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कीर्ति गुप्ता

आजकल महानायक अमिताभ बच्चन एक नया नारा दे रहे हैं ‘कंपोस्ट बनाओ-कंपोस्ट अपनाओ’. स्वच्छ भारत अभियान के तहत दिए जाने वाले अमिताभ बच्चन के इस नारे का मकसद शहरों को इकोफ्रेंडली बनाने के साथ-साथ लोगों को कंपोस्ट का प्रयोग खाद के रुप में करने के लिए जागरुक करना भी है. दिल्ली की डॉ आशा पालीवाल में यह जागरुकता एक साल पहले ही आ गई थी. उन्होंने 19 मार्च 2016 में घर के बेकार और बड़ी मात्रा में निकलने वाले गीले कचरे से कंपोस्ट बनाना शुरु कर दिया. उन्होंने अपने इस अभियान को नाम दिया है “प्रतिदानम”.

प्रतिदानम का अर्थ है प्रकृति ने जो कुछ दिया है उसे वापस करना. ‘प्रतिदानम’ का मकसद है फल और सब्ज़ी के गीले छिलकों और कचरे को एक जगह एकत्रित करके उससे खाद का निर्माण करना और इस खाद से पेड़-पौधे लगाकर ग्रीन इंडिया को बढ़ावा देना है. डॉ आशा ने प्रतिदानम को स्थापित करने के लिए बैंगलोर की एक संस्था “डेली डंप” से खाद बनाने वाली मशीनें मंगवाई. डेली डंप की मशीनों को मंगाने में 80 हजार रुपए खर्च हुए. इस अभियान में अभी 30 परिवारों का योगदान है जिन्हें आशा ने अपने साथ जोड़ा है.


डॉ आशा बताती हैं कि खाने-पीने की बेकार चीजों के इस्तेमाल से बनी इस खाद में फंगस नही होती जबकि गोबर से बनी खाद में फंगस पाई जाती है और यह भूमि के भीतर पदार्थों को सड़ाकर, मीथेन गैस पैदा नहीं करती और इस खाद में किसी भी प्रकार के कैमिकल नही होता जो पेड़-पौधों के लिए बेहद लाभकारी है. वे कहती हैं कि यह बायो कंपोस्ट पर्यावरण और मिट्टी के अनुकूल होती है. इसके इस्तेमाल से भूमि की गुणवत्ता में भी सुधार होता है. इस खाद के इस्तेमाल से मिट्टी में जिन पोषक तत्वों की कमी होती है वह भी पूरी हो जाती है.

वे बताती हैं कि प्रतिदानम का मकसद व्यवसाय लगाकर पैसे कमाना नही बल्कि हर घर से कचरे के रूप में निकलने वाली वेस्टेज से फैलने वाले प्रदूषण को कम करना है. लेकिन इसका अर्थ यह बिलकुल नही है कि इसे आप अपने रोजगार का साधन नहीं बना सकते बल्कि इससे घरेलू व्यवसाय भी चलाया जा सकता है. उनके मुताबिक कंपोस्ट में करियर भी बनाया जा सकता है क्योंकि यह खाद आसानी से मार्केट में नहीं मिलते. यदि घर में इसे तैयार किया जाए तो इसे आसानी से अच्छी कीमतों पर बेचा जा सकता है. इसे बनाना भी बेहद आसान है. इसे तैयार करने के लिए एक गड्ढ़ा खोद और उसमें फल और सब्जियों के छिलके और अन्य गीले कचरों को तीन-चार महीने छोड़ देने के बाद यह आसानी से तैयार हो जाता है. इससे घर के कचरे को बाहर फेंककर गंदगी फैलाने से तो बच ही सकते हैं वहीं दूसरी तरफ इसका सदुपयोग भी कर सकते हैं.
मूलरूप से आगरा की रहने वाली डॉ आशा एक स्कूल में संस्कृत और लाइफ स्किल विषय की टीचर होने के साथ-साथ पेंरेंटस और बच्चों की काउंसलर भी हैं. वातावरण में बढ़ते प्रदूषण को रोकने के लिए प्रतिदानम अभियान की बेहतरीन सोच और जज़्बा उन्हें आगे भी कई ऐसे कार्य करने की शक्ति और प्रेरणा प्रदान करता है.
वुमनिया से बातचीत में आशा ने महिलाओं को एक सन्देश भी देने की कोशिश की है कि एक जागरूक महिला होने के नाते वातावरण को सुरक्षित रखना उनका उत्तरदायित्व है और अपनी रसोई से आने वाली बेकार चीजों का फिर से प्रयोग कर राष्ट्र को बेहतर बनाने में अपना योगदान दें सकती हैं. उनका कहना है कि जिस प्रकार एक महिला अपने घर-परिवार को संवारती और संजो कर रखती है उसी प्रकार प्रकृति के  हित में काम करके भी समाज में खुशहाली ला सकती है.

ध्यान देने वाली बात है कि भारत से हर दिन लगभग 1.54 लाख मीट्रिक टन सॉलिड कचरा निकलता है, जिसमें से 50 फीसदी कचरा ऑर्गेनिक यानी जैविक और 30फीसदी इनऑर्गेनिक होता है. यदि इन कचरों का उपयोग हो जाए तो हमारा शहर कितना साफ-सुथरा हो जाए.

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