प्रतिभा ज्योति:
केन्द्र सरकार ने भले ही तमाम सामाजिक संगठनों, महिला संगठनों और महिला राजनेताओं की मांग को दरकिनार करते हुए महिलाओं की सबसे ज़रुरी चीज़ों में से एक सेनेटरी नेपकिन्स को जीएसटी में टैक्स के दायरे से बाहर नहीं रखा हो, लेकिन कई लोग महिलाओं तक सेनेटरी नेपकिन्स पहुंचाने की मुहिम जुड़े हुए हैं .
महाराष्ट्र में वर्सोवा की एमएलए डॉ. भारती लावेकर ने अपनी एनजीओ टी फाउंडेशन के जरिये आदिवासी इलाके की औरतों एवं जरूरतमंद लड़कियों के लिए सेनेटरी पैड बैंक शुरु किया है. यह इस तरह का पहला सेनेटरी बैंक है, जिसके जरिये समाज में पीरियड को लेकर मेन्स्ट्रुअल हेल्थ और हाइजीन को लेकर जागरुकता बढ़ाई जाएगी .
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इस अभियान के तहत आदिवासी इलाकों में महिलाओं को सेनेटरी नैपकिन्स मुफ्त और बिना किसी प्रायर आइडेंटिटी चेकिंग के दिए जाएंगें. जबकि गैर आदिवासी इलाकों की महिलाओं को अपना रजिस्ट्रेशन ऑरेंज कार्ड दिखा कर कराना होगा. रजिस्ट्रेशन के बाद उन्हें हर महीने के 10 सेनेटरी नैपकिन्स दिए जाएंगे. महिलाएं अपना रजिस्ट्रेशन फेसबुक, वेबसाइट, फोन कॉल या ऑफिस में जाकर भी करा सकती हैं.
अभियान के तहत स्कूल, कॉलेज और पब्लिक शौचालय में सेनेटरी पैड वेंडिंग मशीन और डिस्पोजल मशीनें भी लगाई जाएंगी. इस अनोखे बैंक की लॉंचिंग महाराष्ट्र के सीएम देवेन्द्र फडनवीस की पत्नी अमृता फडनवीस और अभिनेत्री ज़ीनत अमान ने किया
डॉ भारती के इस नए फाउंडेशन के जरिए गांवों में सैनेटरी पैड को पहुंचाया जाएगा. डॉ भारती के मुताबिक जब तक महिलाएं जागरुक नहीं होंगी और अपनी सेहत का ख्याल नहीं रखेंगी तो आने वाली पीढ़ी को जागरुक करना और मुश्किल होगा. अभियान में फिलहाल सरकार 10 महीनों के लिए मुफ्त सैनिटरी पैड फ्री में मुहैया करवा रही है. लेकिन इसमें साल भर की दो महीने की छुट्टी शामिल नहीं है लेकिन ग्रामीण स्कूलों में यह फाउन्डेशन उन्हें दो महीनों में भी पैड फ्री देगा. टी फाउंडेशन के माध्यम से डोनर्स और जरूरतमंदों के बीच दूरी को कम करने के लिए डिजिटल सेनेटरी पैड बैंक की शुरुआत की गई है.
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इस पैड बैंक को उम्मीद है, कि यह उनकी मांग के मुताबिक हर महिला और लड़की के लिए उपलब्ध होगा. आमतौर पर गांवों में महिलाए को ना तो ज़्यादा जानकारी होती है और ना ही वहीं सेनेटरी पैड मिल पाते हैं इस वजह से वे पीरियड्स के दौरान खराब चीजों का इस्तेमाल करती हैं जो सर्वाइकल कैंसर की एक बड़ी वज़ह होती है.
एक स्टडी के अनुसार आज भी पचास फ़ीसदी से ज्यादा लड़कियां पीरियड्स के दौरान स्कूल नहीं जाती हैं. महिलाओं को आज भी इस मुद्दे पर बात करने में झिझक होती है जबकि सामाजिक व्यवहार और परम्पराओं की वजह से आधी से ज्यादा को तो ये लगता है कि मासिक धर्म कोई अपराध है.
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण 2015-16 के मुताबिक 57.6% महिलाओं ने मासिक धर्म के वक्त सेनेटरी पैड का उपयोग किया. ग्रामीण इलाकों में रहने वाली महिलाएं पीरियड के दौरान कपड़े या कपड़े से बने पैड का इस्तेमाल करती हैं. इनमें से कुछ प्रतिशत महिलाएं ऐसी भी हैं जो पीरियड्स के दौरान बिना किसी पैड के भी रहती हैं.जिससे बहुत सी बीमारियां होती हैं .
(वुमनिया महिलाओं में हेल्थ अवेयरनेस जगाने और खासतौर से पीरियड्स के दौरान सेनेटरी पैड्स के इस्तेमाल के अभियान में जुड़ा हआ है. अगर आप भी ऐसे ही किसी अभियान से जुड़े हैं या किसी ऐसे संगठन और व्यक्ति को जानते हैं जो यह काम कर रहे हों तो हमें उनकी जानकारी भेजिए. हम वुमनिया में उनका स्वागत करते हैं और उनकी कहानी दुनिया तक पहुंचाने की कोशिश करेंगें .)