डॉ कायनात क़ाज़ी:
ट्रैवलर, फोटोग्राफर, ब्लॉगर:
दोस्तों Real Heroes Superwomen की अगली कड़ी में हम बात कर रहे हैं कि Dr. Navina Jafa जी की. डा० नवीना जाफ़ा भारत की पहली ऐसी महिला हैं जो कि सांस्कृतिक क्षेत्र को परिपूर्णता से न सिर्फ देखती हैं बल्कि अपने सूक्ष्म नज़रिये से देश विदेश से आए मेहमानों को रूबरू करवाती हैं. वह सांस्कृतिक विरासत विशेषज्ञ, कत्थक नृत्यांगना व शोधकर्ता हैं.
तलाक के नीचे का कोई और विकल्प न बचते हुए उस स्त्री को यह कड़ा और दुष्वारियों भरा फैसला लेना ही होता है. हम मैं से कितनी ही स्त्रियां ऐसी होंगी जो ऐसा करना चाहती होंगी लेकिन इन दुश्वारियों का ख्याल भी उन्हें सिहरा देता होगा और वह हर कष्ट झेलने को मजबूर हो जाती होंगी.
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पर यहां जीवन का अंत नहीं है. अगर ज़िन्दगी में कभी सब कुछ बिगड़ जाए तब भी हिम्मत से उसे दुबारा बनाया जा सकता है. इसकी जीती जागती मिसाल हैं- Dr. Navina Jafa. आइये उनकी कहानी उन्हीं की ज़बानी सुनते हैं.
किसने सोचा था कि सपने भरे इन आंखों को 26 साल पहले घनघोर जंगलों से गुज़ारना पड़ेगा ?
9 साल पहले एक अंधेरी रात मेरे सामने मेरी शादी शुदा जिंदगी राख की तरह बिखरी पड़ी थी. राख के उस पार दो मासूम बच्चे, दो बुज़ुर्ग माता पिता और चारों तरफ बिखरे धुएं के इधर- उधर एक कुर्सी, दो चारपाइयां, एक मेज़ और 20 हज़ार रुपए हाथ में लिये मैं ज़िंदगी के उस रंगमंच के बीचों बीच खड़ी थी जहाँ से दूर दूर तक कुछ दिखाई नहीं देता था.
जब कभी लोगों के जीवन में अचानक ऐसा कुछ भयावह घट जाता है तो वह टूट जाते हैं बिखर जाते हैं. लेकिन मैंने अपना साड़ी का पल्ला कमर में खोंसा. ऊपर देखा और सौगंध ली आज से मैं किसी के ऊपर निर्भर नहीं रहूंगी और ना ही मैं किसी का इंतज़ार करूंगी कि वह मुझे फूल दे.
बल्कि आज से मैं इस राख की खाद बनाकर अपने लिए अपने परिवार के लिए और अनेकों अन्जानों के लिए जिनके पास मुझ से भी कम है उनके लिए मैं बागीचा बनाकर फूल उगाऊंगी. इस तरह शुरू हुआ उस राख से मेरा नया जीवन.
जब आप घर छोड़ अपने बच्चों के साथ अकेली निकल आईं तब सब की ज़िम्मेदारी अकेले कैसे निभाई ?
25 साल पहले मैंने भारत में विरासत की सैरों की नीव रखी, और, साथ साथ रचनात्मक तरीकों से कला को बच्चों के व्यक्तित्व विकास के लिए कई गर्मियों में, ‘चाइल्ड ऑफ़ थे मिललेनियम’ नाम की कार्यशाला लगायी. धीरे धीरे मेरा काम, जनता के सामने आया ।
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2004 में अमेरिका की सरकार ने मुझे प्रतिष्टित फुलब्राईट स्कालरशिप से पुरुस्कृत किया, जिसके कारण में स्मिथसोनियन म्यूजियम, दुनिया के सबसे बड़े संघ्रालय में शोध कार्य व काम करने के लिए गई.
वहां संस्कृति को लेकर सांस्कृतिक-नरम कूटनीति, सांस्कृतिक सतत विकास, सांस्कृतिक पर्यटन, सांस्कृतिक मानचित्रण के तरीके तथा सांस्कृतिक प्रबंधन पर काम व शोध कार्य किया. इस अनुभव का परिणाम एक पुस्तक के रूप में सामने आया ‘परफार्मिंग हेरिटेज- द आर्ट ऑफ़ एक्सहिबिट वॉक्स’
यह विरासत की सैर (हेरिटेज वॉक्स ) के ऊपर दुनिया में सबसे पहली शैक्षिक यानि की अकादेमिक पुस्तक है और अनेकों विश्वविद्यालयों में सूचीबद्ध है. हाल में एक सर्वेक्षण में यह भी देखा गया कि इस पुस्तक को पढ़कर करीब 3-5 हज़ार लोगों ने विरासत की सैर की बिज़नेस से अपने रोटी पानी और रोज़गारी का इंतज़ाम किया है.
