श्रुति गौतम :
अब वह अधेड़ उम्र का आदमी यहां नहीं रहता. उस दिन अपनी खिड़की से झांककर देखा तो उसके कमरे पर ताला था. कमरे से निकलते ही उसकी निगाहों से बचने के लिए एक बार खिड़की से बाहर जरूर देखती थी . पर आज देर शाम तक भी वो कहीं नजर नहीं आया. जानकारी मिली कि अब वो यहां नहीं रहेगा. ये सुनते ही मेरा चेहरा फूल सा खिल गया. मैं भागती हुई फ्लैट के अंदर गई और सबको यह खुशख़बरी सुनाई . सबको एक अजीब सी Freedom महसूस हुई.
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दरअसल रात को बाहर निकलने पर पाबंदी की आदत थी लेकिन यहां तो दिन में भी अपने कमरे से बाहर निकलना मुश्किल था. उसकी नजरें किसी कैमरे की तरह हरवक्त हमारा पीछा करती. अगर हम न दिखे तो हमारे सूखते कपड़ों को देख कर संतुष्ट हो लेता. अब तो हम बालकनी में कपड़े सुखाने से लेकर किस तरह के कपडे पहनें इस पर भी सोचने लगे थे .
शुरुआत में अपने दादा की उम्र सा वह आदमी मुझे बुढ़ापे का मारा लगता था . लेकिन उसके भीतर के जानवर को उस दिन पहचाना जब रात के अंधेरे में कुछ हरकत सी हुई. अब तक मुझे लगता था कि वह बस देखता भर है पर उस दिन पता चला वह हमें सोचता भी है. उसने खुद की संतुष्टि के लिए अपनी पोती जितनी उम्र की लड़कियों तक को न बक्शा. मैंने जाकर सबको बताया कि कुछ गड़बड़ है तो अफसोसजनक जबाब मिला कि वो अक्सर ऐसी हरकतें करता रहता है .
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चूंकि कॉलोनी तथाकथित इज्ज़तदार लोगों की थी इसलिए किसी से कुछ कहा नहीं जा सकता था. अक्सर यह शब्द “इज्ज़तदार” भी महिलाओं के प्रति जुर्म थमने नहीं देता. इस जूर्म का कोई प्रमाण नहीं होने के कारण हम सब चुपचाप इसे सहने को वाध्य थे . जब वह चला गया तब सुकून सा मिला था, पर ये क्या रात को जब हम बालकनी में आए तो देखा घर के सामने एक लडकों का गुट सीटियां बजा रहा है. नए-नए थे वे लड़के वहां. उस दिन पता चल गया कि ये सिलसिला थमने वाला नहीं . स्थिति आज भी वही है बस हम सब थोड़े ढीठ हो गए हैं .
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