसूस हुआ. हाथ पीछे तक पहुंचे तो पूरा लिसलिसाहट अगुंलियों में फंस गई. सफेद छीटों ने स्कर्ट के साथ-साथ मानो उसे भी दागदार बना दिया. वो बेशर्म हंसी के साथ अपनी जींस की जिप को बंद करने की कोशिश में लगा था.




 

एक पल को समझ ही नहीं आया कि क्या हुआ? उसके सीमन के छीटों से भर सी गई थी स्कर्ट. वह झपटी उस पर, लेकिन भीड़ का फायदा उठाते हुए वो दोस्तों के साथ भागने में कामयाब हो गया. उसका चेहरा उसकी आंखों में ही नहीं दिलो-दिमाग में घर कर गया. पागल सी हुई वह दौड़ी. अपनी सहेली को साथ घसीट कर उसके हॉस्टल के रूम तक ले गई और उसकी ड्रेस लेकर चेंज किया. समझ नहीं आ रहा था इस बहशीपन की शिकायत वह किससे करे, कहां करे, क्या कहे, कौन मानेगा उसकी बात और वो क्या कहेगी?




रात भर नहीं कई दिन तक वो सो नहीं पाई थी लगा कि उसने नंगा कर दिया है, बलात्कार किया है उसके साथ. वो चेहरा कॉलेज का नहीं था, लेकिन उसे ऐसे लगने लगा कि वो अगले जन्म तक उसकी तलाश करेगी ..लेकिन वो ही तो था यह चेहरा. उस दिन वो झपट सकती थी एक पल में, उसका चेहरा नोंच लेती, तार-तार कर देती उसकी शराफत को, पर घबरा गई वो. क्या यह बहशी हो सकता है उसका पति, उसका जीवनसाथी. उसका ही क्यों वो आदमी कैसे किसी का भी पति हो सकता है? मेरा नहीं किसी का भी पति नहीं, ऐसे वहशी को किसी का भी साथी नहीं बनना चाहिए, किसी का भी नहीं. फिर से पागलपन सवार होने लगा था उस पर.

सोचने लगी कि आज फिर क्यूं छोड़ दिया उसने उसे, क्यों जाने दिया, क्यों नहीं सबके सामने उसकी शराफत को नंगा कर दिया. उसे चिंता इस बात की हो रही थी  जिसकी वजह से वह उस मर्द को अपना बनाने के नाम से घबरा गई थी.. वो “शरीफ” मर्द चला गया था किसी और का मर्द बनने के लिए .

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