प्रतिभा ज्योति:
मां के साथ बच्चों का रिश्ता अनूठा होता है. जब बच्चा छोटा होता है तो मां ही उसकी अपनी पूरी दुनिया होती है. लेकिन एक मां ऐसी हैं जिनके बच्चे बड़े भी हो गए लेकिन खुद को मां की दुनिया से अलग नहीं कर पाए. हम बात कर रहे हैं हजारों बच्चों की मां Sindhutai Sapkal के बारे में जिन्हें हजारों अनाथ बच्चों की दुनिया संवारने के लिए आज ‘नारी शक्ति पुरस्कार’ से सम्मानित किया जा रहा है.
अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर सिंधुताई सपकाल को यह सम्मान राष्ट्रपति के हाथों दिया जाएगा. वे पुरस्कार लेने के लिए दिल्ली में है और वुमनिया से खास बातचीत में अपनी जिंदगी और यहां तक के अपने सफर के बारे में विस्तार से बात की.
Ministry of Women & Child Development to confer Nari Shakti Puraskar, highest civilian honour for women in India, to 30 women/organisation on on 8th March. The recipients are- Jayamma Bhandari, K Syamalakumari, Vanastree, Gargi Gupta, Dr Sindhutai Sapkal…
— ANI (@ANI) March 7, 2018
गर्भवती थीं तो पति ने घर से निकाल दिया
वुमनिया से बातचीत में सिंधुताई ने बताया कि उनका जन्म महाराष्ट्र के वर्धा जिले में एक चरवाहा परिवार में हुआ था. जब वे 10 साल की थीं और चौथीं कक्षा में पढ़ती थीं तभी पिता ने उनकी शादी 30 साल के एक आदमी से कर दी. 20 साल की हुई तब तक तीन बच्चों की मां बन गई.
वे कहती हैं कि एक घटना ने मेरे जीवन की दिशा बदल दी. मेरी ससुराल में गांव के मुखिया ने कुछ लोगों की मजदूरी मार ली, मैंने इसकी शिकायत डीएम से कर दी. इस बात पर मेरे पति ने मुझे घर से निकाल दिया. उस समय मैं गर्भवती थी और मेरी एक बच्ची 16 दिन की थी.
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जब मुझे घर से निकाला गया तो मेरे पास कोई ठिकाना नहीं था. मैं अकेली औरत और साथ में बच्चे रात में कहां जाती? सो मैंने श्मशान का सहारा लिया और रात में वहीं सो जाती. मैंने भीख मांग कर अपना और अपने बच्चों का गुजारा करने लगी.
एक अनाथ बच्चा मिला तो जीने की राह मिल गई
वे आगे बताती हैं कि एक दिन रेलवे स्टेशन पर एक अनाथ बच्चा मिला और उसी दिन से मैंने अनाथ बच्चों की मां बनने का फैसला कर लिया. मैंने तय कर लिया था कि अब मैं ऐसे सभी बच्चों को अपनाऊंगी जिनका कोई नहीं है. अनाथ बच्चे मिलते गए और मैं उन्हें अपनाती गई. यही वजह है कि आज मेरा इतना बड़ा परिवार बन गया है.
मैं खुद अनाथ बन गई थी इसलिए अनाथ बच्चों का दुख समझ सकती थी. जिससे भी रिश्ता बनाया वो मेरा बन गया. जिस भिखारी को खाना खिलाया वो मेरा रिश्तेदार बन गया और अब तक मेरा साथ नहीं छोड़ा है.

