धार्मिक, सामाजिक और फिर राजनीतिक गलियारों से होता हुआ तीन तलाक का मुद्दा अब सुप्रीम कोर्ट की चौखट पर पहुंच गया है. देश की सबसे बड़ी अदालत ने इस पर सुनवाई शुरु कर दी है. कोर्ट ने साफ किया है कि वह बहुविवाह के मुद्दे पर सुनवाई नहीं करेगा. वह इस मुद्दे को देखेगा कि क्या तीन तलाक लागू किए जाने लायक धर्म के मूल अधिकार का हिस्सा है या नहीं? सुप्रीम कोर्ट को तीन तलाक, बहुविवाह और निकाह हलाला के विरोध में कई याचिकाएं मिली हैं.
सुप्रीम कोर्ट में पांच जजों की एक बेंच तीन तलाक़ पर सुनवाई कर रही है. इस बेंच में सभी जज अलग-अलग धर्मों से हैं. बेंच में जस्टिस कुरियन जोसेफ (ईसाई), आरएफ़ नरीमन (पारसी), यूयू ललित (हिन्दू), अब्दुल नज़ीर (मुस्लिम) हैं. बेंच की अध्यक्षता कर रहे सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जेएस खेहर (सिख) हैं .
सुनवाई के दौरान जस्टिस नरीमन ने कहा कि 3 महीने के अंतराल में दिए गए तलाक पर विचार नहीं होगा. उन्होंने कहा कि एक साथ तीन तलाक के मसले पर ही सुनवाई होगी. वहीं सुनवाई में शामिल कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और वकील सलमान खुर्शीद ने कहा कि अगर सुलह की कोशिश नहीं हुई हो तो तलाक वैध नहीं माना जा सकता. अदालत ने तीन तलाक की समीक्षा के लिए कहा है. साथ ही कहा कि जरूरत पड़ी तो निकाह हलाला पर सुनवाई की जाएगी, लेकिन बहुविवाह पर समीक्षा नहीं की जाएगी. कोर्ट ने कहा, ‘हम ये समीक्षा करेंगे कि तीन तलाक धर्म का अभिन्न अंग है या नहीं.’
सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के लिए अपने सामने तीन सवाल रखे हैं –
1-तलाक-ए बिद्दत यानी एक बार में तीन तलाक और निकाह हलाला धर्म का अभिन्न अंग है या नहीं?
2 क्या इन दोनों मुद्दों को महिला के मौलिक अधिकारों से जोड़ा जा सकता है या नहीं?
3 क्या कोर्ट इसे मौलिक अधिकार करार देकर कोई आदेश लागू करा सकता है या नहीं?
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सभी पक्ष अपनी जिरह इन्हीं मुद्दों पर करेंगे. जेएस खेहर ने फ़ैसला किया है कि तीन तलाक़ पर सुनवाई गर्मी की छुट्टियों में पूरी कर ली जाएगी. जस्टिस खेहर अगस्त में रिटायर होने वाले हैं.
पिछले दो सालों में इस मामले में कोर्ट में मुस्लिम महिलाओं ने याचिका दायर की है. ऐसा कहा जा रहा है कि इस प्रथा से महिलाओं का हक़ मारा जा रहा है और उनके साथ नाइंसाफी हो रही है. तीन तलाक़ एक शरिया नियम है जो मर्दों को तीन बार तलाक़ कहने से शादी ख़त्म करने का अधिकार देता है.
कैसे शुरू हुआ मामला?
उत्तराखंड के काशीपुर की शायरा बानो ने पिछले साल सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दायर कर एकसाथ तीन तलाक कहने और निकाह हलाला के चलन की संवैधानिकता को चुनौती दी थी. साथ ही मुस्लिमों की बहुविवाह प्रथा को भी चुनौती दी थी.
शायरा बानो ने डिसलूशन ऑफ मुस्लिम मैरिजेज ऐक्ट को यह कहते हुए चुनौती दी कि यह मुस्लिम महिलाओं को दो शादियों से बचाने में नाकाम रहा है. शायरा ने अपनी याचिका में मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत महिलाओं के साथ लैंगिक भेदभाव के मुद्दे, एकतरफा तलाक और संविधान में गारंटी के बावजूद पहले विवाह के रहते हुए मुस्लिम पति के दूसरा विवाह करने के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट से विचार करने को कहा है.
एक अन्य मामले में सुप्रीम कोर्ट की डबल बेंच ने खुद संज्ञान लिया और चीफ जस्टिस से आग्रह किया कि वह स्पेशल बेंच का गठन करें ताकि भेदभाव की शिकार मुस्लिम महिलाओं के मामले को देखा जा सके. सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार के अटॉर्नी जनरल और नेशनल लीगल सर्विस अथॉरिटी को जवाब दाखिल करने को कहा था और पूछा था कि क्या जो मुस्लिम महिलाएं भेदभाव की शिकार हो रही हैं उसे उनके मूल अधिकार का उल्लंघन नहीं माना जाना चाहिए.
भारत में क़रीब 14 लाख लोग तलाक़शुदा है और यह शादीशुदा आबादी का क़रीब 0.24 फ़ीसद हिस्सा है. इलाकों के हिसाब से देखा जाए तो बड़े राज्यों में गुजरात में सबसे ज़्यादा तलाक़ के मामले मौजूद हैं.देश के उत्तर पूर्वी राज्यों में तलाक़ के मामले ज़्यादा हैं. यूपी , हरियाणा, राजस्थान और बिहार में तलाक या अलग रहने की दर काफी कम है .
केंद्र सरकार पहले ही ट्रिपल तलाक के विरोध में अपना पक्ष कोर्ट में रख चुकी है. मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड इसे शरीयत से जुड़ा मसला बताता है.उसका कहना है कि ट्रिपल तलाक मजहबी मामला है और इन मामलों में अदालतें दखलंदाजी नहीं कर सकतीं. ऑल इंडिया शिया पर्सनल लॉ बोर्ड के मुताबिक शियाओं में इस प्रथा की कोई जगह नहीं है. बोहरा समुदाय में भी ज़्यादातर लोग इन तीनों मुद्दों को गैर इस्लामी करार देते हैं.