यूपी के विधानसभा चुनावों के दौरान समाजवादी पार्टी में चले पारिवारिक झगड़े और राजनीति को देखकर लगता रहा कि यादव परिवार में कोई एक दूसरे से बात करने और शक्ल देखने को भी तैयार नहीं है. यादव परिवार की दोनों बहुओं डिम्पल यादव और अपर्णा यादव के बीच तो कोई बोलचाल ही नहीं दिखती थी, लेकिन अखिलेश सरकार के दौरान सबसे ज़्यादा फायदा अपर्णा यादव ने ही उठाया. यादव सरकार में गोशाला के नाम पर करोड़ों रुपए अपर्णा का संस्था को दिए गए.
अखिलेश यादव के मुख्यमंत्री काल में उत्तर प्रदेश गो सेवा आयोग ने गोरक्षा और गो सेवा करने वाली संस्थाओं को जो फंड मिले उसमें सबसे ज्यादा 86% फीसदी फंड केवल अपर्णा यादव के जीव आश्रय संस्था को दिया गया. जीव आश्रय संस्था नगर निगम के कान्हा उपवन, अमौसी में गौशाला को चलाती है
आरटीआई से मिली सूचना के अनुसार वित्तीय वर्ष 2012-17 के पांच साल में गोशालाओं को कुल 9 करोड़ 66 लाख रुपये का फंड दिया गया इसमें से 8 करोड़ 35 लाख रुपये अकेले जीव आश्रय संस्था को मिला, जो कुल फंड का 86.4 फीसदी है. इतना ही नहीं साल 2012-13, 2013-14 तथा 2014-15 में इस निधि से अकेले जीव आश्रय संस्था को ही फंड मिला, इसमें पहले साल 50 लाख, अगले साल 1करोड़ 25 लाख रुपए और तीसरे साल में एक करोड़ 41 लाख रुपए था.
वित्तीय वर्ष 2015-16 में जीव आश्रय को 2 करोड़ 58 लाख रुपए और दूसरी संस्था श्रीपाद बाबा गोशाला, वृन्दावन को 41 लाख का जबकि 2016-17 में 3 करोड़ 45 लाख रुपए के कुल फंड में 2 करोड़ 55 लाख रुपए अकेले जीव आश्रय को मिला. बाकी चार संस्थाओं में सबसे ज़्यादा 63 लाख रुपये श्रीपाद गोशाला को दिया गया.
यूपी में बीजेपी की योगी सरकार आने के बाद वित्तीय वर्ष 2017-18 में उत्तरप्रदेश गौसेवा आयोग ने अब तक 1 करोड़ पांच लाख का फंड दिया है लेकिन इसमें जीव आश्रय शामिल नहीं है. इसमें सबसे ज़्यादा 63 लाख का फंड दयोदय गोशाला, ललितपुर को मिला है. हालांकि यूपी में बीजेपी सरकार बनने के तुरंत बाद अपर्णा यादव और उनके पति प्रतीक यादव ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यानाथ से वीवीआईपी गेस्ट हाऊस में मुलाकात की थी और अपनी गौशाला के बारे में बताया था. हालांकि उस समय मुलाकात के कुछ और मायने लगाए गए थे.
यूपी बीजेपी ने अपर्णा यादव की संस्था को मिले पैसे की जांच कराने की मांग करते हुए अखिलेश यादव के पारिवारिक समाजवाद पर तंज कसा है. अपर्णा यादव की तरफ से कहा गया है कि उनकी गोशाला में एक हज़ार 650 गौधन है इसमें से 900 से ज़्यादा बैल और सांड है बाकी जो गाएं हैं, वे भी बीमार और कमजोर है. कुल मिला कर 60-65 लीटर दूध हर दिन होता है जो वहां काम करने वाले केयरटेकर परिवारों के ही काम आ जाता है और यहां कोई डेयरी नहीं चलती यानी कोई कमाई का दूसरा साधन नहीं है.