#MyFirstBlood-पीरियड कोई TABOO नहीं है मगर लोगों की नज़र में इससे ज्यादा कुछ नहीं?

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Taboo
निशि शर्मा

पीरियड पर आधारित हमारे कैंपेन #MyFirstBlood की छठी कड़ी में आज पढ़िए निशि शर्मा के अनुभव. वे जमशेदपुर से हैं लेकिन फिलहाल दिल्ली में रह रही हैं.. निशी ने अपने अनुभव में न केवल पीरियड को Taboo समझे जाने के सामाजिक अवधारणा की बात कही है बल्कि ‘ना बोल न सुन’ पाने वाली मां के साथ अपने रिश्तों का भी बहुत मार्मिक वर्णन किया है… 




निशि शर्मा:

‘पीरियड’ कोई Taboo नहीं है, मगर अब तक लोगों की नज़र में ये इससे ज़्यादा कुछ हो नहीं पाया. आज मैंने एक ऐड देखा- सैनिटरी नैपकिंस के ऐड में दिखाया जाने वाला वो ब्लू लिक्विड, जिसका महिलाओं से कोई लेना-देना नहीं, का रंग अब बदला जाएगा. अब वह लाल होगा. ख़ून का रंग लाल. हमारे पीरियड वाला रंग लाल.




इस लाल रंग से ख़ून का नाता तब जुड़ा जब मैं आठवीं में थी. मैं घबराई थी? बहुत! मैं रोई? बिल्कुल नहीं! बल्कि घबराहट में हंसी और कंपकपी एक साथ लग रही थी. मेरी मां बोल-सुन नहीं सकतीं. मुझे बचपन से और लड़कियों के बदले ज़्यादा समझदार बनने की नसीहतें दी जाती थीं.

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पता नहीं मैं समझदार थी या नहीं, पर छठी तक पता नहीं था कि ये ‘पीरियड’ स्कूल में जो आठ पीरियड्स हुआ करते हैं, उससे अलग है और इतना अलग है. छठी में मैं जिस लड़की के साथ बैठी, उसे पांचवीं से पीरियड हुआ करते थे. उसी ने सबसे पहले बताया कि उसे ये क्या हुआ करता है जिसमें वो 6-6 दिन तक परेशान रहा करती है. आज वो लड़की मेरी बेस्ट फ़्रेंड है.




मेरे आठवीं के साल का अंत होने को था. क्लास में लड़कियों के बीच ये बात होने लगी कि किसको-किसको पीरियड होता है. सब बताने लगीं. कई चुगली भी करने लगीं कि फलाने ने झूठ बोला, वो इस बार कुंवारी पूजन में नहीं बैठी थी, उसे पीरियड्स आते हैं.

मैं उस मंडली की सबसे बेवकूफ़ लड़की थी क्योंकि मुझे पता ही नहीं था कि मेरी मां को भी पीरियड्स आते होंगे. ये डिस्कशन उस दिन दिनभर हुआ. जब-जब क्लास ब्रेक होता, हम सब इसी मुद्दे पर बात करते. इंटरेस्टिंग भी था और सबको पीरियड होता नहीं था इसलिए अनोखा भी.

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मैंने तब-तक तो अपनी बेस्ट फ़्रेंड को भी नहीं बोला था कि मेरी मम्मी बोलती-सुनती नहीं हैं.( जिस दिन बताया था, वो रोने लगी थी.) तो औरों से कुछ बोल ही नहीं पा रही थी. न कुछ पूछा ही था. बस उन्हें सुन रही थी. उस दिन जब घर लौटी तो बैग पटका और बाथरूम की ओर भागी. मुझे सुसु आई थी.

सुसु करके उठने लगी तो देखा की टॉयलेट सीट पर कुछ लाल-लाल है वो ख़ून था. पर सच कहूं तो मुझे ‘पीरियड’ के अलावे कुछ ख़याल ही नहीं आया. तुरंत से स्ट्राइक किया कि ये क्या! मुझे पीरियड्स आ गए! मेरा दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़कने लगा. घबराहट में मैं 15-20 मिनट तक बाथरूम में ही रही.

