ये अपनी-अपनी सहूलियत की कैसी LIFE थी?

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डॉक्टर के क्लीनिक के बाथरुम से जब वो निकली तो उसके चेहरे का रंग उड़ा हुआ था. बात समझते मुझे देर नहीं लगी. मुझे चक्कर आने लगा था. दोनों ने ये क्या किया मेरे साथ? मैं अपने होश में नहीं थी. मां ने मुझे संभाला, कहा बेटी दिमाग को शांत करो. इस समस्या के समाधान के बारे में सोचो.




मैं क्या सोचती, मेरे तो हाथ-पैर ठंढ़े पड़ गए थे. मुझे अपना भविष्य अंधकारमय लगने लगा था. अब तक मैं तीन बेटियों की मां बन चुकी थी. सब कहते थे, एक बेटा हो जाता तो राजीव की किस्मत खुल जाती, लेकिन मेरी किस्मत को कुछ और मंजूर था.




राजीव मेरे पति शादी के कुछ सालों तक मुझे बहुत प्यार करते थे. मैं दो बेटियों की मां बन गई तब तक. तीसरी बार जब प्रिग्नेंट हुई तो कहा इस बार बेटा होना चाहिए, मुझे बेटा ही चाहिए. उनका यह रुप देखकर मैं पहली बार आसमान से गिरी थी. भगवान से प्रार्थना करती इस बार बेटा दे दो, लेकिन नसीब के आगे किसकी चली है.




तीसरी बार भी बेटी हुई तो राजीव का मुंह फूल गया. उन्होंने कई दिनों तक मुझसे बात नहीं की. राजीव की उपेक्षा से मैं बीमार औऱ उदास रहने लगी. तीन बेटियों की देखभाल के कारण मेरा हेल्थ रोज गिरता जा रहा था. ससुराल में कोई भी नहीं था, सिवाय एक बूढ़ी चाची के. चाची ने कहा कि मैं अपनी देखभाल के लिए मायके से किसी को बुला लूं.

मैंने रागिनी को बुलावा भेजा. रागिनी मेरे चाचा की बेटी थी. उसके मां-बाप की एक एक्सीडेंट में मौत हो गई थी. वह हमारे घर ही पली-बढ़ी. पापा ने अपने छोटे भाई की निशानी को गले से लगाकर रखा और हम चारों बहनों ने भी उसे अपनी बहन सा प्यार दिया. रागिनी घर आ गई थी. उसके आने से घर में रौनक हो गई, बेटियां खुश थी उसके साथ. लेकिन धीरे-धीरे महसूस हुआ रागिनी से राजीव के सूनेपन में भी रौनक आ गई. वे कब एक-दूसरे के क़रीब आ गए मुझे पता ही नहीं चला और आज उनके क़रीब होने का नतीजा मेरे सामने है.

जब रागिनी ने मुझे बताया कि जीजाजी अक्सर रात में उसके कमरे में आ जाते. कई बार होटल में लेकर भी गए. रागिनी जिद पर थी कि जीजाजी को अब मुझसे शादी करनी ही पड़ेगी. लेकिन क्या तुम अपनी ही बड़ी बहन की सौतन बनोगी-मैंने पूछा. रागिनी का जवाब सुनकर मेरा दिमाग सुन्न हो गया. उसने कहा कि इतना ही था तो संभाल कर रखती अपने पति को. अब मुझे मेरा हक़ चाहिए, वरना मैं पुलिस के पास भी जा सकती हूं और समाज के सामने भी.

रागिनी की प्रिग्नेसी की बात सुनकर राजीव के चेहरे पर एक खुशी थी. ऐसा लग रहा था मानो उन्होंने बेटा नहीं पैदा करने का बदला मुझसे कुछ इस तरह ले लिया था. वे मेरे पास आए और अपना फैसला सुनाने के अंदाज में बोले- मुझे माफ कर दो कविता, मुझसे गलती हो गई, लेकिन जब यह गलती हो ही गई है तो हम इसे सुधार सकते हैं. मैंने डॉक्टर से पता कर लिया है, रागिनी को बेटा होगा. इसलिए मैं रागिनी से शादी करुंगा. अब यह तुम्हारी मर्जी है कि तुम खुशी से इस पर अपनी सहमति देती हो या मैं तुमसे तलाक़ ले लूं. तुम क्या चाहती हो मुझे बता दो.