कोई पक्की नौकरी न होते हुए भी अपने दो बच्चों को पाला, कैसे जुटाया ज़िन्दगी अकेले जीने का हौसला कहां से आया ?
काम काम काम और लगातार काम करके मैंने यह हौसला जुटाया. मैंने 1999 में अकादमिक पर्यटन- इस नई संकल्पना की स्थापना की. यह अनुभव केवल इमारतों की कहानियां नहीं होती हैं. बल्कि मैं लोगों को प्रांत, वातावरण, वहां की समुदायों से सम्बंधित रहन सहन, खानपान, सामाजिक जटिलताएं, उत्सव, परम्परिक ज्ञान की विधियां, रस्मों-रिवाज़ के बारे में गहराई से समझाती हूं.

साथ में जीवित विरासत भी जोड़ती हूं. मिसाल के तौर पर- अगर मैं उज्जैन के महाकालेश्वर दिखाती हूं, तब उस प्रदर्शन में सुबह का देव स्नान, आरती का अनुभव एवं शैव के अन्य अंदरुनी तानेबाने का विवरण देती हूं.
इसी तरह जब मैं लोगों को सुंदरबन जो कि बंगाल की खाड़ी में स्थित है वहां के सदाबहार वन का अकादमिक पर्यटन करवाती हूं तो अन्य तत्वों के साथ साथ वहां के मधु एकत्र करने वालों के जीवन, पारम्परिक ज्ञान व कौशलत, उनकी समाजशास्त्रीयता के बारे में समझाते हुए मेहमानों को मधु एकत्र करने वालों से मिलवाती हूं.
अगर मैं सिक्किम प्रदर्शित करती हूं, तो अन्य वास्तविकता प्रदर्शन में आर्किड पुष्पों की विरासत जोड़ती हूं जिसमें आर्किड फार्म में ले जाकर अथितियों को आर्किड विशेषज्ञ से मिलवाती हूं. इन सफरों का लक्ष्य यह भी होता है कि जो अलग- अलग जगहों पर जमीनी स्तर पर गैर-लाभकारी संस्थाए काम कर रहीं हैं, उनके कार्य से लोगो को परिचित करवाया जाए..
अकादमिक पर्यटन के आधार पर मैंने अपनी रोजी-रोटी का जुगाड़ किया और मेरा काफी नाम भी हुआ. बड़े बड़े विदेशी नेताओं उदाहरण के लिए अमरीका की कॉनडीलीज़ा रईज़, हेनरी किसिंजर, पाकिस्तान की बेनज़ीर भुट्टो, लिचटेंस्टीन के राजकुमार और राज कुमारी, जर्मनी और स्विट्ज़रलैंड के राष्ट्रपति और अनेकों नोबेल पुरुस्कृत लोगों को मैंने भारत की सांस्कृतिक विरासत से रूबरू करवाया है.
ऐसी सैरों पर अक्सर विदेशी राजनयिक, कॉर्पोरेट अधिकारी, देश-विदेश विश्वविद्यालय के छात्र व शिक्षक भाग लिया करते हैं. अकादमिक पर्यटन के अनुभवों से मुझे बड़ी संख्या में दिल्ली और हिंदुस्तान के बारे में बतलाने, समझाने और शिक्षित करने का अवसर मिल रहा है.
आप लोगों को हेरिटेज वॉक करवाती हैं , अपने अन्य कार्य अनुभवों के बारे में बताएं ?
एक और अनुभव बहुत महतवपूर्ण रहा वह था- अमेरिका के बोस्टन शहर में ब्रान्डीज़ विश्वविद्यालय में पढ़ाना. वहां के – अन्तरराष्ट्रीय सतत विकास हेलेर स्कूल में मैंने ‘परफार्मिंग आर्ट्स इन डेवलपमेंट’ की शिक्षा दी.
इस दौरान मैंने अन्य कला प्रदर्शन की परम्पराएं सतत विकास में कैसे काम आ सकती हैं इसका एक मॉडल बनाया. जिसका प्रयोग अफ्रीका में घाना, एशिया में ईरान , जॉर्डन और फिलीपीन्स में सफलतापूर्वक हो रहा है.
विरासत की सैर व अकादमिक पर्यटन के काम ने आज एक और रुख धारण किया है. मैं सेंटर फॉर न्यू पर्सपेक्टिव्स जो एक गैर लाभकारी प्रबुद्ध मंडल से जुड़ी है ,जो पारम्परिक, सांस्कृतिक, समुदायों के लिए नयी जीविका पर काम कर रहा है.
इस काम में मेरा ज्ञान और अनुभव, अलग अलग प्रोजेक्ट में लाभकारी साबित हुआ है. इस संस्था का सबसे अव्वल प्रोग्राम ‘तमा-सहो’ दरिद्रता से पीड़ित लोक-सड़क कलाकारों के लिए है जिसमें प्रयास है कि पारम्परिक कौशल को बचाते हुए करोड़ों लोगों को इस कलाओं में पुनर्जीवित करते हुए नयी दिशा दें.
