स्वर्णलता:
दक्षिण दिल्ली के पॉश इलाके में बनी खूबसूरत कोठी पर बाहर बोगनवोलिया के फूल रंगीनियत बिखेर रहे थे तो दीवार से सटे चम्पा के फूल हवा को महका रहे थे. छोटे से ल़ॉन के बाद कोठी में दाहिने ओर करीने से सजे ड्रांईगरूम में वह सरयू के साथ बैठी थी. सरयू उसकी मौसेरी बहन करीब-करीब उसी की उम्र की. बहन से ज़्यादा दोस्त, अलमस्त, अल्हड, माडर्न, दिल्ली के एक बड़े माडर्न माने जाने वाले कालेज से ग्रेजूएशन के बाद अमेरिका जाकर पीजी करने की तैयारी में, लेकिन इसी बीच मौसी ने उसकी शादी तय कर दी. मौसी का अच्छा पैसा वाला परिवार, मौसा सरकार में मलाईदार विभाग में. शादी तय होने की वज़ह से ही वह आज सरयू के साथ यहां बैठी है अच्छे कुशन वाले सोफे पर, डॉक्टर का इंतज़ार करते हुए. Character के चमकदार शीशे को यूं टूटते देखा था उसने.
सरयू बहती रहती अपनी ज़िंदगी में, उसे किनारे की तलाश नहीं थी और ना ही शायद ज़रूरत महसूस हुई अभी, इस बहाव में उसके बहुत से दोस्त बने. दोस्त बने तो जिस्मानी रिश्ते बनाने में भी उसे कोई परहेज़ महसूस नहीं हुआ. वो भले ही वन नाइट स्टेंड नहीं रहे होंगें, लेकिन कई बार रातों के साथ दोस्त भी बदले, ना तो उसने उन्हें याद रखने की कोशिश की और ना ही परेशान हुई.
सरयू का यौवन निखर रहा था. लड़कों की निगाहें चेहरे से फिसलती तो अटक ही जाती उसके उभारों के दरमियान. सरयू भी खूब समझती थी. सरयू और वह अक्सर साथ साथ शॉपिंग के लिए जाते, खासतौर से जब उसे ब्रा और खास फिटिंग की ड्रैस खरीदनी होती. सरयू ट्रायल रूम में उसे साथ ले जाती और उन खास मौकों के लिए ब्रा को ट्राई करते उससे राय पूछती ..वह कई बार मज़ाक में तो, कभी गंभीर होकर तेज़ी से बढ़ते ब्रा के साइज पर सवाल करती तो वो ट्राई करते करते हंसती और कहती तुम क्या जानो, तुमने तो सिर्फ चुपचाप बहना सीखा है. सरयू बताती कि किस तरह उसके फ्रेंड ने उसके उन उभारों को प्यार किया था पागलों की तरह हां सच .वो उन्हें देखकर मानो पागल ही हो गया
लेकिन जब सरयू की शादी की बात आई तो वह चौकन्नी हो गई, उसने तुरंत ही सरयू को समझाया, फ्रेंड और पति का फर्क. कैसे उसकी जिंदगी का मज़ा एक रात में ज़िंदगी को बर्बाद करने के लिए काफी होगा. रिसेप्शन पर बैठी लड़की ने दो कप कॉफी लाकर सामने रख दी .सरयू टेबल पर पड़ी वीमन मैग्जीन के पन्ने पलट कर फैशन और डिजाइन देखने लगी, तब तक वह कहीं अपनी दुनिया में उतराने लगी थी, कॉफी ने उसके स्वाद को थोड़ा सा जगाया होगा, लेकिन यादों ने उसमें कड़ुवाहट भरने में कसर नहीं छोड़ी.
पिछले साल यही नवम्बर का महीना था जब वो शादी करके ससुराल पहुंची थी. एक मल्टीनेशनल कंपनी में काम करता नौजवान स्मार्ट पति और ठीक ठाक सा दिखता परिवार. शादी भले ही मां बाप की पसंद से हुई हो, लेकिन उसे भी अच्छा लगा था. वह खुद नेशनल लेवल की बास्केट बॉल प्लेयर रही थी और उसके चाहने वाले भी बहुत रहे, लेकिन वो अपने में ही सिमट कर रही हमेशा ..सुहागरात का इंतज़ाम पास की एक होटल में किया गया था. पांच सितारा होटल का कमरा बेहतरीन तरीके से सजा हुआ. रुमानी महक और लाइट्स ने माहौल खुशनुमा बना रखा था, बेड पर दिल की शेप में फैले गुलाब. उन्होंनें दरवाज़ा बंद किया और जोश में से एक पल में ही बांहों में समेट लिया, संभलने का मौका भी नहीं दिया. वह सोच रही थी कि पहले प्यार की बातें, पहचान और कुछ रोमांस होगा, लेकिन उन्होंने सीधे ही… .
