कविता वर्मा:
(कविता, कहानियां और लघुकथाओं का लगातार लेखन)
बचपन में लिखने के बारे में तो कभी सोचा नहीं था लेकिन पढ़ने का बहुत शौक था. कहानियां तो ऐसे डूब कर पढ़ती थी कि हर दृश्य सजीव हो जाता था. थोड़ी बड़ी हुई तो लेख पढ़ने में मजा आने लगा. कई बार कुछ पढ़ते हुए लगता यह ऐसा नहीं ऐसा होना चाहिए, लेकिन खुद लिखने लिखूंगी यह तब भी नहीं सोचा था. एक दिन स्कूल से लौटते हुए मेरी Scooty ख़राब हो गई मजबूरन पैदल आना पड़ा. तब रास्ते से स्टेशनरी की दुकान से एक लेटर पैड खरीदा और एक छोटा सा लेख लिख कर भेज दिया “नईदुनिया” में भेज दिया और वह प्रकाशित हो गया.
बस तभी से लेखन यात्रा चल निकली. शुरुआत में मैंने कुछ लेख ही लिखे फिर कुछ समय बाद कवितायें लिखी उसके बाद लघुकथा फिर कहानियों की तरफ बढ़ी. लेखन मेरे लिए खुद को अभिव्यक्त करने का माध्यम है. अपने आसपास फैली विसंगतियां हों या सकारात्मक बातें उनकी तरफ सबका ध्यान आकर्षित करना. लोगो को उसके प्रति जागरूक बनाना और उनकी संवेदनाएं जगाना ही लेखन का मुख्य उद्देश्य रहा.
सामायिक विषय ही मेरे प्रिय विषय हैं क्योंकि मेरा मानना है कि हमें अपने बच्चों के लिए एक स्वस्थ समाज छोड़ कर जाना इसलिए लेखन में सकारात्मक पक्ष का शामिल होना भी जरूरी है. लिखने से पहले टीचिंग जॉब में भी मैं ऐसे ही अचानक आई थी और बच्चों के बड़े होने के बाद मैंने टीचिंग शुरू की. बच्चों को पढ़ाते हुए टीचिंग स्किल भी विकसित होती गई.
मैंने पहला लेख लिखा तो सबसे ज्यादा ख़ुशी मुझसे ज्यादा परिवार को हुई थी और यह सिलसिला रुकते थमते चलता रहा. यह भी सच है की मेरे लेखन में मेरे परिवार, मेरे पति और दोनों बेटियों का बेहद सकारात्मक योगदान रहा. कभी अचानक किसी समय सीमा में कोई रचना भेजना हो या कोई रचना लिखना हो घर की जिम्मेदारियां सभी ने मिलजुल कर उठाईं.
मेरी पहली कहानी संग्रह ‘परछाइयों के उजाले ‘ के प्रकाशन के समय तक मेरा शहर की किसी भी साहित्यिक हस्ती से विशेष परिचय नहीं था. अपने संकोच के कारण मैं किसी से कोई सलाह भी नहीं ले पाई, लेकिन ब्लॉग लेखक के रूप में कई लोग मुझे जानते थे. उन्होंने मुझसे संग्रह मंगवाया और उसकी भूरी भूरी प्रशंसा भी की.
सरोजिनी कुलश्रेष्ठ सम्मान के लिए संग्रह भेजने के लिए भी मेरी पंजाब की एक मित्र ने कहा था और मैं बेहद असमंजस में थी कि भेजूं या नहीं ? मैंने सिर्फ मेरी दोस्त की बात का मान रखने के लिए उसे भेजा था और भूल गई थी. जब जयपुर से चिठ्ठी आई तो हैरान रह गई समझ ही नहीं आया कि यह क्या हुआ कैसे हुआ ? इस सम्मान ने यह भरोसा दिलाया कि लेखन में बात हो तो उसे पहचान मिलती है देर से ही सही.
अभी हाल में ही अखिल भारतीय लघुकथा प्रतियोगिता शब्द निष्ठा सम्मान में मेरी चार लघुकथाएं चयनित हुई हैं. 17 राज्य 170 लघुकथाकार 850 लघुकथाएं चयनित 110 और उनमें चार लघुकथाएं मेरी भी. यह सम्मान पाकर मैं बहुत खुशी महसूस कर रही हूं.
लघुकथाओं को लिखना तब शुरू किया जबकि लघुकथा के मुहावरे के बारे में कुछ नहीं जानती थी. लेकिन इसे पढ़ते- पढ़ते ही आत्मसात करती गई और जब देश के लघुकथाकारों के बीच इन्हें पहचान मिली तो बेहद खुश हूं. छोटे शहरों में बहुत ज्यादा बड़ा फलक साहित्यकारों को नहीं मिलता लेकिन सोशल मीडिया ने इसे थोड़ा सुगम बना दिया है. हां प्रिंट मीडिया में अभी भी जद्दोजहद करनी पड़ती है लेकिन मैं मानती हूँ उतनी जिजीविषा मेरे पास नहीं है.
मेरा एक उपन्यास तैयार है लेकिन सही प्रकाशक ढूंढना मेरे लिए मुश्किल हो रहा है. मैं चाहती हूं कि वह सिर्फ प्रकाशित ना हो लोगों तक पहुंचे भी. उम्मीद है वह भी अपने समय से प्रकाशित होगा.
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