SRI LANKA के अशोक वाटिका में लगा मानो सीता के युग में पहुंच गए

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Sri lanka
अशोक वाटिका में लेखिका गीताश्री

गीताश्री:

वरिष्ठ पत्रकार और लेखिका:

सालों साल तक यह सवाल कचोटता रहेगा कि मैंने हॉलीडे के लिए Sri lanka जैसे अनगढ और असुविधाजनक द्वीप का चयन क्यों किया? वह न बहुत विकसित द्वीप है न थाईलैंड की तरह चमचमाता हुआ अत्याधुनिक देश.लेकिन समदंर के भीतर घुस कर, रेत मिट्टी से उसे पाट कर जिस तरह ऊंची इमारतें वहां बन रही हैं, जल्दी ही वह आधुनिक देशों में शामिल हो जाएगा. लेकिन इमारतें, मनुष्यों का स्वभाव नहीं बदलतीं. यह भोला भाला द्वीप अपनी मासूमियत बचाए रखेगा.

हिंद महासागर में आंसू की एक बूंद की तरह दिखाई देने वाले इस देश की महत्ता मेरे लिए क्या थी? कई बार जवाब वहां पहुंच कर मिलता है. जब मैं Sri lanka की राजधानी कोलंबो से 250 किमी की दूरी पर स्थित हिल स्टेशन नुवारालिया के उस पहाड़ पर खड़ी थी जिसे आज भी अशोक वाटिका कहते हैं.

व्यस्त, पक्की पहाड़ी सड़क से सटा हुआ है सीता मंदिर और ठीक उसके पीछे बहता झरना, जाने कहां से आता है और कहां पहाड़ों में खो जाता है? इसे कहते हैं, सदानीरा झरना. ऐसा कहते हैं कि यह सीता की यादों से जुड़ा झरना है. कहते हैं- अशोक वाटिका में ग्यारह महीने के प्रवास के दौरान सीता इसी झरने से बने जलकुंड में नहाती थीं.

मंदिर के पीछे झरना और ऊंची पहाड़ी है. जलकुंड के पास चट्टानों पर पैरों के गहरे धंसे हुए निशान से हैं. इसे हनुमान के पैरों का निशान बताते हैं. उन्हें लाल पीले निशान से घेर दिया गया है. वहीं एक खंबे पर मूर्ति है सीता की. अशोक वृक्ष के नीचे चबूतरे पर बैठी हुई सीता और उनके पैरों के पास हाथ जोड़े घुटने के बल बैठे हनुमान.

मंदिर और पहाड़ी के बीच पुल बना हैं, जिसके नीचे झरना बहता है अविरल. भारतीय पर्यटक पुल से गुज़रते हुए सीता हनुमान की मूर्ति तक पहुंचते हैं. झरने का पानी चखते हैं, माथे से लगाते हैं और कुछ देर अपलक पैरों के निशान को देखते हैं. फिर अशोक वाटिका की तरफ जो अब सिर्फ जंगल है.




काल सबको नष्ट कर देता है, सिर्फ स्मृति बची रहती है. मंदिर में प्रवेश करने से पहले बाहर कई बंदर उछलते कूदते मिले. हमारे श्रीलंकन युवा गाइड समीर ने बताया- डरना मत, यहां के बंदर तंग नहीं करते. कुछ भी नहीं करते. आप जाओ, बेधड़क…समीर ने ही बताया कि ग़ौर से बंदरों को देखिए. इनकी पूंछ काली है. शायद हनुमान अपनी प्रजाति यहां छोड़ गए होंगे. मैंने आश्चर्य से देखा- पूंछें सबकी बहुत लंबी और काली.

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समीर ने अपनी टूटी फूटी हिंदी में बताया- हनुमान जी ने लंका जलाया था न, बैठे बैठे पूंछ लंबी करके सब जला दिया था. पूंछ में आग लगी थी, थोड़ी झुलस गई होगी. इसलिए इधर के बंदरों की पूंछ काली है. कहीं और ऐसे बंदर नहीं होते.
यूं तो समीर रावण के नाम पर बहुत झेंपता था और रामायण से संबंधित बात करने में बहुत दिलचस्पी नहीं दिखाता था. उसे जानकारी थी, मगर उसके भीतर झेंप थी.




“रावण ने गंदा काम किया था, सीता को उठा लाया था, विभीषण अच्छा…हमलोग उसे पूजते हैं…!”

समीर जानकारी दे न दे, हम बहुत रिसर्च करके आए थे. शायद इस यात्रा में कहीं सीता मेरी चेतना में दर्ज थी. सीता मेरे मिथिला लोक की बेटी थी और उसका दुख बहुत कसकता है मेरे भीतर. समूची मिथिला के भीतर. हम उसका दुख लोकगीतो में गाते चले आ रहे हैं सदियों से. वो कसक थी जो यहां खींच लाई थी.

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अशोक वाटिका के सारे प्रसंग याद आ गए जो मैने रामचरितमानस मानस में पढा था. त्रिजटा नाम की राक्षसी याद आई जो सीता के साथ बहुत अच्छा सलूक करती थी.
“त्रिजटा नामक राक्षसी एका ।
राम चरन रति निपुन बिबेका।।”




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यही त्रिजटा थी जिसने विरह में व्याकुल सीता को ढांढस बंधाते हुए अपना सपना सुनाया था-
‘सपने बानर लंका जारी । जातुधान सेना सब मारि ।।
खर आरुढ नगन दससीसा। मुंडित सिर खंडित भुज सीसा’ ।।

त्रिजटा ने कहा कि मैंने सपना देखा है, एक बंदर ने लंका जला दी है, राक्षसों की सारी सेना मार दी गई है, रावण नंगा है और गदहे पर सवार है. उसके सिर मुंड़े हुए हैं , बीसों भुजाएं कटी हुई हैं.

मैं पुराणों में वर्णित उस जगह पर खड़ी थी, युगों से पार जाती हुई. हम सिर्फ जगहों की यात्रा नहीं करते, काल की भी यात्रा करते हैं. मैं कई काल खंडों को पार करती हुई त्रेता युग में प्रवेश कर चुकी थी. सामने पहाड़ी पर काली और सफेद मिट्टी दिखाई दे रही थी. कहते हैं- लंका जलने के निशान हैं. कुछ निशानियां इसीलिए बची रह जाती हैं कि वे युगों तक आगाह करती रहें.

मेरे लिए सीता एक भाव है… मेरे भीतर सहमी हुई , युगों से दुखो को सहती हुई एक स्वाभिमानी स्त्री, मेरे लोक की बेटी. सीता कुंड में झांकती हुई मैं उन ग्यारह महीने के प्रवास के बारे में सोच रही थी. पहाड़ियों पर धूप चमक रही थी. हल्की गरमी लगी, मैंने सीता के बारे में सोचा कि कैसे ग्यारह महीने बदलते मौसमों का सामना किया होगा. इस खुले में, निर्जन पहाड़ी पर, भयानक स्त्रियों से घिरी हुई.

स्त्री की क़ैद युगों से चली आ रही है.

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