#MyFirstBlood की 27वीं कडी़ में आज जानिए उत्तर प्रदेश के एक गांव की चंद्रकला विश्वकर्मा, सीमा राय और रोशनी बानो के अनुभव. चंद्रकला अपने बीते दिनों को याद कर कहती हैं पीरियड के नाम पर उन्हें तंग किया जाता और निषेधों को मानने के लिए मजबूर किया जाता था. उस दौरान उन्हें सोने के लिए Separate Bed दिया जाता था और हमारे बर्तन भी अलग कर दिए जाते थे.
स्वाती सिंह:
हमारा अभियान अब अंतिम चरण में आ गया है. यह अभियान शहरी महिलाओं से होते हुए गांव की महिलाओं तक भी पहुंचा. इसी क्रम में हम उत्तर प्रदेश के एक गांव की महिलाओं से यह जानने आए कि पीरियड में उन्हें किन पाबंदियों को मानना पड़ता है तो लगा कि क्या शहरी क्या ग्रामीण सबके अनुभव मानों एक जैसे ये नहीं छूना, वो नहीं छूना आदि-आदि. पीरियड में महिलाओं के साथ ऐसा व्यवहार क्यों होता है कि मानो वे अछूत हो गए हैं… वीडियो में सुनिए ये क्या बता रही हैं.?
चंद्रकला विश्वकर्मा-
मैं सिलाई सिखाती हूं. हमारे समय में पीरियड में बहुत सारे परहेज करने पड़ते थे. पीरियड होने पर हमें बहुत तंग किया जाता था. घर में सबसे अलग रहने को कहा जाता. हमें सोने के लिए अलग बिस्तर दिया जाता और रसोई के बर्तन भी अलग कर दिए जाते थे.
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सीमा राय
हमें बचपन से यही बताया गया है कि पीरियड में गेहूं और चावल नहीं छूना चाहिए क्योंकि इसमें कीड़े लग जाते हैं और वो ख़राब हो जाता है.
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रोशनी बानो-
हमें सिखाया गया है कि पीरियड हो जाए तो कु़रान नहीं छूना चाहिए. जिस कमरे में क़ुरान की तस्वीर रही हो वहां नहीं जाना चाहिए.
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