सुमन बाजपेयी
हमारी उम्र में न इंटरनेट था, न ही सोशल मीडिया और न ही किसी किस्म का एक्सपोजर. बेफिक्र सी जिंदगी में खेल-कूद और पढ़ाई के अलावा और किसी चीज के लिए जगह ही नहीं थी.
ऐसे में सेक्स या फर्टिलिटी से जुड़ी बातों के बारे में जानकारी होना तो असंभव बात थी. दूर-दूर तक इस बात का आभास नहीं था कि पीरियड्स जैसी भी कोई चीज होती है या महीने में पांच दिन लड़की के शरीर से खून बहता है.
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घर में भी इस तरह की बातें नहीं होती थीं. हालांकि मुझसे बड़ी दो बहनें थीं. पर मैं एक तो घर में सबसे छोटी थी और मेरे भाई-बहनों और मेरे बीच उम्र का 10-12 साल का फासला था.
उस समय मैं शायद 13 साल की थी जब मुझे पीरियड्स शुरू हुए थे. एक दिन मैं सुबह उठी और नींद में ही बाथरूम गई. पर जैसे ही मेरी नजर मेरी पैंटी पर पड़ी मैं रोने लगी. मैं डर से कांप रही थी और नींद तो काफूर ही हो चुकी थी.
मम्मी भागती हुईं और पूछने लगीं कि क्या हुआ है तो मैंने कहा देखो न मेरी पैंटी में खून लगा है. मुझे चोट लग गई है. यह सुनते ही मम्मी ने जोर से अपने माथे पर हाथ मारा और बोलीं, हे भगवान इतनी जल्दी हो गया. फिर मेरी बहन जो मुझसे 8 साल बड़ी हैं उनसे कहा कि इसे समझा दे कि क्या करना है.
मेरी बहन ने मुझे कपड़े का पैड बनाकर दिया और कहा कि इसे अपनी पैंटी में रख ले. बस इसके अलावा उन्होंने भी मुझे कुछ और नहीं बताया. मैंने मासूमियत से पूछा कि थोड़ी देर में मेरी चोट ठीक हो जाएगी न. मुझे स्कूल भी तो जाना है.
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वह बोलीं, नहीं इसे तुझे चार-पांच दिन लगाना होगा, जब तक कि खून आना बंद न हो जाए और जैसे ही पैड गंदा हो जाए मुझे बताना मैं तुझे नया पैड दे दूंगी. मैंने सोचा कि एक बार की बात होगी या मुझे कोई बीमारी हो गई है. पर मेरी बहन ने कहा कि अब ऐसा हर महीने होगा, इसलिए तु अपनी डेट याद रखना.
जब उन्होंने बताया कि उनके साथ भी हर महीने ऐसा होता है तो हम एक दम पक्की सहेली बन गए. असल में मेरी उनसे खूब लड़ाई होती थी. हमारे घर में इन तीन-चार दिनों में कोई भी काम नहीं करवाया जाता था. बस एक तरफ बैठे रहो, खाना-पीना सब वहीं मिल जाएगा.
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भाई व डैडी कुछ काम करने को कहते तो मां कह देती कि यह नहीं करेगी. भाई जो मुझसे दस साल बड़े थे, मजाक में कहते, अच्छा तू अछूत हो गई है. उनके सामने आने में मुझे बाद में बहुत शर्म आने लगी मानो पीरियड्स होना कोई बहुत बड़ा अपराध है.
सच में उन दिनों ऐसा ही लगता था और मैं सोचती थी कि काश मुझे कभी पीरियड्स न हों. इतनी रोक-टोक और सबसे अलग होने का एहसास कचोटता था और लड़की होने पर गुस्सा भी आता था.
इससे जुड़ी एक और मजेदार घटना है. जिसके बारे में आज भी सोचती हूं तो अपनी बेवकूफी पर हंसी आती है. पर क्या करती, समझ जो नहीं थी. एक दिन जब मैं स्कूल गई तो पता नहीं कैसे एक रेड डॉट मेरी सफेद स्कर्ट पर लग गया.
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मेरी क्लासमेट ने कहा तू बहुत बड़ी बीमारी का शिकार हो गई है और अगर यह बात मैंने क्लास में सबको बता दी तो कोई तुझसे न तो बात करेगा और न ही साथ बिठाएगा. उसने उस डॉट पर सेफ्टी पिन लगाकर उसे छिपा दिया.
मैं बहुत डर गई थी. तब उसने कहा कि अगर मैं उसे कैंटीन से इडली लेकर खिलाऊंगी तो वह किसी को कुछ नहीं बताएगी. नासमझी की वजह से मुझे उसके ब्लैकमेल का शिकार होना पड़ा.
काश मुझे सही जानकारी दी गई होती तो कितनी परेशानी से बच जाती. काश जिस बात से औरत का मां बनना तय होता है उसके प्रति इनती वर्जनाएं न होती. रेड डॉट को उसकी कमजोरी नहीं समझा जाता. यह रेड डॉट औरत को स्ट्रांग बनाता है और उसे मां बनने का गौरव प्रदान करता है.
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