‘RIGHT TO PROPERTY’ का इस्तेमाल करने में हिचकती क्यों है भारतीय महिलाएं

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Right to Property
Right to property- many women are not using their property right

रीवा सिंह:

बात शुरू करने से पहले यह स्पष्ट कर देना चाहती हूं कि यहां उस Right to Property (संपत्ति का अधिकार) का ज़िक्र नहीं हो रहा जो भारतीय संविधान के अंतर्गत मौलिक अधिकार में रखा गया था, जिसे बाद में हटा दिया गया.




आपको ज्ञात होगा कि Right To Property को लेकर पहले हमारे पास सात मौलिक अधिकार थे. अब 6 हैंं. यहां बात हो रही है संपत्ति के उस अधिकार की जिसके अनुसार भावी पीढ़ी में पैतृक संपत्ति का बंटवारा बराबर हो और जब ऐसा होगा तो मुझे पैतृक संपत्ति लिखने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी क्योंकि हर लड़की हर मां के पास भी अपनी संपत्ति होगी.




भारतीय समाज में लड़कियां पराया धन होती हैं और लड़का कुलदीपक होता है. कुलदीपक के लिए सबकुछ होता है और जो ख़ुद ही पराया धन है उसके लिए अलग से धन का क्या उपाय हो.  इसलिए माता-पिता की संपत्ति में उसका हक़ नहीं होता है.

रीवा सिंह

इसे नौतिकता का लिहाफ़ भी इस कदर ओढ़ाया गया है कि लड़कियां ख़ुद इसे किसी पाप की तरह मानती हैं. वो बहुत शालीन होकर, त्याग की देवी बनकर कहती हैं कि मां-बाप सब तो कर ही रहे हैं अब इसके बाद क्या संपत्ति लें?

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दूसरी ओर माता-पिता को भी लगता है कि लड़की की शादी में इतने पैसे लग रहे हैं वो अपने-आप में संपत्ति के बराबर है. होना ये चाहिए कि दहेज़ का विरोध हो और संपत्ति में हिस्सेदारी का समर्थन हो लेकिन दहेज़ मजबूरी बन जाती है और उसके बाद अलग से संपत्ति में हक़ मांगना स्वघोषित ग़लत हो जाता है.




हम कई बार संपत्ति में हक़ को दहेज़ जैसा मान बैठते हैं और उसका विरोध करते हैं. लड़कियों की एक बड़ी जमात दहेज़ का पुरज़ोर विरोध तो करती है लेकिन संपत्ति में हक़ को भी नकार देती है.

उन्हें यह समझने की ज़रूरत है कि संपत्ति में अधिकार बहुत आवश्यक है जो उन्हें सम्बल बनाता है, इसके होने भर से ही सामाजिक सत्ता की रचना होती है और चूंकि यह अभी पुरुष के हाथ में ही है, समाज पुरुषसत्तात्मक है.

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साथ ही यह भी समझा जाना चाहिए कि Dowry और Right To Property बहुत अलग चीज़ें हैं. संपत्ति के अधिकार में आपको अपने माता-पिता की संपत्ति का एक उचित हिस्सा ही मिलेगा फिर चाहें वो 100 एकड़ ज़मीन हो या दो गाएं हों.

इसके लिए उनपर अलग से दबाव नहीं बनता, ये अपने सामर्थ्य अनुसार होता है जबकि दहेज़ में मनमानी वसूली होती है, कई बार पिता अपनी बहुत-सी संपत्ति बेचकर उसकी पूर्ति करता है. बेटी को कार देने के लिए अपनी उम्र स्कूटर पर गुज़ार देने का दबाव झेलता है.

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