संयोगिता कंठ:
Barkha Versha एक दिन अपने एक साल के बच्चे को पढ़ा रही थीं. तभी उनकी मेड ने कहा- दीदी आप तो अपने बच्चे को पढ़ा लेती हैं लेकिन मैं गरीबी और काम के कारण अपने बच्चे को नहीं पढ़ा पाती हूं. उन्होंने अपनी मेड से कहा कि क्या तुम कल से अपने बच्चों को मेरे घर भेज सकती हो और बस यहीं से उन्हें अपने जीवन का एक बड़ा मकसद मिल गया.
अगले दिन से उनके घर पर दो बच्चे पढ़ने लगे और यह सिलसिला चल पड़ा. दो से चार और चार से कई बच्चे. पड़ोस में काम करने वाली कई कामवालियों ने भी अपने बच्चों को उनके घर भेजना शुरु कर दिया. घर में ही एक स्कूल चल पड़ा और अनौपचारिक रुप से अभिज्ञान फाउंडेशन की नींव भी यहीं पड़ गई.
लेखक, सोशल वर्कर, टीचर आप उनका परिचय किसी भी रुप में दीजिए उन्हें लोग ऐसे बरखा के रुप में जानते हैं जो गरीब और झुग्गी-झोपड़ियों के बच्चों के जिंदगी को शिक्षा से रोशन कर रही हैं. अब तक वे करीब 650 गरीब बच्चों को पढ़ा चुकी हैं.
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उनकी संस्था ने 286 बच्चों को गोद लिया है जिनकी पढ़ाई का पूरा इंतजाम किया जा रहा है. बच्चों को शुरुआत में 8वीं तक संस्था में ही पढ़ाया जाता है और जो बच्चे आगे पढ़ना चाहते हैं या पढ़ाई में अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं बरखा उनके लिए दिल्ली-एनसीआर के मेनस्ट्रीम स्कूलों में एडमिशन दिलाने की कोशिश भी करती हैं.
वुमनिया से खास बातचीत में बरखा ने बताया कि मेड के बच्चे को पढ़ाने से हुई शुरुआत को हमने अभिज्ञान फाउंडेशन में तब्दील किया और 20 साल से इस काम कर रही हूं. फाउंडेशन के तहत दिल्ली के लक्ष्मी नगर और गाजियाबद के लोनी और वसुंधरा के स्लम एरिया में बच्चों को पढ़ाने का सिलसिला जारी है.
हालांकि यह इतना आसान काम नहीं था. स्लम में जाकर बच्चों को क्लास में आने के लिए तैयार करने के लिए उन्हें बच्चों के साथ-साथ उनके मां-बाप को भी तैयार करना पड़ता. शुरु-शुरु में इसमें बहुत परेशानी हुई लेकिन बाद में बच्चे और अभिभावक खुद उनके पास आने लगे.
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बरखा बताती हैं कि अब तक करीब 650 बच्चे उनकी संस्था से पढ़ चुके हैं. जो बच्चें आगे पढ़ना चाहते हैं या अच्छा प्रदर्शन करते हैं हम उन्हें दूसरे स्कूलों में पढ़ने के लिए भेजते हैं. इस काम में कई लोग हमारी मदद करते हैं. उनकी संस्था अनाथ और दिव्यांग बच्चों के साथ कई तरह के वर्कशॉप भी करती है.
उनके अभिज्ञान फाउंडेशन के साथ कई बड़े पत्रकार और शिक्षक जुड़े हैं. राज्यसभा टीवी के वरिष्ठ पत्रकार अरविंद सिंह इस संस्था के प्रेसिडेंट हैं. दो शिक्षक हैं जो बच्चों को नियमित पढ़ाते हैं. इसके अलावा कुछ कॉलेज के बच्चे वॉलंटियर्स हैं जो पढ़ाने और बच्चों के साथ कई तरह की एक्टिविटी कराने में मदद करते हैं. हैं.
उनकी संस्था अनाथ और दिव्यांग बच्चों के साथ कई तरह के वर्कशॉप भी करती है. ब्लड डोनेशन कैंप चलाती है और बच्चों को एजुकेशन टूर भी कराती है. बरखा यूनाइटेड रिलिजंस इनिशिएटिव की मेंबर है ये शांति और सद्भाव के लिए काम करते हैं.
वे Educator India की निदेशक है और Drishti Foundation Trust और Misha Charitable Trust के एडवाइजरी बोर्ड में भी हैं. UNESCO World Heritage Center की कार्यकारी सदस्य भी हैं. जिसके जरिए वे इंडियन क्लासिक म्यूजिक और डांस और कलाकारों को विदेशों में प्रमोट करती हैं.
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उनका कहना है कि इस काम में भी उन्हें बहुत गर्व महसूस आता है क्योंकि भारतीय संस्कृति और कला को बढ़ावा मिलता है. उन्हें लिखने का भी शौक है और विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में वे लिखती रहती हैं. लिखने का शौक उन्हें तब से है जब वे कक्षा 11वीं में थीं.
अपने उत्कृष्ट कार्य के लिए बरखा को कई पुरस्कार मिल चुके हैं. इसी 6 मार्च को All India Achiever Conference ने उन्हें Inspiring Woman Achiever Award for the year 2018 से सम्मानित किया है. इससे पहले उन्हें Empowering Woman Award, Rajeev Gandhi Excellence Award और Media Excillence अवार्ड सहित कई पुरस्कार मिल चुके हैं.
वे कहती हैं कि मुझे उस दिन वो बड़ा अवार्ड मिला था जब एक कूड़ा उठाने वाली बच्ची ने 12वीं पास करके अपने समान दूसरे बच्चों को पढ़ाने का बीड़ा उठाया. जब मैंने स्लम के बच्चों को पढ़ाना शुरु किया तो मैंने देखा कि कूड़ा उठाने वाली बच्ची कूड़े से अखबार उठाती थी.
मैंने उससे पूछा पढ़ोगी तो कहने लगी कि मेरा काम करना जरुरी है वरना मेरे मां-बाप नाराज होंगे. इस पर मैंने उसे रोज रोज 10 रुपए देने और पढ़ाने की बात कही तो वो तैयार हो गई. उस दिन के बाद से वह रोज मेरे पास आने लगी और उसने 12वीं पास कर ली.
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उसने मेरे बेटे के साथ ही 12वीं की. रिजल्ट आने के बाद उसने कहा मैं एमबीए करुंगी या लॉ करुंगी. जब मैंने उसके आगे की पढ़ाई के लिए उसकी फीस देने की इच्छा जताई तो उसने मना कर दिया और कहा मैं भी आपकी तरह बच्चों को पढ़ाकर अपनी फीस इकट्ठा करुंगी.
उनकी एक इवेंट मैनेजमेंट कंपनी है. जो अभिज्ञान फाउंडेशन के बच्चों के लिए खर्च जुटाने के लिए इवेंट कराती है. वे अब ऑर्गेन डोनेशन के लिए भी जागरुकता फैलाना चाहती हैं. उन्होंने अपना नेत्रदान तभी कर दिया था जब वे 10वीं में थीं.
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