मेरे लिए एक तरफ खाई तो दूसरी तरफ कुंआ जैसा हाल था. यदि मैं तलाक दे दूं तो मैं तीन बेटियों को लेकर कहां जाउंगी और यदि शादी की इजाजत दे दूं तो मैं अपने ही घर में एक सौतन को कैसे बर्दाश्त करुंगी.

अगली सुबह राजीव और रागिनी दोनों मेरे पास फिर आए, मुझे धमकाने के अंदाज में कहा गया यदि मैं बेवजह का तमाशा नहीं करुं तो अपनी तीन बेटियों के साथ इस घर में रह सकती हूं वरना मुझे तलाक दे दिया जाएगा और मुझे इसी वक्त घर छोड़ना पड़ेगा. राजीव की आंखों पर बेटा पाने की लालसा इस कदर बढ़ जाएगी मुझे जरा भी अंदाजा नहीं था. इसके लिए उसने मेरी ही बहन का इस्तेमाल किया और मेरी बहन भी इन बातों से अंजान एक शादीशुदा आदमी के हाथों खुद को सौंप रही थी.

मैं हमेशा मानती थी कि प्यार जबरदस्ती नहीं हो सकता. अब राजीव को मुझसे प्यार नहीं रहा इसलिए उसे अपने बंधन में बांधे रखने का कोई मतलब नहीं था, लेकिन मुझे अपने बेटियों के भविष्य की चिंता थी. इसलिए मैंने उनकी धमकियों को मानते हुए पूरी तरह समर्पण कर दिया और दोनों को शादी करने की मंजूरी दे दी.

अगले ही दिन राजीव और रागिनी की एक मंदिर में शादी हो गई. जिसने भी सुना कहा ठीक किया राजीव ने, वंश चलाने के लिए एक और शादी कर ली तो कोई गुनाह नहीं किया. मैंने नियति को स्वीकार कर लिया. घर के एक कोने में पड़ी रहती और दोनों के प्रणय को अपनी आंखों के सामने देखने को विवश थी.

राजीव और रागिनी की मुझसे अनकही थी. घर का सारा काम मैं पहले की तरह करती रहती. शादी के पांच महीने बाद ही रागिनी ने एक बेटे को जन्म दिया. बेटे के जन्म के एक सप्ताह बाद ही राजीव के रुख ने सबको हैरान कर दिया. उन्होंने रागिनी से पहले मुझे बेटे की मां बनने की बधाई दी और अपना बिस्तर मेरे कमरे में ले आए. मुझे खुशी भी हो रही थी लेकिन हैरानी भी. राजीव कई महीने बाद मेरे पास आए थे. आते ही कहा कि कविता इस घर की मालकिन तुम ही हो और रहोगी, रागिनी को तुम जैसे रखना चाहो रख सकती हो, अब मेरा उससे कोई वास्ता नहीं.

एक मतलबी मर्द का यह रुप देखकर मुझे उसकी पत्नी होने पर घृणा होने लगी थी, लेकिन मैंने देखा कि पासा पलट रहा है तो क्यों न अपने हित की सोचूं. मैंने माफ करने के अंदाज में राजीव को सबकुछ भूल जाने के लिए कहा और मैंने एक बार राजीव को फिर पा लिया. मैं खुश थी पति के साथ-साथ मुझे इस घर के लिए अब वारिस भी मिल गया था.

अगले दिन से ही मैंने फरमान सुनाया-रागिनी बिस्तर छोड़ो और घर के काम पूरे करो. कमजोर रागिनी किसी तरह उठी और राजीव को पुकारने लगी. राजीव ने उसकी किसी बात का जवाब नहीं दिया और वे अपने काम पर चले गए.

अब मैं फिर से इस घर की मालकिन थी, राजीव के दिल भी. सोचती हूं, किसका स्वार्थ बड़ा था, मेरा, राजीव का या रागिनी का. सब ने अपनी-अपनी सहूलियत की जिंदगी जीने का रास्ता चुना. सबसे कठिन मुश्किल तो रागिनी के सामने है लेकिन न तो अब राजीव को इसकी परवाह है और न मुझे. हां रागिनी का बेटा मुझे ही अपनी असली मां समझता है और रागिनी को इस घर की नौकरानी…है न अजीब बात

(यह सच्ची कहानी हमें बिहार से भेजी गई है. किसी कारणवश नामों में बदलाव किए गए हैं. यदि आप भी जानते हैं ऐसी कोई कहानी जिसे लाना चाहते हैं तो दुनिया के सामने तो   पर हमें लिखें.)

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