तुम क्या हो खुद को तो पहचानो

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किसी गांव में एक पुराने पीपल के पेड़ में एक सांप रहता था. वैसे तो वह दिन भर वह अपनी बांबी में घुसा रहता था लेकिन जब वहां कोई राहगीर रुकता था या बच्चे खेलने आते थे, तो वह उनको काटने के लिए दौड़ पड़ता था। पूरा गांव उस से त्रस्त था. सबने कई जतन किये लेकिन वे न उस सांप को न मार सके और न ही उसको वहां से भगा ही सके.

इसी बीच जब उस गांव में एक साधु महाराज पहुंचे, तो गांव वालों ने उनसे इस के बारे में बताया और उनसे प्रार्थना की, ‘हे महाराज, कुछ ऐसा उपाय कीजिये कि गांव वालों को इस सांप से मुक्ति मिल जाय. ‘ साधु ने उनकी बात सुनी और कहा कि ,’मुझे उस पीपल के पेड़ तक ले जाओ, मैं उस से बात करूंगा कि वह अपनी प्रवृत्ति को छोड़ दे.’ जब साधु उस पीपल के पेड़ के पास पहुंचे तब सांप अपनी आदतानुसार अपनी बांबी से निकल आया और साधु को काटने दौड़ा.

साधु ने उसको अपने तेज़ से रोक दिया और उसको समझाया कि उसकी इस प्रवृत्ति से गांव वालों को बड़ा कष्ट होता है, इसलिए उसे अपना व्यवहार बदल देना चाहिए. वह काटना छोड़ देगा तो गांव वाले भी उसको तंग नही करेंगे. सांप पर साधु की बात का बड़ा असर हुआ और उसने साधु को वचन दिया कि अब वह न किसी के पीछे दौड़ेगा और न ही काटेगा. साधु ने उस को आशीर्वाद दिया और गांव वालों को सांप के बारे में बताकर दूसरे गांव चले गए.

अब जब गांव में यह पता चल गया कि सांप अब नही कटेगा तब गांव वाले बिना भय के उस पीपल के पेड़ पर जाने लगे और बच्चे भी वहां खेलने लगे. इधर सांप ने देखा की लोग आते जाते रहते है, बच्चे उधम करते रहते है लेकिन कोई उसको अब परेशान नही करता है तो वह भी लोगो के सामने बिना डर के निकलने लगा.

शुरू में तो सांप को खुलेआम बाहर घूमते हुए, धूप सेकते हुए देख कर लोग थोड़ा चौंके लेकिन फिर पूरे गांव को  उसकी आदत सी हो गयी. अब, जब बच्चों ने यह देखा कि वह कुछ कर ही नही रहा है तो उनका भी डर निकल गया और उसको पकड़ कर खेलने लगे. अब सब बच्चे एक से तो होते नही है, कुछ शरारती और दुष्ट प्रवत्ति के बच्चे थे, वे उस सांप को जब चाहा लतिया देते थे, कभी ढेले से मार कर अपना निशाना पक्का करते थे और कभी उसको लकड़ी से लटका कर फेंक देते थे. अब क्योंकि सांप ने साधु को वचन दिया हुआ था इस लिए इतनी मार खाने के बाद भी वह कुछ नही करता था. धीरे धीरे, उस के संग हो रहे दुर्व्यवहार से उसका शरीर घायल हो गया और कई जगह से उसके शरीर से खून निकलने लग गया.
कुछ दिनों बाद जब वही साधु महाराज उस गांव में दोबारा पधारे तो उन्होंने एक खेत की मेड़ पर, उस घायल पड़े सांप को देखा. उसकी यह दारुण हालत देख कर साधु ने उससे पूछा कि, ‘अरे विषधर- तुम्हारी यह हालत कैसे हो गयी?’ सांप ने साधु की तरफ कातर दृष्टि से देखते हुए,करहाते हुए कहा,’ महाराज, आपने ही मुझसे यह वचन लिया था कि मैं भविष्य में गांव वालों को कुछ नही करूंगा, इसी लिए दुष्ट लोगो ने मेरी यह हालत कर दी है.’

साधु ने सांप को सहलाया और कहां,’वत्स, मैंने तुमको काटने के लिए मना किया था लेकिन फुंफकारने से थोड़े ही रोका था?’ और यह कह कर साधु वापस चले गए. अगले दिन बच्चे फिर उस सर्प की बांबी में पहुंच कर उसे लकड़ी से निकालने लगे. इस बार सर्प जैसे ही बाहर निकला, उसने जोर से फुँफकारा. उसकी फुंफकार को सुन कर, बच्चों में भगदड़ मच गई और वे सब चिल्लाते हुए भाग खड़े हुए. उस दिन के बाद से बच्चों ने सांप को छेड़ना तो बन्द किया ही वही सांप की फिर से धमक हो गयी और वह अमन शांति से रहने लगा.

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