ब्रा के हुक झटके से खुले तो गुलाबी रंग गहरा होने लगा और कुछ ही मिनटों में सरसराहट, रफ्तार में बदल गई और पहली बार उसे नवम्बर की सर्द होती रात में बदन पर पसीना महसूस हुआ, वह खुद को या अपनी शर्म को चादर में समेटने लगी, लेकिन वो अचानक उठे और बेड पर सलवटों में सिमटती चादर को देख रहे थे ..कि अचानक उनके चेहरे का रंग बदलने लगा, उसे समझ नहीं आया कि क्या हुआ, लेकिन फिर उन्होंने थोड़ी गर्म आवाज़ में कहा कि चादर पर ख़ून के धब्बे तो नहीं है .. वो एक झटके में मानो आसमां से गिरी.
सवेरे घर पहुंचे तो घर में ननद और भाभी रात के बारे में पूछने को उतावली और छेड़खानी करती हुई ,लेकिन शाम तक तो सारे घर का माहौल ही बदल गया. एक सफ़ेद चादर ने उसके चरित्र को दाग़दार बना दिया, करैक्टरलैस. जब स्त्री-पुरुष आपस में यौन संबंध बनाते है तो पुरुष अपने ‘मर्द’ होने के खिताब को जीत लेता है, वहीं औरत अपनी ‘इज्जत’ खो देती है. अगर संबंध शादी से पहले बनाया गया तो पुरुष की इज्जत पर कोई फ़र्क नहीं पड़ता लेकिन औरत को ‘चरित्रहीन’ कहकर जिंदगीभर उसे ताने दिए जाते है. औरत ‘चरित्रहीन’ कहलाएगी या ‘पतिव्रता’ इसका निर्णय सुहागरात के समय उसके योनि से निकले या न निकले खून पर के आधार पर तय किया जाता है.
अब उसे समझ आया कि मां बार बार क्यूं मना करती उसे बॉस्केटबॉल खेलने से, लेकिन उसकी जिद पर पापा ने कभी मना नहीं किया और वह नेशनल टीम में बेहतरीन खिलाड़ी रही, लेकिन आज उसकी इसी ताकत ने उसे कमज़ोर बना दिया. खेल के दौरान वो झिल्ली टूट गई जिसने अपने साथ उसके चरित्र के चमकदार शीशे को भी तोड़ दिया. उसकी सुनने वाला कोई नहीं था. एक पल में सब कुछ बिखर गया. उसे मायके भेज दिया गया वापस नहीं आने के लिए. मम्मी पापा कई बार समझाने गए उन्हें लेकिन कोई असर नहीं पड़ा वह फिर से अपने को समेटने में लगी थी, लेकिन जब सरयू की शादी की बात आई तो वो चौकन्ना हो गई.
सरयू ने तो कई बार हदें लांघ ली थी, लेकिन वह उसी शादीशुदा ज़िंदगी को बर्बाद होने नहीं देखना चाहती थी, इसलिए शादी से पहले वह सरयू को लेकर यहां क्लिनिक में आ पहुंची थी . hymenoplasty की विशेषज्ञ डाक्टर के पास. रिसेप्शनिस्ट ने अंदर डाक्टर के पास जाने का इशारा किया ..खूबसूरत नौजवान डॉक्टर ने भरोसा दिया कि सब कुछ ठीक हो जाएगा. hymenoplasty से सरयू फिर से कुंवारी हो जाएगी. उसके होने वाले पति को कभी उसके कौमार्य भंग होने का अंदाज़ा भी नहीं होगा. थोड़ा खर्चा आएगा.
डाक्टर के पास से निकल ही रहे थे कि तभी सरयू के होने वाले पति का फोन उसे मोबाइल पर बज उठा कॉफी पीने के लिए बुला रहा था. उसने सरयू को बाय किया और वह टैक्सी में बैठ गई वसंत कुंज में डिजायनर मॉल तक जाने के लिए. उसे सरयू की सुहागरात के लिए खरीदारी करनी थी..उसे हंसी आई पता नहीं क्यों, सरयू को यहां लाने की अपनी समझदारी पर या फिर मर्दों के “समझदार” होने पर ..उसके इशारे पर टैक्सी तेज़ी से आगे बढ़ गई..