Worship को समझने के लिए इस कहानी को समझना जरुरी है. एक जगह गृह प्रवेश की पूजा हो रही थी. पंडित जी पूजा करा रहे थे. पंडित जी ने सबको हवन में शामिल होने के लिए बुलाया. सबके सामने हवन सामग्री रख दी गई. पंडित जी मंत्र पढ़ते और कहते, “स्वाहा.”
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लोग चुटकियों से हवन सामग्री लेकर अग्नि में डाल देते, घर के मालिक को स्वाहा कहते ही अग्नि में घी डालने की ज़िम्मेदीरी सौंपी गई. हर व्यक्ति थोड़ी सामग्री डालता, इस आशंका में कि कहीं हवन खत्म होने से पहले ही सामग्री खत्म न हो जाए, घर के मालिक भी बूंद-बूंद घी डाल रहे थे. उनके मन में भी डर था कि घी खत्म न हो जाए.
मंत्रोच्चार चलता रहा, स्वाहा होता रहा और पूजा पूरी हो गई, सबके पास बहुत सी हवन सामग्री बची रह गई. घी तो आधा से भी कम इस्तेमाल हुआ था. हवन पूरा होने के बाद पंडित जी ने कहा कि आप लोगों के पास जितनी सामग्री बची है, उसे अग्नि में डाल दें. घर के स्वामी से भी उन्होंने कहा कि आप इस घी को भी कुंड में डाल दें.
एक साथ बहुत सी हवन सामग्री अग्नि में डाल दी गई. सारा घी भी अग्नि के हवाले कर दिया गया. पूरा घर धुंए से भर गया. वहां बैठना मुश्किल हो गया, एक-एक कर सभी कमरे से बाहर निकल गए. अब जब तक सब कुछ जल नहीं जाता, कमरे में जाना संभव नहीं था. काफी देर तक इंतज़ार करना पडा, सब कुछ स्वाहा होने के इंतज़ार में.
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मेरी कहानी यहीं रुक जाती है. उस पूजा में मौजूद हर व्यक्ति जानता था कि जितनी हवन सामग्री उसके पास है, उसे हवन कुंड में ही डालना है, लेकिन सबने उसे बचाए रखा कि आख़िर में सामग्री काम आएगी.
ऐसा ही हम करते हैं. यही हमारी फितरत है. हम अंत के लिए बहुत कुछ बचाए रखते हैं. ज़िंदगी की पूजा खत्म हो जाती है और हवन सामग्री बची रह जाती है. हम बचाने में खो जाते हैं कि जब सब कुछ होना हवन कुंड के हवाले है, उसे बचा कर क्या करना.बाद में तो वो सिर्फ धुंआ ही देगा.
संसार हवन कुंड है और जीवन पूजा. एक दिन सब कुछ हवन कुंड में समाहित होना है. अच्छी पूजा वही है, जिसमें हवन सामग्री का सही अनुपात में इस्तेमाल हो.
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