MODERN बनने की चाह में बड़े शहरों में क्यों अपनी पहचान छुपाने लगती हैं छोटे शहर की लड़कियां ?

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Modern

सुमन बाजपेयी:

यह कहानी है बिहार के एक छोटे से गांव गोपालगंज से दिल्ली नौकरी करने आई मीता के जिसके बड़े-बड़े सपने थे.  Modern दिखने की चाह में उसे अपनी क्षेत्रीय पहचान बताने में शर्म आती थी. उसे लगता था कि यदि वह बताएगी कि वह छोटे शहर से है तो लोग उसे कमतर समझेंगे.




उसने जो गरीबी और संघर्षर्पूर्ण दिन देखे थे उसके बाद उसने ठान लिया था कि उसे कामयाबी हासिल करनी है. बहुत सारे पैसे कमाने हैं. जब इस बड़े शहर में आकर उसने एक पीजी में अपने रहने की व्यवस्था की तो उसके लिए नए माहौल के साथ एडजस्ट करना आसान न था.

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इस शहर की सड़कों, बाजारों और लोगों को जाना-समझा तो उसे लगा कि वह तो यहां एकदम मिसफिट है. यहां का रहन-सहन, बोलचाल, पहनावा और जीने का तरीका, उसकी संस्कृति और परवरिश से एकदम भिन्न है. उसे यह सोचकर ही घबराहट होने लगी कि ऑफिस में कैसे काम कर पाएगी?




वापस लौटने का तो सवाल ही नहीं उठता था. घरवालों की मर्जी के बिना वह कुछ करने के इरादे से जब यहां आई तो हार मान कर वह जाने वाली नहीं है. वह जल्दी ही समझ गई कि अगर बड़े शहर में रहना है तो उसे वहां के माहौल में खुद को ढालना ही होगा, वरना पग-पग पर उसे परेशानियां उठानी होंगी.

उसने मान लिया कि Modern बनने के लिए उसे टूटी-फूटी अंग्रेजी को सबसे पहले सुधारना होगा, अपने पहनावे को बदलना होगा.बस फिर सिलसिला शुरू हो गया बदलाव का. और छोटे शहर की मीता ने बड़े शहर के रंग में रंगकर अपनी क्षेत्रीय पहचान को ही खो दिया. अपनी निजता, अपने अस्तित्व, अपनी स्वाभाविकता को ही दांव पर लगा दिया.

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सुमन बाजपेयी

ऐसा मीता के साथ ही नहीं, छोटे शहर से बड़े शहरों में आने वाली अधिकांश लड़कियों के साथ होता है. अपनी पहचान छिपाने के लिए और कोई उन्हें गंवार न कहे, और स्वयं को आधुनिक होने का जामा पहनाने के लिए वे पहले अपने पहनावे को बदलती हैं.

फैशन के नाम पर ऊट-पटांग कपड़े पहनने लगती हैं. उनकी नजर नए-नए फैशन पर रहने लगती है. दूसरी शहरी लड़की ने जो पहना है, उसे ही वह अपने जिस्म पर चढ़ा लेती है. वह नकल करने और शहरी चमक में खो जाने को इतनी आतुर हो जाती है कि समझ ही नहीं पाती, वह आउटफिट्स उस पर अच्छा लग भी रहा है या नहीं.




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उनकी बोलचाल, हाव-भाव, स्टाइल में आने वाला बदलाव आज हर जगह दिख रहा है, बस में, मेट्रो में, इस तरह की लड़कियां देखी जा सकती है. सवाल उठता है कि क्या शहर से आई इन छोटे शहर की लड़कियों को अपनी निजता को दांव पर लगाने की जरूरत ही क्या हैॽ

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आप जैसे हैं, वैसे ही रहें, दूसरों को देखकर खुद की पहचान खो दी तो बाकी क्या रहेगाॽ आपकी संस्कृति भी तो फिर अतीत बन जाएगी. बेहतर तो यही होगा कि अपनी पहचान पर गर्व करते हुए भी बड़े शहर के माहौल को अपने ऊपर हावी हुए दिए बिना उसमें शामिल हुआ जा सकता है.

किसी को अपनाने का अर्थ खुद की निजता को खोना नहीं होता है. छोटे शहर के हैं तो इसमें संकोच कैसाॽ अपनी पहचान बताने में हिचकिचाहट कैसीॽ आधुनिक बनना ही है तो अपनी सोच से बनें, अपनी संकीर्णताओं से बाहर निकलते हुए बनें. फिर बड़े शहर में न तो हीनता महसूस होगी न ही पिछड़ने का डर हावी होगा. कामयाबी ही कदम चूमेगी.

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