#MyFirstBlood की 28वीं कड़ी में आज अपने अनुभव शेयर कर रही हैं वाराणसी के असवारी गांव की नजमा. नजमा को याद है कि पीरियड में उन्हें तरह-तरह की पाबंदी के बारे में तो जरुर बताया गया लेकिन किसी ने यह नहीं बताया कि इस दौरान Hygiene का ख्याल कैसे रखना है?
नजमा:
मैं वाराणसी से थोड़ी दूरी पर बसे असवारी गांव (आराजी लाइन ब्लॉक) की रहने वाली हूं और लोक समिति की सक्रिय कार्यकर्ता हूं. मेरी मुख़्य भूमिका ग्रामीण क्षेत्रों में महिला सशक्तिकरण एवं महिला स्वयंसेवी समूह का निर्माण करवाने की है.
‘मुहीम, वुमनिया और लोक समिति’ के इस कैंपेन के जरिए मुझे ऐसे विषय पर अपनी बात कहने का मौका मिला है जिस पर आमतौर पर घर या समाज में बात ही नहीं की जाती.
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ग्रामीण परिवेश से ताल्लुक रखने के कारण मेरे पहले पीरियड का अनुभव भी अन्य महिलाओं की तरह था. जब पहली बार मेरे पीरियड शुरू हुए तब मेरे पास इसकी कोई जानकारी नहीं थी और मैं बुरी तरीके से डर गई थी.
>तब अम्मी ने मुझे उन दिनों सूती कपड़े का इस्तेमाल करने को कहा. लेकिन पीरियड क्यों होता है और इस दौरान मुझे खान पान और Hygiene का किस तरह ख्याल रखना है, इसके बारे में कुछ भी नहीं बताया गया.
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जबकि मांओं को इस दौरान अपनी बेटियों को साफ-सफाई रखने, अपने स्वास्थय का ध्यान रखने और उचित खानपान के बारे में बताना चाहिए. लेकिन हमारे यहां क्या होता है मांएं, चाची, दादी-नानी ये तो बताएंगी कि ये मत करना, वो मत करना, ये मत छूना-वो मत छूना लेकिन स्वास्थय और सफाई की देखरेख के बारे में कोई नहीं बताएगा.
मुझे भी इस दौरान कई तरह के रोक-टोक का पाठ पढाया गया कि इस दौरान मुझे नमाज़ अदा नहीं करना है और न फातिया करना. बाकी अचार-पापड़ छूने के लिए भी मना किया गया. अब सोचती हूं तो लगता है काश हम बेटियों को पीरियड से जुड़ी भ्रांतियों के बजाए इससे जुड़े वैज्ञानिक कारण बताएं तो ज्यादा अच्छा हो.
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