संयोगिता कंठ:
हिन्दू शास्त्रों और मान्यताओं में किसी भी शुभकार्य, पूजा और समारोह को शुरु करने से पहले श्री गणेश की पूजा की जाती है. सही मायने में बिना श्री गणेश को याद किए कोई कार्य ना तो शुरु होता है और ना ही अच्छे से सम्पन्न हो पाता है. सिद्धिविनायक गणेश जी का सबसे लोकप्रिय रूप है. गणेश जी की जिन प्रतिमाओं की सूंड़ दाईं तरह मुड़ी होती है, वे सिद्धपीठ से जुड़ी होती हैं और उनके मंदिर सिद्धिविनायक मंदिर कहलाते हैं. कहते हैं कि सिद्धि विनायक की महिमा अपरंपार है, वे भक्तों की मनोकामना को तुरंत पूरा करते हैं. मान्यता है कि ऐसे गणपति बहुत ही जल्दी प्रसन्न होते हैं लेकिन उतनी ही जल्दी कुपित भी होते हैं.
सिद्धि विनायक की दूसरी विशेषता यह है कि वह चतुर्भुजी विग्रह है. उनके ऊपरी दाएं हाथ में कमल और बाएं हाथ में अंकुश है और नीचे के दाहिने हाथ में मोतियों की माला और बाएं हाथ में मोदक भरा कटोरा है. गणपति के दोनों ओर उनकी दोनो पत्नियां रिद्धि और सिद्धि मौजूद हैं जो धन, ऐश्वर्य, सफलता और सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करने का प्रतीक मानी जाती हैं. मस्तक पर अपने पिता शिव के समान एक तीसरा नेत्र और गले में एक सर्प हार के स्थान पर लिपटा है. सिद्धि विनायक का विग्रह ढाई फीट ऊंचा होता है और यह दो फीट चौड़े एक ही काले शिलाखंड से बना होता है.
मुंबई के प्रभादेवी में श्री सिद्धिविनायक मंदिर देश में स्थित सबसे पूजनीय मंदिरों में से एक है. मुंबई स्थित सिद्धिविनायक मंदिर का निर्माण 1801 में विट्ठु और देउबाई पाटिल ने किया था. इस मंदिर में गणपति का दर्शन करने सभी धर्म और जाति के लोग आते हैं.इस मंदिर के अंदर एक छोटे मंडपम में भगवान गणेश के सिद्धिविनायक रूप की प्रतिमा प्रतिष्ठापित की गई है. सूक्ष्म शिल्पाकारी से परिपूर्ण गर्भगृह के लकड़ी के दरवाजों पर अष्टविनायक को प्रतिबिंबित किया गया है. जबकि अंदर की छतें सोने की परत से सुसज्जित हैं.
महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले के सिद्ध टेक के गणपति भी सिद्धिविनायक के नाम से जाने जाते हैं और उनकी गिनती अष्टविनायकों में की जाती है. महाराष्ट्र में गणेश दर्शन के आठ सिद्ध ऐतिहासिक और पौराणिक स्थल हैं, जो अष्टविनायक के नाम से प्रसिद्ध हैं. लेकिन अष्टविनायकों से अलग होते हुए भी इसकी महत्ता किसी सिद्ध-पीठ से कम नहीं.
आमतौर पर भक्तगण बाईं तरफ मुड़ी सूंड़ वाली गणेश प्रतिमा की ही प्रतिष्ठापना और पूजा-अर्चना किया करते है. यानी दाहिनी ओर मुड़ी गणेश प्रतिमाएं सिद्ध पीठ की होती हैं और मुंबई के Siddhivinayak temple में गणेश जी की जो प्रतिमा है, वह दाईं ओर मुड़े सूंड़ वाली है. यानी यह मंदिर भी सिद्ध पीठ है. कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण संवत् 1692 में हुआ था लेकिन सरकारी दस्तावेजों के मुताबिक इस मंदिर का 19 नवंबर 1801 में पहली बार निर्माण हुआ था.
सिद्धि विनायक का यह पहला मंदिर बहुत छोटा था.अब तक इस मंदिर का कई बार पुनर्निर्माण हो चुका है.1991 में महाराष्ट्र सरकार ने इस मंदिर के भव्य निर्माण के लिए २० हजार वर्गफीट की जमीन दी. अभी यह सिद्धि विनायक मंदिर की इमारत पांच मंजिला है और यहां प्रवचन ग्रह, गणेश संग्रहालय व गणेश विापीठ के अलावा दूसरी मंजिल पर अस्पताल भी है, जहां रोगियों की मुफ्त चिकित्सा की जाती है. इसी मंजिल पर रसोईघर है, जहां से एक लिफ्ट सीधे गर्भगृह में आती है.
नवनिर्मित मंदिर के गर्भगृह को इस तरह बनाया गया है ताकि अधिक से अधिक भक्त गणपति का सभामंडप से सीधे दर्शन कर सकें. पहले मंजिल की गैलरियां भी इस तरह बनाई गई हैं कि भक्त वहां से भी सीधे दर्शन कर सकते हैं. अष्टभुजी गर्भगृह तकरीबन 10 फीट चौड़ा और 13३ फीट ऊंचा है. गर्भगृह के चबूतरे पर स्वर्ण शिखर वाला चांदी का सुंदर मंडप है, जिसमें सिद्धि विनायक विराजते हैं. गर्भगृह में भक्तों के जाने के लिए तीन दरवाजे हैं, जिन पर अष्टविनायक, अष्टलक्ष्मी और दशावतार की आकृतियां चित्रित हैं. हर साल गणपति पूजा महोत्सव यहां भाद्रपद की चतुर्थी से अनंत चतुर्दशी तक विशेष समारोह पूर्वक मनाया जाता है.
सिद्धिविनायक मंदिर तक एक संकरी गली जाती है जिसे ‘फूल गली’ के नाम से जाना जाता है. यहां बड़ी संख्या में पूजन सामग्री से पटी दुकानें हैं. यहां दुकानदार पूजन सामग्री तुलसी माला, नारियल, मिष्ठान इत्यादि बेचते हैं.
46 करोड़ रुपये की वार्षिक आय के साथ मुंबई का Siddhivinayak temple , महाराष्ट्र का दूसरा सबसे अमीर मंदिर है. सिद्धिविनायक मंदिर के 125 करोड़ रुपये फिक्स्ड डिपॉजिट में जमा है. मंदिर अपने मशहूर फिल्मी भक्तों के कारण भी प्रसिद्ध है. श्री सिद्धिविनायक मंदिर ट्रस्ट चढ़ावे के रूप में करीब 10-15 करोड़ रुपये सालाना आते हैं .