
8 मार्च को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस है लेकिन अभी भी हमारे देश में कुछ ऐसी बातें हैं जो अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर हमें रुआंसा कर देती है. ऐसी ही एक हक़ीकत है छोटी लड़कियों का Schools छोड़ देना. देश की 32.4 फीसदी बच्चियां चाहते हुए भी रोज स्कूल नहीं जा पाती हैं.
Annual Status Of Education Report (ASER) के मुताबिक 14 से 18 साल की 32.4 फीसदी लड़कियों को Family Constraints की वजह से स्कूल छोड़ना पड़ रहा है. रिपोर्ट के मुताबिक स्कूल में दाखिला लेने के बावजूद 89 फीसदी लड़कियों को रोजाना घर का काम करना पड़ता है.
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रिपोर्ट के मुताबिक छोटी उम्र में बच्चों को स्कूल में दाखिला दिलाने में किसी तरह का लैंगिक भेदभाव नहीं है लेकिन जब घर के किसी न किसी काम की वजह से स्कूल नहीं जाने की बात आती है तो सबसे पहले 14 से 18 की उम्र की बच्चियों को ही ऐसा करना पड़ता है.
जामिया मिल्लिया इस्लामिया के वुमंस स्टडीज की डायरेक्टर सबिहा हुसैन के मुताबिक लड़कियों के स्कूल छोड़ने की एक बड़ी वजह स्कूल में टॉयलेट नहीं होना भी है जैसे ही लड़कियों में मेंस्ट्रएशन होना शुरु होता है ज्यादतर अभिभावकों को लगता है कि लड़कियों का स्कूल जाना ठीक नहीं.
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पितृसत्तात्मक परंपरा के कारण संसाधनों के उपयोग में भी लड़कियों के साथ भेदभाव हो रहा है. ASER की रिपोर्ट के मुताबिक 76 फीसदी छात्राओं ने कभी इंटरनेट और 22 फीसदी लड़कियों ने मोबाइल फोन इस्तेमाल नहीं किया है.
वहीं जब बात लड़कों की आती है 51फीसदी लड़कों के पास इंटरनेट इस्तेमाल करने के संसाधन है और 88 फीसदी लड़कों के पास अपना मोबाइल फोन है. कई परिवारों में लड़कियों के मुकाबले लड़कों को पहले मोबाइल फोन दिए जाते हैं.
लड़कियों के इंटरनेट इस्तेमाल नहीं करने की एक वजह यह भी मानी जा रही है कि छोटे शहरों में ज्यादतर कंप्यूटर टीचर पुरुष होते हैं और इसकी कक्षाएं ज्यादतर स्कूल की छुट्टी के बाद होती है इसलिए अधिकांश लड़कियां कंप्यूटर क्लास के लिए नहीं रुकती हैं.
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