CRITICISM को अपनी गांठ में इस तरह बांध लें कि उसे प्रशंसा में बदल दें

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Criticism
Train yourself to accept criticism and convert into praise

अंशुमन आनंद:

उत्तम भक्त किसे कहते हैं? उत्तम भक्त वही है जो प्रशंसा को प्रभु चरणों में समर्पित कर दे और Criticism को अपनी गांठ में इस प्रण के साथ रख ले कि इस निंदा को प्रशंसा में अवश्य बदलूंगा और भगवान को भेंट चढ़ाऊंगा.

भगवान श्रीराम ने भरतजी की प्रशंसा की तो उन्होंने कहा- प्रशंसा तो आपकी होनी चाहिए क्योंकि मुझे आपकी छत्रछाया मिली. आप स्वभाव से किसी में दोष देखते ही नहीं, इसलिए मेरे गुण आपको दिखते हैं.




श्रीरामजी ने कहा- चलो मान लिया कि मुझे दोष देखना नहीं आता, पर गुण देखना तो आता है? इसलिए कहता हूं कि तुम गुणों का अक्षय कोष हो.

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भरतजी बोले- यदि तोता बहुत बढ़िया श्लोक पढ़ने लगे और बन्दर बहुत सुन्दर नाचने लगे तो यह बन्दर या तोते की विशेषता है अथवा पढ़ाने और नचानेवाले की?

भगवान ने कहा- पढ़ाने और नचानेवाले की. भरतजी बोले- मैं उसी तोते और बन्दर की तरह हूं. यदि मुझमें कोई विशेषता दिखाई देती है तो पढ़ाने और नचानेवाले तो आप ही हैं, इसलिए यह प्रशंसा आपको ही अर्पित है.




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भगवान ने कहा- भरत तुमने तो प्रशंसा लौटा दी. भरतजी बोले- प्रभु, प्रशंसा पचा लेना सबके वश का नहीं. यह अजीर्ण पैदा कर देता है लेकिन आप इस प्रशंसा को पचाने में बड़े निपुण हैं.




अनादिकाल से भक्त आपकी स्तुति कर रहे हैं, पर आपको तो कभी अहंकार हुआ ही नहीं. इसलिए यह प्रशंसा आपके चरण कमलों में अर्पित है.

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