एक संत को अपना भव्य आश्रम बनाने के लिए धन की जरूरत पड़ी. वह अपने शिष्य को साथ लेकर धन जुटाने के लिए लोगों के पास गए. घूमते-घूमते वह सूफी संत राबिया की कुटिया में पहुंचे. राबिया की कुटिया साधारण थी. किसी तरह की सुविधा नहीं थी वहां, फिर भी रात हो गई तो संत वहीं ठहर गए.
राबिया ने उनके लिए खाना बनाया. खाने के बाद संत के सोने के लिए राबिया ने एक तख्त पर दरी बिछा दी और तकिया दे दिया. खुद वह जमीन पर एक टाट बिछाकर सो गईं. थोड़ी ही देर में राबिया गहरी नींद सो गईं, लेकिन संत को नींद नहीं आ रही थी. वह दरी पर सोने के आदी नहीं थे। वह हमेशा मोटे गद्दे पर सोते थे.
संत सोचने लगे कि जमीन पर टाट बिछा कर सोने के बावजूद राबिया को गहरी नींद आ गई और उन्हें तख्त पर दरी के बिछौने पर भी नींद क्यों नहीं आई ? यह बात उन्हें देर तक मथती रही. सुबह जल्दी उठकर राबिया ने अपने हाथ से कुटिया की सफाई की और चिड़ियों को दाना खिलाया. संत ने पूछा, ‘राबिया, तुमने मेरे लिए अच्छा बिछौना बिछाया, फिर भी मुझे नींद नहीं आई जबकि तुम्हें जमीन पर गहरी नींद आ गई इसका कारण क्या है?’
राबिया बोलीं, ‘गुरुदेव, जब मैं सोती हूं तो मुझे पता नहीं होता कि मेरी पीठ के नीचे गद्दा है या टाट. उस समय मुझे दिन भर किए गए सत्कर्मों का स्मरण करके ऐसा अद्भुत आनंद मिलता है कि मैं अपना सुख दुख-सब भूल कर परम पिता की गोद में सो जाती हूं. इसलिए मुझे गहरी नींद आती है.’
संत ने कहा, ‘मैं अपने सुख के लिए धन एकत्रित करने निकला था. यहां आकर मुझे मालूम हुआ कि संसार का सुख भव्य आश्रम में नहीं, बल्कि इस कुटिया में है.’ फिर उन्होंने सारा एकत्रित धन गरीबों में बांट दिया और एक सामान्य सी कुटिया में रहने लगे.