प्रतिभा ज्योति:
सरकार भले ही हर घर में शौचालय बनाने के अपने मिशन में अभी तक पूरी तरह सफल बेशक नहीं हुई हो लेकिन सिनेमा के जरिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के इस स्वच्छता मिशन को एक बड़ा सहारा मिल सकता है. एक सच्ची घटना पर आधारित ‘टॉयलेट एक प्रेम कथा’ फिल्म बना कर प्रोड्यूसर ने एक गंभीर समस्या को समाज के सामने रख दिया है . अक्षय कुमार की आने वाली यह फ़िल्म रिलीज तो पन्द्रह अगस्त पर होगी.
अभिनेता अक्षय कुमार ने फ़िल्म और इस मुद्दे को लेकर प्रधानमंत्री से भी मुलाकात भी कर ली है. एक्सपर्ट मानते हैं कि हो सकता है कि वे इस फ़िल्म के बहाने में राजनीति के गलियारों में आने के रास्ते भी टटोल रहें हों क्योंकि यह विषय प्रधानमंत्री की प्राथमिकता वाला है .
अक्षय कुमार इस फिल्म में केंद्र सरकार की मुहिम ‘स्वच्छ भारत अभियान’ को बढ़ावा दे रहे हैं. फिल्म के जरिए एक जरूरी मुद्दा उठाया गया है जो अरसे से महिलाओं के लिए खास तौर पर गांव की महिलाओं के लिए तकलीफदेह है. यूं तो सरकार अब तक करोड़ों घरों में शौचालय बनवा चुकी है लेकिन करोड़ों लोग अब भी खुले में शौच जाने को मजबूर हैं. जिससे सबसे ज्यादा परेशानी महिलाओं को होती है. शर्म और संकोच से शौच जाती महिलाओं को ये परेशानी कई तरह की बीमारियां देती है.
फ़िल्म में अक्षय कुमार का डायलॉग–अब बीवी पास चाहिए, तो संडास चाहिए, इस अभियान को पॉपुलर बनाने में मदद कर सकता है. इस फ़िल्म की टैगलाइन है-एक प्यार जो बदल गया क्रांति में.
फिल्म के ट्रेलर में शादी के अगले दिन जब नई दुल्हन (भूमि पेडनेकर) से सुबह चार बजे लोटा पार्टी यानी शौच के लिए जाने को कहा जाता है तो उनके चेहरे की शिकन में हमें महिलाओं की तकलीफ समझ आती है. कहा जा रहा है कि यह फिल्म यूपी की प्रियंका भारती की सच्ची कहानी पर आधारित है. यूपी के महाराजगंज जिले के कुइयां कंचनपुर गांव की प्रियंका ने शादी के अगले दिन अपना ससुराल इसलिए छोड़ दिया क्योंकि वहां टॉयलेट नहीं था.
एक इंटरव्यू में प्रियंका ने बताया कि शादी के अगले दिन जब उनकी सास खेतों में लेकर गई, तो मेरे एक हाथ में लोटा था और एक हाथ से मैं घूंघट संभाल रही थी. सारे लोग मुझे देख रहे थे और मुझे बहुत शर्म आ रही थी और ये हर गांव के हर घर की कहानी है. आखिर प्रियंका की जिद से उनके ससुराल में भी शौचालय बनाया गया.
स्वच्छता अभियान पर ज़ोर देती इस फ़िल्म की सफलता बॉक्स आफिस के कलेक्शन से नहीं बल्कि देश के हर गांव में टॉयलेट बनाने के अभियान की शुरुआत से आंकी जानी चाहिए. वाकई ये मुद्दा छोटा नहीं है और ना ही हंसकर टालने का. औरतों के लिए तरह-तरह के अभियान चलाने से पहले ज़रुरत है इस अभियान की क्योंकि ये उनके स्वास्थय और गरिमा दोनों से जुड़ा हुआ है.
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