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राजेन्द्र बंधु:

मध्यप्रदेश के छतरपुर जिले के झिरिया गांव की पूनमबाई, कल्लोबाई और अन्य महिलाएं अब गांव के हैण्डपंप खराब होने पर मैकेनिक के आने का रास्ता नहीं देखतीं. अब वे खुद ही हैण्डपंप दुरस्त कर पानी की समस्या का हल निकाल लेती है. मध्यप्रदेश सरकार ने पेयजल समस्या के समाधान के लिए बड़े पैमाने पर हैण्डपंप तो लगा दिए गए लेकिन उनके मेन्टेनेंस और रिपेयर की पुख्ता व्यवस्था नहीं होने से पानी की समस्या बनी ही रहती थी क्योंकि अक्सर ये हैंडपंप खराब हो जाते.

बुंदेलखण्ड क्षेत्र की दो खास समस्या रही है, एक सूखा और दूसरी सामंतशाही. सूखे ने जहां लोगों की रोजमर्रा की जिंदगी और उनकी आजीविका को प्रभावित किया है, वहीं सामंतशाही ने समाज के वंचित तबकों और महिलाओं को उनके अधिकारों वंचित रखा. इस संकटग्रस्त परिस्थिति का सामना करने का साहस अब करीब दो हजार की आबादी वाले झिरिया गांव की महिलाओं ने दिखाया है.

आज वे पिंचिस, प्लायर और पेंचकस जैसे औजारों से सूखे और सामंतशाही दोनों को चुनौती दे रही है. पेयजल की समस्या से जूझने वाले इस गांव में आज दस महिलाएं ऐसी हैं जो हैण्डपंप मैकेनिक का काम कर रही है.

पारंपरिक समाज में महिलाओं को मैकेनिकल कामों से अलग रखा गया है. चाहे हैण्डपंप रिपेयर हो या बिजली सुधारने का काम. इन कामों को ज्यादा ताकत वाला और तकनीकी माना जाता है. झिरिया गांव की महिलाओं ने हैण्डपंप सुधारने के औजार अपने हाथों में लेकर समाज की इस धारणा को झूठा साबित किया है. इन महिलाओं को हैंडपंप सुधारने का प्रशिक्षण यहां सक्रिय संस्था परमार्थ सेवा समिति ने दिया है. संस्था ने ही इन्हें औजार भी मुहैया कराए हैं.

यहां पानी की समस्या सबसे ज्यादा गंभीर थी. बार-बार खराब होते हैण्डपंपों को सुधारने के लिए सरकार की कोई व्यवस्था काम नहीं कर रही थी. मैकेनिक के आने तक कई-कई दिनों का इंतजार करना पड़ता था. ऐसे में पानी के लिए महिलाओं को दो किलोमीटर दूर जाना पड़ता था. इस समस्या से उबरने के लिए महिलाओं ने खुद ही गांव के खराब हैण्डपंप सुधारने का बीड़ा उठा लिया है.

पंचायत सचिव सीमा विश्वकर्मा कहती है कि ‘‘जब पहली बार महिलाएं हैण्डपंप सुधारने के औजार लेकर घर से बाहर निकली तो पूरा गांव हैरान था. कई लोगों ने ताने मारे – लुगाईयां चली हैण्डपपं सुधारने.’’ लोग समझ रहे थे कि हैण्डपंप सुधारने के भारी औजारों का उपयोग करना तो दूर महिलाएं ठीक से उन्हें उठा भी नहीं पाएगी, लेकिन जब पुनियाबाई ने महीनों से बंद पड़े हैण्डपंप को एक घंटे में सुधार दिया तो ताने मारने वाले नजरें बचा कर दूर जाने लगे.

पुनियाबाई और उनकी साथी महिलाओं ने औजारों की मदद से नलकूप से हैण्डपंप की डेढ़ सौ फीट लम्बी पाईप लाईन को बाहर निकाला. उन्होंने देखा कि पाईप लाईन के सबसे नीचे पाए जाने वाले सिलेण्डर में बायसर नामक पार्टस टूट गया है, जिससे हैण्डपंप पानी नहीं दे पा रहा था. उन्होंने वायसर बदला और घंटे भर में पाईप लाईन को वापस नलकूप में डालकर हैण्डपंप चालू कर दिया. 

महिलाओं के इस समूह ने पूरे क्षेत्र में एक हलचल पैदा कर दी और लोगों के मन में बसी उस पारंपरिक धारणा को झकझोर दिया, जिसमें मैकेनिकल कामों पर सिर्फ पुरूषों का वर्चस्व माना गया है. कल्लोबाई बताती है कि हैण्डपंप सुधारने के औजार हमारे लिए सिर्फ हैण्डपंप तक सीमित नहीं है, बल्कि हम उसे बदलाव का हथियार मानती हैं. इससे हमारे और हमारे परिवार की सोच में भी बड़ा अंतर आया है. बचपन से लेकर बुढ़ापे तक महिलाओं को जिन औजारों को छूने से रोका गया, आज हम उनका ही उपयोग कर गांव की पानी की समस्या हल कर रहे हैं.  

हैण्डपंप सुधारने वाली महिलाओं का यह समूह सिर्फ अपने गांव तक ही सीमित नहीं है, बल्कि अब आसपास के गांवों के लोग भी उन्हें हैण्डपंप सुधारने के लिए बुलाते हैं. ये अब तक पांच गांवों में पच्चीस से अधिक हैण्डपंप सुधार चुकी है.

 

 

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