‘महीने की गंदी बात’ को स्वाती ने बना दिया ‘PERIOD ALERT’

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Period alert
स्वाती सिंह

उत्तर प्रदेश के बनारस के काशी विद्यापीठ ब्लाक के गांव देलहना, बन्देपुर, बछांव, खनाव, बेटावर, रामपुर, लठिया, खुशीपुर, कादेपुर समेत कई गांवों में इन दिनों ‘Period Alert’ कार्यक्रम चल रहा है. कार्यक्रम को चला रही है ‘मुहीम’ एक सार्थक प्रयास वेलफेयर सोसाइट की संस्थापक युवा पत्रकार, लेखिका और एक्टिविस्ट स्वाती सिंह. स्वाती इस कार्यक्रम को लेकर गांव की किशोरी और महिलाओं के बीच गई और पीरियड को लेकर समाज में चली आ रही मान्यताओं को तोड़ने के लिए आगे आने को कहा. अब इन गांवों में किशोरी और लड़कियां न केवल पीरियड पर खुल कर बात कर रही हैं बल्कि अब अपना ‘सैनटरी पैड’ भी खुद ही बनाने लगी है. 




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23 साल की उम्र में स्वाती ने इस सोसाइटी की शुरुआत महिला और जेंडर मुद्दों पर काम करने के लिए की. वे खुद भी महिलाओं और जेंडर से जुड़े मुद्दों पर सक्रिय लेखन कर रही हैं. मुहीम के ज़रिए स्वाती ने उत्तर भारत के वाराणसी क्षेत्र के ग्रामीण इलाके के उस मुद्दे पर काम करना शुरू किया है जिनपर यहां के समाज में बात करना भी वर्जित माना जाता है- यानी कि मासिकधर्म, जिसके अभियान का नाम ‘पीरियड अलर्ट’ रखा गया है. साथ ही वे महिलाओं को खुद ही अपना सैनटरी पैड बनाने का ट्रेनिंग भी दे रही हैं. महिलाओं को घर के पुराने सूती कपड़े को अच्छी तरह साफ़ करके पैड बनाने की तकनीक सिखाई जाती है जो न केवल सस्ती बल्कि स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से भी उनके लिए अच्छी साबित हो रही है.

स्वाती बताती हैं आज हम उस दौर में जी रहे है जहां सैनेटरी पैड पर टैक्स नहीं लगने की मांग लेकर शहरों में महिलाएं तमाम तरह से अपना विरोध-प्रदर्शन करती है, पर दुर्भाग्यवश ग्रामीण इलाकों में ये तस्वीर पूरी तरह से उलटी है. यहां सेैनेटरी पैड पर टैक्स की बात छोड़िए, मासिकधर्म पर बात नहीं की जाती है. इसलिए हमने ‘पीरियड अलर्ट’ नामक अभियान की शुरुआत की है, जिसके तहत अलग-अलग माध्यमों के ज़रिए हम महिलाओं और किशोरियों को उनके स्वास्थ्य और स्वच्छता के प्रति जागरूक बनाने की कोशिश कर रहे हैं.




अब नहीं है ‘गंदी बात’

ग्रामीण इलाकों में जहां महिलाओं और किशोरियों के बीच मासिकधर्म जैसे विषय को आमतौर पर ‘गंदा’ मानकर’ अक्सर छिपाया जाता है और इनपर बात नहीं की जाती, मुहीम की टीम समाज में मान्य कई धारणाओं को तोड़ते हुए उनसे इस विषय पर स्वास्थ्य बातचीत के प्रचलन को बढ़ावा देती है. इस कार्यक्रम को तहत बनारस जिले के आसपास के करीब तीस गांवों में चलाया जा रहा है. 

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स्वाती बताती हैं कि मुहीम के कार्यक्रम के तहत अब किशोरी और महिलाएं खुल कर इस मुद्दे पर बात करने लगी हैं. साथ ही अपने स्वास्यथ और साफ-सफाई के प्रति भी सचेत हो गई हैं. इस कार्यक्रम के तहत बातचीत के बाद महिलाओं और किशोरियों में नि:शुल्क ‘स्वस्थ्य पन्ना’ बांटा जाता है. जिसमें पीरियड और स्वास्थ्य से जुड़ी ज़रूरी बातों को प्रश्न-उत्तर के ज़रिए सरल भाषा में तैयार किया गया है.

मुहीम की टीम समय- समय पर महिलाओं और किशोरियों के साथ ‘मासिकधर्म’ के विषय पर कला-प्रतियोगिता का आयोजन भी करती है. इस प्रतियोगिता में प्रतिभागी मासिकधर्म से जुड़े अपने अनुभव, विचार और सुझाव कलात्मक तरीके से साझा करते हैं.

कपड़ा दान ‘पैडदान’

अपना सैनडरी पैड बनाने के लिए कई जगहों पर सिलाई करने वाली महिलाओं ने इसे कुटीर-उद्योग के तौर पर अपना लिया है. जिन्हें प्रोत्साहित करने के लिए मुहीम की तरफ से उन्हें सिलाई के लिए कपड़े और ज़रूरी सामान उपलब्ध करवाया जा रहा है. मुहीम सूती के कपड़े से बने सेनेटरी के लिए लोगों से कपड़े दान करवाता है जिसे इन्होंने कपड़ा दान ‘पैडदान’ नाम दिया है. लोगों से यह अपील की जाती है कि वे अपने घर के पुराने सूती कपड़े, चादर और तौलिए को अच्छी तरह साफ़ करके उन्हें दान करें. इसके बाद इन कपड़ों को स्वच्छता की दृष्टिकोण से अच्छी तरह दुबारा साफ़ करके सेनेटरी पैड बनाने के लिए महिलाओं को उपलब्ध करवाया जाता है.




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मुहीम के ज़रिए स्वाती सिंह को मासिकधर्म पर ग्रामीण क्षेत्रों में काम करने के लिए को बीते 30 अगस्त को हिंदी अखबार हिंदुस्तान और उत्तर प्रदेश कन्या शिक्षा एवं महिला कल्याण तथा सुरक्षा की तरफ की तरफ से आयोजित सम्मान समारोह में उन्हें अनवरत अमूल्य योगदान के लिए सम्मानित किया गया है.  अपने इस अभियान में मुहीम न केवल ज़मीनी स्तर पर बल्कि ऑनलाइन अपने लेखों, पोस्ट, वीडियो और फोटो के ज़रिए भी मासिकधर्म के बारे में लोगों को जागरूक करने का काम कर रही है.  मुहीम की वेबसाइट – http://www.muheem.com/  मुहिम की टीम में सात सदस्य हैं और सभी बीएचयू के छात्र हैं.

वुमनिया की तरफ से स्वाती को भविष्य की बहुत शुभकामनाएं..

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