#MyFirstBlood-इतने सारी DIRECTIVE सुनकर तो मेरे होश ही उड़ गए थे, 11 दिन एक झोपड़ी में बिताई

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Directive
शिवा रंजनी, तमिलनाडु

#MyFirstBlood की 29वीं कड़ी में आज जानिए तमिलनाडु की शिवा रंजनी के अनुभव. पहली बार उन्होंने जैसे ही अपनी मां को अपने कपड़े गीले होने के बारे में बताया उन्हें इतने सारे Directive मिले कि उनके होश उड़ गए. बाद में जो हुआ उसे याद करके उनके मन में आज भी एक टीस उठती है. 




शिवा रंजनी:

वैसे तो मैं तमिलनाडु (मदुरै) की हूं, लेकिन मेरी परवरिश अंडमान में हुई, इस वजह से मैं पीरियड पर होने वाले तमिल रीति रिवाज से पूरी तरह से अनजान थी.

जब  मैं 13 साल की हो गई थी और 8वीं क्लास में पढती थी उसी दौरान एक दिन मेरे पेट में तेज दर्द शुरु हुआ. अभी खुद को संभालने की कोशिश में ही लगी थी तभी लगा जैसे मेरा कपड़ा गीला हुआ जा रहा है. मैं भागती हुआ मां के पास गई और उनसे अपनी परेशानी बताई.




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वैसे तो पीरियड को लेकर मुझे कोई खास जानकारी नहीं थी पर मां ने इतना बता रखा था कि यदि कभी ऐसा हो तो पहले मुझे बताना. मैंने भी वही किया. मेरी बात सुनते ही मां झटपट मुझे एक कमरे में ले गई और वहीं एक कोने में चादर बिछाकर मुझे बिठा दिया.




फिर मुझे पीरियड को लेकर विस्तार से बताया गया. इतनी सारी हिदायतें और दुश्वारियां सुनकर मेरे तो होश उड़ गए.अब तक जो परेशानी चंद लम्हों की लग रही थी वो आगे पहाड़ जैसा लगने लगा. एक के बाद एक करके न जाने कितने पाबंदियों में मैं जकड़ दी गई .

अब मुझे अगले चार दिन तक इसी कोने में पड़े रहना था. किसी भी इंसान या समान को छूने की मनाही थी. मेरे लिए अलग तरह का खाना बनता था जो उसी जगह पर मुझे परोसा जाता था.

चार दिन बीतने पर मुझे उस कमरे से बाहर निकाला गया. सभी आंटियां मिल कर मुझे नहलाने ले गई (रिवाज के तहत मां या बहन इसका हिस्सा नहीं हो सकते ) नीम ,हल्दी और बेसन लगाकर नहलाया गया. इसके बाद मामा के लाए कपड़े और गहने पहनाए गए.

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लेकिन ये तो बस इंटरवल था, क्लाइमेक्स तो अब शुरु होना था. मेरा अगला ठिकाना एक झोपड़ा बना, जिसे ताड़ और नीम के पत्ते से मामा ने बनाया था. इस झोपड़ी में मुझे 5 वें से 11वें दिन तक रहना था .

11 वें दिन बाद मुझे उस झोपड़ी से निकाल कर फिर उबटन से नहलाया गया और नई साड़ी और गहने पहना कर दुल्हन की तरह सजाया गया. इसके बाद चावल और गुड़ से एक स्पेशल डिश बना. उस डिश को हाथ में लेकर मेरे मामा ने पीठ पर तीन बार थपथपाया.

ये एक शुद्धिकरण की प्रक्रिया थी. जिस झोपड़ी में मैं रही थी उसे तोड़ कर मामा दूर ले गए और जला आए. पिछले 11 दिनों तक मैंने जितने भी कपड़े पहने थे, उसे घर का कोई सदस्य हाथ भी नहीं लगा सकता था.

पहले दिन वाले कपड़े को छोड़कर बांकी सब कपड़ों को धोबी से धुलवाया गया. जिस कपड़े में पहला पीरियड हुआ था वो मैं दोबारा नहीं पहन सकती थी.

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अब बारी आई सेलिब्रेशन की. 11 दिन के बाद मैरेज हॉल बुक कर बड़ा फंक्शन हुआ था. इस समारोह में भी मामा की अहम भागीदारी होती है. इस समारोह के रीति रिवाज लगभग शादी जैसे ही होते हैं.

सभी सगे संबंधियों को आमंत्रित कर बेटी के बड़े हो जाने की खुशियां मनायी जाती है. लेकिन इस खुशी के बीच भी मेरे मन में लगातार एक टीस सी उठ रही थी. मैं समझ नहीं पा रही थी एक तरफ पीरियड से पूर्ण होने का उल्लास तो दूसरी तरफ उसे लेकर दकियानूसी सोच क्यों है ?

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