उनका कहना है कि मैं मानती हूं कि इंसानियत का रिश्ता सबसे बड़ा होता है और इसी रिश्ते ने मुझे हजारों बच्चे, 250 दामाद और 50 बहूएं और कई पोते-पोतियां दी है. जिसका कोई नहीं है उसकी मां मैं हूं.
एक बच्चे ने माई पर ही पीएचडी कर ली
किसी बच्चे के लिए सिंधुताई ही उनके लिए सबकुछ कैसे बन गई इसका बेहतरीन उदाहरण यह है कि एक बच्चे ने सिंधु ताई के ऊपर ही पीएचडी कर ली. उनके गोद लिए कई बच्चे आज बड़े पदों पर है. कोई डॉक्टर है कोई इंजीनियर तो कोई वकील. उनकी खुद की बेटी भी एक वकील हैं.

ताई बताती हैं कि बच्चे जब पढ़-लिख बड़े हो गए, उनका शादी-ब्याह भी हो गया लेकिन वे अपनी मां को नहीं भूले हैं. उनके साथ रिश्ता पूर्ववत ही है, वे अक्सर मिलने आते हैं, हमारी संस्था को अपनी कमाई से दान भी देते हैं और दूसरे अनाथ बच्चों की मदद करते हैं और ऐसे बच्चों को अपना रहे हैं.
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उन्हें विश्वास है कि इंसानियत के साथ इंसान का रिश्ता कभी न टूटेगा. सिंधुताई को लोग मां कहकर पुकारते हैं और इस वे पुणे में रहती हैं. पुणे, वर्धा और सासवड में है उनके अनाथ आश्रम हैं जहां उनकी ममता और स्नेह की छांव में सैंकड़ों बच्चे पल रहे हैं और शिक्षा हासिल कर रहे हैं. वे गोरक्षा केंद्र भी चलाती हैं और 175 गांयों की देखभाल कर रही हैं.
पति को माफ किया और बेटे के तौर पर ही स्वीकारा
वक्त बदला तो पति को भी अपने किए का पछतावा हुआ. वे बताती हैं कि जब वे लौट कर आए तो मैंने साफ कह दिया कि अब वे एक पति के तौर पर उन्हें स्वीकार नहीं कर सकती क्योंकि वे सबकी मां बन गई है. मैने उन्हें माफ किया और बड़े बेटे के रुप में स्वीकारा. पति ने भी खुद को अनाथ आश्रम के कामों में समर्पित कर दिया. पिछले साल उनकी मृत्यु हो गई.
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सिंधुताई के साथ हमेशा रहने वाले विनय सिंधुताई सपकाल बताते हैं कि सैंकड़ों बच्चों की तरह मां ने मुझे भी गोद लिया था. मैं डेढ़ महीने का था तो मैं मां को रेलवे स्टेशन पर मिला था. मां ने न केवल मुझे ममता और प्यार दिया बल्कि एक नई जिंदगी दी.
आज मैंने एलएलबी कर लिया है. मेरी शादी हो गई है और मेरा एक बच्चा है. मां की ममता मिलने के बाद हम जैसे तमाम अनाथ बच्चों को कभी महसूस ही नहीं हुआ कि हमारा कोई नहीं था. हम सबके लिए हमारी मां हमारे लिए ईश्वर के समान है. 14 नवंबर यानी बाल दिवस के दिन हम उनका जन्मदिन मनाते हैं और सभी उनके जन्मदिन पर इकट्ठा होते हैं.
सैंकड़ों पुरस्कारों से सम्मानित पर यह सम्मान बहुत बड़ा
समाज और बच्चों के प्रति उनके इस विशेष योगदान को देखते हुए सिंधु ताई को अब तक 270 से ज्यादा राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है. राष्ट्रपति के हाथों ‘नारी शक्ति पुरस्कार’ मिलने को बड़ी उपलब्धि मानते हुए वे कहती हैं यह सम्मान बहुत बड़ा है.

Sindhutai Sapkal के ऊपर 2010 में एक मराठी फिल्म ‘मी सिंधुताई सपकाल’ भी बन चुकी है. लड़कियों और महिलाओं के लिए उनका यही संदेश है कि खुद को कमजोर मत मानो और मुश्किलों का डट कर मुकाबला करो.
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