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कीर्ति गुप्ता :

अक्सर लड़कियों को अपनी पढ़ाई आधे में ही छोड़कर परिवार के दबाव में शादी जैसे बंधनों या फिर बाल मजदूरी जैसे कार्यों से अपना नाता जोड़ना पड़ता है. लेकिन रोशनारा और तरन्नुम दो ऐसी लड़कियां है जिन्होंने रुकावटों को तोड़ा और शिक्षा से नाता जोड़ा है और आज वह इस मुकाम पर है कि ब्रिटेन और अमेरिका में अपने देश की अशिक्षित लड़कियों की कहानी के माध्यम से फंड इकठ्ठा करती हैं.

दिल्ली के निजामुद्दीन की रहने वाली रोशनारा और तरन्नुम के परिवारों ने इनकी पढ़ाई अधूरी छुड़वाकर उन्हें छोटी उम्र में  शादी करने का फैसला किया, लेकिन दोनों ने अपने लिए आवाज़ बुलंद की और इस बात पर डटी रहीं कि उन्हें शादी नही पढ़ाई पूरी करनी है और पढ़-लिख कर अपने सपनों को एक खूबसूरत उड़ान देनी है.

रोशनारा और तरन्नुम निज़ामुद्दीन के “होप रिमेडायल स्कूल” में पढ़ते थे जहां उनकी मुलाक़ात एक एनजीओ जिसका नाम “रूम टू रीड” है से हुई और यह एनजीओ लड़कियों को शिक्षा देने और लिंग भेद को खत्म करने के लिए कार्य कर रहा है. रूम टू रीड ने ही लाइफ स्किल ट्रेंनिग से लड़कियों में एक नया आत्मविश्वास जगाया और जीवन में आने वाली मुश्किलों को हल करना सिखाया.

‘रूम टू रीड’ की शुरुआत 2000 में हुई और इस एनजीओ ने “गर्ल्स एजुकेशन प्रोग्राम ” को चलाया.  इस प्रोग्राम के जरिए इन्होंने पूरे भारत में 11,000 लड़कियों की शिक्षा लेने में मदद की. रोशनारा और तरन्नुम जैसी ही लगभग 800 से ज्यादा लड़कियां रूम टू रीड के इस प्रोग्राम को एशिया और अफ्रीका में रिप्रेजेंट करती हैं और बाकी लड़कियों की मदद के लिए विदेशों से फंड जमा करती है.

रूम टू रीड में गर्ल्स एजुकेशन प्रोग्राम के डायरेक्टर रणदीप कौर और कंट्री डायरेक्टर सौरव बेनर्जी ने 2020 तक 15 मिलियन बच्चों तक अपनी सहायता पहुंचाने का लक्ष्य रखा है. वुमनिया के जरिये इस एनजीओ की स्टूडेंट्स रोशनारा और तरन्नुम अपने जैसी गरीब परिवार की लड़कियों को हिम्मत करके अपना उज्जवल भविष्य बनाने का मैसेज देती है और लिंग भेद ना कर “सेव गर्ल चाइल्ड” और गर्ल्स एजुकेशन को बढ़ावा देने को कहती हैं.

 

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