वर्णिका की क्या ग़लती थी. यही कि वह रात में सड़क पर निकली. क्या इसलिए किसी को भी यह खुली छूट मिल गई कि कोई उसका पीछा करे या उसके अपहरण की कोशिश करे. क्या किसी लड़की के रात में अकेले निकलने पर किसी की मर्द को उस औरत का अपहरण कर लेने, उसका रेप करने और उसे मार कर फेंक देने की छूट मिल जाती है? पुरुषों की इसी मानसिकता को चुनौती देने के लिए महिलाओं ने एक दिन रात में सड़क पर निकलने का फैसला किया है. Social Media पर #MeriRaatMeriSadak का Campaign चलाया जा रहा है जिसके तहत महिलाएं रात में दिल्ली में सड़कों पर निकलेंगी. सोशल मीडिया पर चल रहे इस कैंपेन को महिलाओं का खूब समर्थन मिल रहा है.
इस कैंपेन पर रीवा सिंह ने अपने फेसबुक पोस्ट में लिखा है- बस अभी घर में कदम रखा है 11:40 बजे. ये कोई वक़्त है? हां, क्योंकि दिन ढल जाने के बाद भी वक़्त ज़िंदा रहता है. मैं रातों को जी भरकर जीती हूं, खुद में भर लेना चाहती हूं. अब भी अक्सर ही रात में 11-12 बजे एमजी रोड मेट्रो स्टेशन से घर (डीएलएफ़ फेज़ 2) तक पैदल ही आती हूं. सड़क पर कोई नहीं दिखता सिवाय वॉचमैन के तब मुझे मैं दिखायी देती हूं.
वर्णिका से जो सवाल किये जा रहे हैं वो धरती की हर दूसरी लड़की से पूछ-पूछकर घिस दिए गए हैं. रात के सवा बारह बजे बाहर क्यों? ये सवाल अपने कुलदीपक राज-दुलारों से नहीं पूछा जाता. हमसे पूछा जाता है- तो जवाब है-
# ताकि ये सड़कें रात में भी सड़कें ही बनी रहें.
# ताकि हमारे दिन में भी कुल 24 घण्टे हों.
# क्योंकि सड़कों का टैक्स हम भी देते हैं.
# क्योंकि दिन ढलने के बाद इन सड़कों पर खतरे का साइनबोर्ड नहीं लगाया जाता.
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वहीं गीता यथार्थ यादव लिखती हैं- आओ सड़क पर चले,
हर घटना के बाद पूछा जाता हैं— रात को बाहर क्या कर रही थी. !!?? चलो सहेलियों, रात बताओ.
किस रात दिल्ली की सड़कों पर उतरा जाये. करेंगे क्या? कुछ नहीं, घर से पानी का बोतल लाना, चिप्स भी. रात भर सड़कों पर इधर से उधर घूमेंगे.