मेरे बाथरूम में प्लास्टिक के बड़े-बड़े डिब्बे रखे रहते थे. हमारे यहां पानी चला जाया करता था, इसलिए स्टोर करके रखना होता था. मैं उसी पर बैठ गई और सोचने लगी कि अब करूं क्या? भाई दोनों छोटे थे. मां को कैसे समझाऊं? उससे कह नहीं पाती मैं कुछ आज भी.

वो अक्सर मुझसे कुछ कहना चाहती है. मैं हां-हां में सिर हिलाकर उसे ठगती हूं. ताकि उसे लगे कि वो जो कह रही हैं मैं समझती हूं. हम तीनों भाई-बहन अपनी मां को ऐसे ही ठगते हैं. मुझे उसकी आधी बातें समझ नहीं आती और अपना कुछ बताना नहीं आता.

बस ज़रूरत भर इशारे आते हैं, उसे भी, मुझे भी. कोई नहीं था जिससे मैं कह सकती थी. पर बिना कहे इस ख़ून के साथ रहती कैसे? मुझे कपड़ा लेने का आइडिया आया क्योंकि सहेलियों के मुंह से सुना था कि ऐसा भी करती हैं औरतें. पर मुझे घिन्न आई. कपड़ा सरक सकता था या सिर्फ कपड़ा ख़ून कैसे सोखता? इचिंग होती.

मैंने सोचा मैं दो पैंटी पहन लेती हूं, और दो टाइट्स. वही किया. फिर भी मैं कितना ही लेयर तैयार करती? इचिंग भी हुई और गंदा भी लगा. पागलों की तरह कुछ घंटे बिताने के बाद, उन चारों को धोना पड़ा. फिर दूसरे ‘चार’ इस्तेमाल किए. रात में सोने गई तो लेटे-लेटे रोने लगी, पीरियड के लिए नहीं, मम्मी के लिए.

मैं बहुत शर्मिंदा हूं ये कहते हुए पर मुझे सबके जैसी मां चाहिए थी. बाप नहीं चाहिए था सबके जैसा क्योंकि मुझे बाप चाहिए ही नहीं था. मुझे लगता था कि मां काफी होती है वो जब रहती है तो बच्चे का बाल भी बांका नहीं होता. बच्चे के पास बस एक मां होनी चाहिए और कुछ भी नहीं.

सुबह उठी तो मेरे कपड़े गंदे हो चुके थे, बेडशीट भी. मैं सबको लेकर नहाने चली गई. मेरे धुले पैंटी और टाइट्स सूख चुके थे. मैं तैयार हुई स्कूल गई. मैंने कैसे वो चार दिन काटे मैं जानती हूं. मैं घबरा जाती हूं वो सब सोच-सोच. ये मैंने अगले चार-पांच महीने तक किया, जब तक कि ‘पैड’ नहीं लाई.

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मैं शर्म से ला नहीं पाती थी, डर भी लगता था. लगता था किसी ने पूछा तो क्या कहूंगी? आज भी छोटे भाई को नहीं कह पाती कि पैड लाकर दे दे, बल्कि सबसे छोटे वाले को बोल दिया करती हूं कि पीरियड्स आ गए थे इसलिए कहीं नहीं गई. लड़के मित्रों से भी कह देती हूं कि पीरियड का पहला दिन है, मैं परेशान हो जाऊंगी इसलिए आज नहीं कल मिलते हैं.

ये चीज़ें अब करने लगी हूं। मुझे नहीं पता मां को कब समझ आया था पर उन पांच महीनों में नहीं आया था. फिर हम लोग पीरियड वाले इशारे करने लगे. उसे होता तो वो, मुझे तो मैं. एक दिन मुझे पता चला कि मां कपड़े लिया करती थी मैंने देखे उसके कपड़े. वो झेंपते हुए अपनी पैंटी और कपड़े को छुपा दिया करती.

मैं पैड लाती तो उसे भी इस्तेमाल करने कहती. वो कभी करती, कभी नहीं। धीरे-धीरे मां मुक्त हो गई इस झंझट से. मेनोपॉज़ हो गया और मैं अकेली पड़ गई.

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