संयोगिता कंठ:
बहुत छोटी सी कहानी है लेकिन कहना भी उतना ही जरुरी है. यह कहानी काली बिल्ली के महत्ता को तो बताती है और हमें यह साफ संकेत भी देती है कि हमारे लिए किसी नियम कानून से ज्यादा अभी भी अंधविश्वास ज्याद मायने रखता है.
6 जून की शाम मैं एक दुकान पर कुछ सामान लेने गई. सामान ले कर जैसी ही बाहर आई मैंने देखा दो जवान लड़के तेजी से बाइक लेकर भाग रहे थे. बिना हेलमेट पहने. तभी उनके रास्ते में एक काली बिल्ली आ गई. बस फिर क्या था, बाइक बंद, दोनों जवान लड़के बाइक से उतर गए. एक लड़के ने कहा अच्छा हुआ बाइक रोक दी बिल्ली रास्ता काट देती तो कोई हादसा हो जाता.
मैं हंस पड़ी. सोचने लगी कि किसी भी हादसे में बेचारी बिल्ली का क्या कसूर? हेलमेट नहीं पहनेंगे भीड़-भाड़ वाली जगह पर भी तेज बाइक चलाएंगे तो हादसा नहीं होगा तो क्या होगा. सरकार भी न जाने क्या-क्या करती है लोगों को सड़क हादसों से बचाने के लिए, हेलमेट पहनने और सीट बेल्ट लगाने के लिए लोगों पर फाइन भी लगाती है लेकिन लोगों को काली बिल्ली के आगे रुकना मंजूर है लेकिन नियमों का पालन करना नहीं. जबकि हेलमेट नहीं लगाने के कारण बाइक सवार हेड इंज्यूरी के कारण मौत के शिकार सबसे ज्यादा होते हैं.
अक्सर मैंने कई रोड एक्सीडेंट के बाद यह सुना है कि वह जल्दी में हेलमेट पहनकर नहीं गया. हैरानी है कि लोग घर पर पांच मिनट रुककर हेलमेट नहीं लगा सकते लेकिन उन्हें काली बिल्ली के आगे दस मिनट रुकना मंजूर है.
वाइ भाइ काली-बिल्ली तुम तो सुपरहिट हो…
(सच्ची घटना पर आधारित)
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