मिसाल के तौर पर सपेरे व् भाट जातियों के साथ एक माइक्रो फाइनेंस (लघु-उद्योग) के रूप में एक ऑर्केस्ट्रा मंडली बनाने का प्रस्ताव सरकार के सामने रखा है.
मैनें इन 9 सालों में अपनी सारी कुशलातओं व सांस्कृतिक क्षेत्र से जुड़े अलग-अलग विषयों पर ज्ञान का खूब रचनात्मक तरीकों से प्रयोग कर इन क्षेत्रों में योगदान करनी की चेष्टा की है.
CBSE ने स्कूलों में विरासत की शिक्षा के लिएमुझे मानद प्रमुख नियुक्त किया है.जिसके तहत कश्मीर .दिल्ली , हरयाणा, महाराष्ट्र , झारखण्ड और बिहार के करीब 1500 CBSE स्कूलों के लिए विरासत के ऊपर प्रोग्राम तैयार करवाए हैं.
जब मैं थोड़े समय के लिए दिल्ली सरकार में विरासत सलाहकार नियुक्त की गयी तब उस वक़्त अनेकों इतवार भोंपू लेकर पुरानी दिल्ली के कई चौराहे पर खड़ी होकर सैकड़ो फुटपाथ पर जीने वालों को दिल्ली की दास्तान सुनाते हुए उनको विरासत की सैर करवाती थी.
इसका लक्ष्य यह था कि फुटफाथ पर रहने वालों को भी यह महसूस हो कि वह भी दिल्ली के नागरिक हैं. मैं तो कहूंगी कि मेरे लिए मेरा काम ही मेरी इबादत है.
कत्थक और शोध के साथ जुड़ाव के बारे में बताएं ?
10 साल की उम्र से मैंने कत्थक की शिक्षा नृत्य पंडित बिरजू महाराज (15 साल) से प्राप्त की. उसके बाद गुरु मुन्ना शुक्ल, रेबा विद्यार्थी व श्री रतन लाल से प्राप्त की. देश विदेश में खूब प्रोग्राम किये और खूब घूमी.
आज भी एक घंटा में ज़रूर रियाज़ करती हूं. आजकल में भरतनाट्यम की जानी मानी गुरु जमुना कृष्णन और बिरजू महाराज जी से अभिनय पर विद्यापति और कबीर पर काम कर रही हूं. मौका मिलने पर मैं प्रोग्राम भी करती रहती हूं. मैं हमेशा कहती हूं कि विरासत की प्रस्तुति एक कला है.
कत्थक नृत्य करते करते मैंने हिंदुस्तान की सांस्कृतिक महाविदुषी डॉक्टर कपिला वात्स्यायन व शहरी इतिहासकार डॉक्टर नारायणी गुप्ता के नेतृत्व में अपना पीएचडी का शोध कार्य किया. कत्थक उसकी दुनिया, प्रदर्शन कलाओं से जुड़े सामाजिक-आर्थिक विषय (जैसे की तवाइफ़ों, भांड, मिरासी, ढाढ़ी) पर गहरा रिसर्च और सांस्कृतिक इतिहास पर अग्रणी काम माना जाता है.
इस काम के तहत मुझे पूरा हिंदुस्तान और सेंट्रल एशिया को घूमने का मौका मिला. संस्कृति को गहराई से जाना. साथ ही संस्कृत, फारसी जैसी भाषाओं से परिचय हुआ.
इस अनुभव को लेकर करीब, 23 साल पहले मैंने विदेशी राजनयिकों के लिए एक कोर्स ‘विंडो टू इंडियन अार्ट्स ‘ नाम की स्थापना अलायन्स फ्रांसे दिल्ली में शुरू किया. जिसमें करीब 500 से ऊपर राजनयिकों ने मुझसे हिंदुस्तान की संस्कृति के बारे में शिक्षा प्राप्त की.
आपने कुछ किताबें भी लिखी हैं, कुछ उनके बारे में बताएं ?
मैंने विरासत की सैर पार्ट एक पुस्तक और कई लेख लिखे हैं और लिखती रहती हूं. मुझे एक जूनून है की एक तरफ मेरा ज्ञान हज़ारों लोगों को आर्थिक और सामाजिक रूप से ऊपर उठने में एक साधन बने. दूसरी तरफ मेरे नृत्य, मेरे लेख करोड़ो लोगों को ख़ुशी बने.
आप महिलाओं को क्या सन्देश देना चाहेंगी ?
एक नारी होने के नाते हमें अपने आप को महारानी समझना होगा. कोई राजकुमार हमें वह पदवी नहीं देगा — रोज़ एक नया दिन है. हमेशा यह समझना कि ऊपर वाले हमेशा पीड़ा नहीं देता. वह केवल चुनौतियां देता है जो कि हमें उनका आशीर्वाद मानकर लेना चाहिए.
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