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अकेले हैं तो क्या ग़म है?

  • 2/1/2017 11:36:24 AM
  • तेरी मेरी कहानी

नीलम बाधवा

ईश्वर ने मुझे क्या नहीं दिया था? एक बहुत प्यार करने वाला पति, दो प्यारी बेटियां, धन-दौलत, संपन्नता और अपने परिवार के बीच ढ़ेर सारी खुशियां. हम हमेशा खुश रहते थे, मेरे पति कहा करते थे, चाहे कुछ हो जाए मुस्कुराना और खुश रहना कभी मत भूलना. उनकी यह बात हमेशा मुझे याद रहती है, इसलिए उनका साथ बेशक छूट गया लेकिन उनकी यह बात मैं आज तक नहीं भूली हूं.

वुमनिया के जरिए अपनी कहानी कहने का मौका मिला है मुझे हैं तो मैं यह सबसे कहना चाहती हूं कि जीवनसाथी का साथ छूट जाने और उम्र बढ़ने पर लोग अक्सर उदास रहने लगते हैं या ऐसे रहते हों मानो अब इस जिंदगी के कोई मतलब नहीं, लेकिन सच्चे मायनों में जिंदगी के हर एक पल को जीना चाहिए.

शादी के बाद 1980 में मैं अपने पति के साथ मध्यप्रदेश के जबलपुर गई. सेंट्रल स्कूल में पढ़ाना शुरु किया. दो जुड़वां बेटी हो गई तो नौकरी छोड़नी पड़ी. पति का इलेक्ट्रानिक्स का बिजनेस था, अच्छा खासा बिजनेस चल रहा था. हम काफी साधन संपन्न थे. लक्ष्मी की मुझपर बहुत कृपा थी. हमने मेडिकल का बिजनेस शुरु किया, लेकिन अचानक एक दिन सबकुछ बदल गया.मेरे पति  बीमार हुए. निमोनिया हो गया, ग़लत इलाज होने के कारण 1998 में उनकी मौत हो गई.

उनके बिना जीना मुश्किल था, वे हमारा और बच्चों का बहुत ख्याल रखते थे. मैं उनके बिना नहीं रह पाती थी, अब उनके बिना ही मुझे न केवल यह जिंदगी गुजारनी थी बल्कि अपनी बेटियों को बेहतर परवरिश भी देनी थी.मैं कुछ दिनों तक जबलपुर में ही रही. अकेले बिजनेस चलाने की कोशिश की. जब कुछ पैसा इकट्ठा हो गया तो बिजनेस बंद करके अपनी दोनों बेटियों को लेकर मैं उनकी पढ़ाई के लिए कनाडा चली गई. कनाडा में मेरी बहन रहती थी, उसने मुझे हौसला दिया वहां आने के लिए. मुझे भी अपने बच्चों का भविष्य संवारना था. 2005 में मैं वहां गई, बच्चियों का एडमिशन कराया और खुद फैक्ट्रियों में काम करना शुरु किया. 

मैंने रात की शिफ्ट में भी काम किया. मेरी दोनों बेटियां भी सप्ताह में दो दिन काम करती थीं. पढ़ाई में दोनों होशियार थीं.बच्चों ने बहुत साथ नहीं दिया. मेरे बच्चे जल्दी ही बड़े हो गए, वे अपना बचपन जी नहीं पाए. दो साल वहां हम तीनों ने काम किया. हम भारत वापस आ गए.

यहां आते ही दोनों बेटियों की नौकरी लग गई. उनके अपने पैरों पर खड़े होने के  मैंने 2008 में  क्रोशिया के डिजाइनर चीजें बनाने को अपना बिजनेस 2008 शुरु किया. 2010 से यह काम पूरी तरह चल पड़ा. क्रोशिया में आप जो कुछ भी सोच सकते हैं मैं वो सब बनाती हूं. बच्चों, महिलाओं के कपड़े से लेकर होम डेकॉर के सभी चीजें बनाती हूं. ऑनलाईन बिजनेस करती हैं, लोगों को निशुल्क योगा भी सीखाती हैं. घर में काम करने वाली मेड को भी यह हुनर सीखाया है. जो भी सीखना चाहता है मैं उन्हें यह काम सीखाती हूं.

मैं  मदर इंडिया क्रोशिया क्वीन संस्था के साथ जुड़ गई थी. इस संस्था के साथ काम करते हुए हमारे ग्रूप ने दुनिया का सबसे लंबा ब्लैंकेट बनाकर गिनीज वुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में अपना नाम दर्ज कराया. हमने साऊथ अफ्रीका का रिकॉर्ड थोड़ा. इस कांपिटीशन ने मेरा आत्मविश्वास बहुत बढ़ा दिया. मैंने अपने इस काम को आगे बढ़ाने का फैसला किया. मैं लुधियाना के गंगा एक्रोवूल के साथ तीन महीने के लिए क्राफ्ट मैनेजर के तौर पर काम किया अब मैं घर से उनके लिए काम करती हूं. अब क्रोशिया के डिजाइन के ऊपर एक किताब लिखने की भी सोच रही हूं.

जिंदगी क्या है? किसी को कुछ देने का जो सुख है वो किसी और बात में नहीं. मेरी बेटियों की शादी हो गई है, वे कहते हैं कि मेरे साथ रहो, लेकिन मैं बेटियों पर बोझ नहीं बनना चाहती, मैं गाजियाबाद में एक छोटी सोसाइटी में रहती हूं. अकेली हूं तो क्या ग़म है. मैं हमेशा खुश रहने की कोशिश करती हूं और चाहती हूं कि मेरे जीवन का एक-एक पल मैं किसी को कुछ सीखाने में जाए. मैंने हर परिस्थितियों में खुश रहने का फैसला किया है तो आप भी हमेशा खुश रहने की कोशिश करिए..... 

वुमनिया....यानि आपकी दुनिया, आगे बढ़ने का विश्वास, आपकी ताकत और आपकी आवाज़. सच्चे मायनों में हम ही समझते हैं अपनी वुमनिया को और उसकी मुश्किलों को. हम साथ हैं आपके संघर्ष में, आपके सफर में, आपके जुनून में, आपकी जिद में, हमें गर्व है आपकी जीत पर, आपकी उपलब्धियों पर और आपकी सफलता पर.