बेबाकी से कहानियां लिखने वाली हिंदी की प्रसिद्ध लेखिका KRISHNA SOBTI को प्रतिष्ठित ज्ञानपीठ पुुरस्कार

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हिंदी की प्रख्यात लेखिका Krishna Sobti को साल 2017 का प्रतिष्ठित ज्ञानपीठ पुरस्कार मिला है. भारतीय ज्ञानपीठ के निर्णायक मंडल की शुक्रवार को हुई बैठक में कृष्णा सोबती के नाम का निर्णय किया गया. 




ज्ञानपीठ के निदेशक लीलाधर मंडलोई के मुताबिक, साल 2017 के लिए दिया जाने वाला 53वां ज्ञानपीठ पुरस्कार हिंदी साहित्य की मशहूर लेखिका Krishna Sobti को साहित्य के क्षेत्र में उनके उत्कृष्ट कार्य के लिए प्रदान किया जाएगा. पुरस्कार स्वरूप उन्हें 11 लाख रुपये, प्रशस्ति पत्र और वाग्देवी की कांस्य प्रतिमा प्रदान की जाएगी.

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ज्ञानपीठ बोर्ड के अध्यक्ष मशहूर लेखक और आलोचक नामवर सिंह का कहना है कि वह लीक से हटकर लिखने वाली उपन्यासकार हैं. उन्होंने हिंदी साहित्य को काफी संपन्न बनाया है.

कृष्णा सोबती बेबाकी और साहसी से लिखने के लिए जानी जाती हैं. महिलाओं के विषयों पर लिखते हुए उनके भाषायी तेवर को बहुत बोल्ड माना जाता रहा है. वे महिलाओं की आजादी की पक्षधर मानी जाती हैं लेकिन खुद को नारीवादी कहलाना उन्हें पसंद नहीं. 




भारत विभाजन की बात हो या स्त्री-पुरुष संबंधों की या फिर भारतीय समाज में आते बदलाव और मानवीय मूल्यों के पतन जैसे विषयों की उन्होंने बेबाकी से इन कहानियों को लिखा. 

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1966 में प्रकाशित उनका उपन्यास “मित्रो मरजानी” जिसके जरिये उन्होंने स्त्रियों की दैहिक आजादी के सवाल को मुखरता से उठाया था बहुत मशहूर और चर्चित हुआ. यह एक विवाहित महिला के स्वच्छंद व्यवहार से संबंधित है.

उनकी दूसरी रचना “सूरजमुखी अंधेरे के”  में भी एक स्त्री के बचपन और उसके संघर्ष की कहानी बयां की गई है. इसके अलावा डार से बिछड़ी, दिलो-दानिश, ऐ लड़की और समय सरगम जैसे उपन्यासों से उन्होंने हिंदी कथा साहित्य को एक ऊंचाई दी है. 




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कृष्णा सोबती का जन्म पाकिस्तान के गुजरात प्रांत में 18 फरवरी 1925 को हुआ था. विभाजन के बाद उनका परिवार दिल्ली आकर बस गया.  उन्हें 1980 में ‘जिन्दी नामा’ के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला, 1996 में उन्हें साहित्य अकादमी का फेलो बनाया गया जो अकादमी का सर्वोच्च सम्मान है.

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