कैसे करें CHILDREN से मन की बात?

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'कैसे करें बच्चों से मन की बात' कार्यक्रम में मौजूद अतिथि
'कैसे करें बच्चों से मन की बात' कार्यक्रम में मौजूद अतिथि

जूली जयश्री:

Children से मन की बात कैसे की जाए, उसके मन को कैसे समझा जाए, उन्हें दबावों से कैसे मुक्त रखा जाए, इसका कोई फार्मूला नहीं होता. हां लेकिन कुछ बातों का ध्यान रखकर, संवाद करके बच्चों के साथ माता-पिता के रिश्ते बेहतर बनाए जा सकते हैं और बच्चों को एक अच्छा नागरिक बनाया जा सकता है. इसी विषय पर एक सार्थक परिचर्चा की ‘ढ़ाई आखर फाउंडेशन’ और ‘बदलाव.कॉम’ ने सहयोग से. Womeniaworld.com भी इस कार्यक्रम का सहयोगी था. परिचर्चा में कई क्षेत्र के विशेषज्ञों ने भाग लिया. सभी वक्ताओं ने इस ओर ध्यान दिलाया कि आधुनिक युग में पेरेंटस और बच्चों के बीच के तनाव को दूर करने का सबसे अच्छा उपाय है कि बच्चों के साथ वक्त बिताया जाए.




कैसे करें बच्चो से मन की बात’ परिचर्चा का आयोजन गाजियाबाद के वैशाली सेक्टर 6 के मिलिंद पब्लिक स्कूल में किया गया. कार्यक्रम का संचालन Womenia की संपादक प्रतिभा ज्योति ने किया. उन्होंने कहा कि घर में बच्चों को बेहतर माहौल मिल सके इसमें पेरेंटस की बड़ी भूमिका है. बच्चों को इतना स्पेस दें कि वे आपसे अपने मन की बात शेयर कर सकें. उन्होंने बच्चों को करियर ओरिएंटेड बनाने से ज्यादा एक बेहतर इंसान बनाने पर जोर दिया. 6ठी कक्षा में पढने वाली गौरिका ने अपने मन की बात करते हुए बताया कि बच्चों को रोकने टोकने की बढती प्रवृति पर रोक लगाने की जरुरत है, वहीं दूसरी बच्ची तमन्ना ने बच्चों के परवरिश में ग्रेंड पेरेंट्स की भूमिका को अहम बताया.




गाजियाबाद के सीटी एसपी आकाश तोमर ने इस ओर ध्यान दिलाया कि आजकल बच्चों के घर छोड़ कर जाने की घटनाएं बढ़ रही है. इसकी बड़ी वजह है कि बच्चे अपने पेरेंटस और घर के प्रति लगाव महसूस नहीं करते. वहीं बाहरी दुनिया उन्हें प्रभावित करती है. उन्होंने अभिभावकों से कहा कि वे बच्चों को घर में अच्छा माहौल दें और उनके साथ बेहतर रिश्ते बनाकर रखें, क्योंकि बाहरी दुनिया में वे अपराध, डिप्रेशन और दूसरी गलत चीजों का शिकार हो सकते हैं.  उन्होंने माता-पिता को सर्तक किया कि वे अपने बच्चों को अपराध का शिकार होने औऱ अपराधी प्रवृति का बनाने से रोकें.




ज़ी डिज़िटल मीडिया से जुड़े दयाशंकर मिश्र ने कहा कि बच्चों के मन की बात करना आज की तारीख में कोई रॉकेट साइंस जैसा हो गया है. हम बच्चों से डिकनेक्ट होते जा रहे हैं, इस वजह से  बच्चों में डिप्रेशन आ रहा है. टेक्नॉलोजी के विस्तार से घर में सब अलग-अलग पड़ गए हैं और यही पेंरेंटस और बच्चों में तनाव का कारण बन रहा है. आरोग्य हॉस्पिटल के डॉक्टर उमेश वर्मा  ने इस ओर ध्यान दिलाया कि जिन बच्चों के लिए हम दिन रात भागमभाग कर रहे हैं, हम उन्हीं को समय नहीं दे पा रहे हैं. इससे बच्चों को एंग्जाइटी निरोशिस की समस्या हो रही है. उन्होंने कहा कि बच्चा जब कोई बात लेकर आपके पास आए तो उसे ध्यान से सुनें, डांटे नहीं.

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'कैसे करें बच्चों से मन की बात' कार्यक्रम
‘कैसे करें बच्चों से मन की बात’ कार्यक्रम

समाजशास्त्री और काउंलर डॉ नीलम सक्सेना ने भी इसी बात पर जोर दिया कि बच्चों के साथ संवाद करना और उन्हें टच करना हर पेरेंटस के लिए जरुरी है. इससे बच्चे अपने माता-पिता पर भरोसा कर सकते हैं और अपने मन की बात कर सकते हैं. डॉ सक्सेना ने कहा कि हम अपने सपनों का बोझ बच्चों पर न लादें, हर बच्चा अलग होता है उनकी परवरिश भी उसी के हिसाब से करना चाहिए. वहीं खेतान पब्लिक की शिक्षिका मंजूला श्रीवास्तव ने कहा कि मैं सिंगल पेरेंट थी लेकिन मैंने अपने बच्चे की परवरिश इस तरह की अब वो शादीशुदा हो गया है लेकिन अपने मन की हर बात मुझसे कहता है. उन्होंने कहा कि बच्चों के साथ समय बिताने का कोई विकल्प हो ही नहीं सकता, कितनी भी व्यस्तता के बाद भी हमें अपने बच्चों के साथ वक्त गुजारना चाहिए .

डॉ अंजली चौधरी ने बच्चों को स्पर्श के मैजिक से नजदीकी का एहसास कराने पर जोर देते हुए कहा कि आपके बच्चे को आपसे अधिक कोई नहीं समझ सकता ,बच्चों के अंदर भी पेरेंट्स को लेकर ये विश्वास पैदा करना जरुरी है. वहीं  चाइल्ड काउंसलर रीना पॉल ने सुझाव दिया कि बच्चों के साथ बच्चा बनकर उनके साथ दोस्ती करना आज के समय की सबसे बड़ी जरुरत है.

आज के व्यस्त जीवनशैली में पेरेंट्स की भूमिका चुनौतीपूर्ण हो गई है इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता.ऐसे में टाइम मैनेजमेंट सीखकर बच्चों के साथ क्वालिटी टाइम कैसे बिताया जा सकता है इस दिशा में ये परिचर्चा एक सार्थक प्रयास कही जा सकती है. कार्यक्रम के अंत में बदलाव.कॉम के संचालक पशुपति शर्मा ने सबका धन्यवाद किया.

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