रुपाली:
Surrogacy पर एक नया कानून लाने की तैयारी और इस पर छिड़ी बहस के बीच मुझे यह बताने में कोई संकोच नहीं है कि मैं सरोगेसी से मां बनी हूं. प्यारी बेटी नायसा की मां हूं मैं. जिसे दुनिया में लाने के लिए मैंने जो तरीका अपनाया उसमें कुछ भी गलत या अनैतिक नहीं है. मुझे अपने फैसले पर गर्व है. नायसा के आने से मानो मेरी जिंदगी, मेरे घर और मेरे परिवार के सूनेपन की विदाई हो गई है. जिंदगी मुस्कुराने लगी है और लगता है जैसे हमें जीने का मकसद मिला हो.
सरोगेसी कुछ लोगों के लिए फैशन है या नहीं मैं इस पर अपनी कोई राय नहीं दे सकती, लेकिन अपने बारे में इतना जरुर कह सकती हूं यह मेरे लिए फैशन या लेबर पेन से बचने की कोशिश नहीं थी. बल्कि यह मेरी मजबूरी थी. मैं मां बनना चाहती थी, अपना बच्चा चाहती थी. काश ईश्वर ने मुझे यह मौका दिया होता. कोई किस हालत में ऐसे फैसले लेता है उसे समझना जरुरी होता है.
सरकार और Surrogacy के खिलाफ खड़ी हुई संस्थाएं चाहें जो कहें वह मुझ जैसी उन औरतों का दर्द नहीं समझ सकती जो मां नहीं बन पा रही हैं. शादी के दो साल बाद जब परिवार बढ़ाना चाहा तो पता चला कि सब कुछ ठीक होते हुए भी मैं मां नहीं बन पा रही थी. सैंकड़ों टेस्ट, डॉक्टर के कई चक्कर लगाते-लगाते मेरी उम्र 39 साल हो गई थी और मां बनने की छटपटाहट मुझे बेचैन कर रही थी.
जब बहुत दिनों तक सामान्य तरीके से मां नहीं बन पाई तो काफी सोच-विचार कर मैंने और मेरे पति ने सरोगेसी से बच्चे को जन्म देने का फैसला किया. वक्त और परिस्थितयों ने मुझे उस मोड़ पर ला कर खड़ा किया था जहां एक कड़ा फैसला करना ही था. हालांकि हमारे लिए यह आसान नहीं था. सरोगेसी को अपनाने और उस पर आने वाले खर्च के बारे में सोचने पर हमने लंबा समय लिया. हर औरत चाहती है कि प्रकृति ने मां बनने का जो खूबसूरत वरदान दिया है वह उसे भी हासिल हो लेकिन यदि ऐसा नहीं हो सकता है तो सरोगेसी का रास्ता अपनाने में क्या बुराई है? सरकार यह क्यों तय करे कि कोई पति-पत्नी किस तरह मां-बाप बनना चाहते हैं? सरकार हमारी निजी जिंदगी में क्यों तांकझांक करे जब तक कि हम किसी व्यक्ति विशेष, समाज या देश के खिलाफ कोई काम नहीं कर रहे?
अब मैं इस बात पर संतुष्ट है कि जो महिला मेरे लिए सरोगेट मां बनने को तैयार हुई हमने न केवल उनकी अच्छी तरह देखभाल की बल्कि उनके घर के आर्थिक हालात को बहुत बेहतर बनाया. वह बेहद हंसमुख महिला थी और हमेशा खुश रहती थीं. मैंने उन्हें खुश रखने के हर संभव कोशिश की. मैं और मेरे पति अपना बच्चा चाहते थे. इसके लिए हमने किसी का शोषण नहीं किया बल्कि कोई स्वेच्छा से और खुश मन से मेरे लिए बच्चे को जन्म देने का तैयार हुआ. मेरा शरीर अंडे बना रहा था लेकिन मैं मां क्यों नहीं बन पा रही थी कई जांच के बाद भी मेडिकल साइंस से मुझे इस बात का जवाब नहीं मिला. आखिरकार अपने डॉक्टर की सलाह पर हमने जैसटेशनल पद्दति को अपनाने का फैसला किया. मेरे अंडे औऱ मेरे पति के स्पर्म को फर्टिलाइज करके सरोगेट मां के शरीर में डाला गया.
सरोगेसी अपनाने से पहले और उसके बाद पूरे नौ महीने तक मैं किस तकलीफ और दर्द से गुजरी हूं इसे कोई नहीं समझ सकता. यदि पेट में बच्चा हो तभी दर्द का एहसास होता है ऐसा नहीं है, पूरे नौ महीने तक मैं भी एक गर्भवती मां की तरह ही चिंता, तनाव, अनिंद्रा और मानसिक परेशानी से जूझती रही. एक तरफ सरोगेट मां की चिंता होती थी क्योंकि उसने हमारे बच्चे को अपने पेट में पाल रही थीं तो दूसरी तरफ बच्चे की चिंता होती थी. मेरा दर्द उनसे अलग नहीं था. भारत में सरोगेसी 2000 से जायज है. आईसीएमआर के बने नियम के तहत सरोगेट मां और दंपत्ति के बीच एक सहमति बनती है जिसमें यह साफ लिखा होता है कि दंपत्ति सरोगेट मां के स्वास्थय का ध्यान रखेंगे और इसके एवज में उसे पैसा भी दिया जाएगा। हमने भी इसी नियम का पालन किया.
सभी सरोगेट मांओं का शोषण किया जाता है ऐसा कहना गलत है. हो सकता है कुछ लोगों का शोषण हुआ हो पर सरकार या संस्थाएं सबको एक साथ कटघरे में नहीं रख सकतीं. लेकिन यदि सरकार कानून लाकर दवाब बनाती है तो इसमें शोषण की गुंजाईश बढ़ेगी. ग़रीबी के कारण औरतें खुशी से सरोगेट मांएं बनती हैं और वह भी तब जब उसका अपना परिवार पूरा हो चुका होता है. सरोगेट मां बनने पर एक साथ उन्हें जितना पैसा मिलता है उतना वे ताउम्र नहीं कमा सकतीं. लेकिन फिर भी यहां इस बात को ध्यान रखना जरुरी है कि सरोगेसी को पैसा कमाने का जरिया नहीं बनाना चाहिए.
लोग मुझसे सवाल किए कि मैंने बच्चा गोद क्यों नहीं लिया? मैं बच्चे को गोद लेने के लिए मानसिक रुप से तैयार नहीं थी. बच्चे को गोद ले लो लेकिन यदि उसे आप अपना मानने को तैयार नहीं हुए तो क्या उस बच्चे के साथ अन्याय नहीं होगा? सरोगेसी नि:संतान मां-बाप के लिए एक आशा की किरन है. मैंने 24-25 साल की लड़कियों को आईवीएफ सेंटर के चक्कर लगाते देखा है.