#MyFirstBlood- पापा को कैसे बताती, अपनों के बीच अकेले थी, MUMMY आईं तो लिपट कर घंटों रोई

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Mummy

#MyFirstBlood की 30वीं कड़ी में आज जानिए उनके अनुभव जो अपना नाम तो नाम नहीं बताना चाहतीं लेकिन अपने अनुभव जरुर शेयर करना चाहती हैं. पहली बार पीरियड उन्हें तब आया जब Mummy घर पर नहीं थी, बस पापा थे. ब्लड निकलने लगा, पापा से कैसे बतातीं. किसी तरह एक दिन गुज़ारा. जब Mummy आईं तो उनसे लिपट कर खूब रोईं.




मेरी मां की नौकरी गांव में थी इसलिए पापा हम तीनों भाई बहनों को पढने के लिए अपने साथ हजारीबाग ले आए. दो भाई और पापा के बीच रहते कभी किसी तरह की असुविधा या असहजता नहीं हुई.

जिंदगी बहुत मजे में कट रही थी. अभी तो मेरे अंदर लड़का और लड़की के शारीरिक परिवर्तन को लेकर कोई बात ठीक से समझ भी नहीं आई थी. तभी पीरियड की शुरुआत ने मुझे अपने ही लोगों के बीच अकेला कर दिया. पहली बार मम्मी के साथ न होने की कमी खली थी.




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मैं पांचवी क्लास में पढती थी, तभी एक सुबह जब सो कर उठी तो लगा जैसे मेरा कपड़े गीले हो गए हैं, डर और शर्मिंदगी के मारे में हताश हो गई. मुझे लगा आज अचानक मैंने बिस्तर कैसे गीला कर दिया?




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मैं भागकर बाथरुम गई. अब जो कुछ नजर आया वो बेहद खौफनाक था. अपने कपड़े को खून से सना देखकर मुझे कुछ भी समझ नहीं आ रहा था. मैं बेतहाशा रोए जा रही थी .अब तक मुझे पीरियड को लेकर कोई जानकारी नहीं थी, इसलिए तरह- तरह का डर हो रहा था.

इतनी भयानक बात किसी से शेयर करनेकी हिम्मत भी नहीं थी. अब तक स्कूल जाने का वक्त भी हो चुका था, पापा लगातार आवाज दे रहे थे. जैसे-तैसे मन को समझाया कि स्कूल से आने तक सब ठीक हो जाएगा. लेकिन अभी लगातार निकल रहे ब्लड को लेकर कोई इंतजाम तो करना ही था.

घर में काफी ढूंढने पर एक रजाई का पुराना कवर मिला. मैंने उसे ही लपेट कर पैड बना लिया और स्कूल चली गई. ब्लड के डर से छुट्टी हो जाने तक अपनी सीट से चिपकी रही . छुट्टी होने पर जब मैं बेंच से उठी तो मेरे स्कर्ट पर दाग पड़ चुका था.

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दाग देखकर मैम ने कोई मदद करने के बदले मुझसे सिर्फ इतना कहा कि अपना ध्यान रखो. हलांकि मेरे स्कर्ट का कलर डार्क था ब्लड समझ में नहीं आ रहा था फिर भी दाग को लेकर दोस्तों के सवालों से लगातार जूझती रही. मैं सबको सिर्फ इतना ही बता पायी की कुछ लग गया होगा.

घर पहुंचने पर भी मेरे छोटे भाई की नजर कपड़े पर गई उसके सवाल का भी मैंने वही जबाव दिया. दिन बीतते गए पर मेरी हालत और खराब हो गई. ब्लड रुकने का नाम नहीं ले रहा था. मैं मम्मी को याद कर बहुत रोई थी.

आंखो के आगे बस अंधेरा नजर आ रहा था कहीं से किसी मदद की उम्मीद नहीं थी और ये सिलसिला रुकने का नाम नहीं ले रहा था. चार दिन इसी हालत में निकल गए और ये तूफान भी गुज़र गया लेकिन इस चार दिन में मैं जिस मानसिक स्थिति से गुजरी उसे बयां करने के लिए कोई शब्द नहीं हो सकता.

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वे चार दिन मेरी जिंदगी के भयानक दिन था जिसे याद करने से अब भी मेरी रुह कांप जाती है.  खैर अगले महीने गर्मी की छुट्टी में जब मम्मी हजारीबाग आई तो मेरे कपड़े देखते ही उन्हें समझ में आ गया. फिर उन्होंने मुझे पीरियड के बारे में सबकुछ विस्तार से बताया और सैनिटरी पैड को लेकर भी जानकारी दी.

ये सब सुनते ही मुझे उस दर्द की याद आ गई आई और मैं घंटो मम्मी से लिपट कर रोती रही थी. काश मम्मी आपने मुझे ये सब पहले ही बता दिया होता तो शायद मैं इतने आतंक और आत्मग्लानि से नहीं गुजरती .