श्वतेा आर रश्मि:
बनारस से जिंदगी और यादें अनगिनत जुड़ी है, शहर कुछ न कुछ रोज बताता ही है पर पिछले कुछ समय से बनारस हिन्दू विश्विद्यालय (BHU) के छात्राओं से सम्बंधित खबरें रोज़ाना ध्यान खींच रही है जिनका तुरंत समाधान जरुरी है. वरना किसी बड़ी घटना को होने से टाला नहीं जा सकता. जिस तरह से सरकार शिक्षा के क्षेत्र में भी मनमानी और तुगलगी फरमान जारी कर रही है वो ठीक नहीं है.
आज तक BHU के इतिहास में भी इस तरह विरोध के स्वर नहीं लगे थे. महिलाओं के खिलाफ जो मानसिकता विश्विद्यालय प्रशासन की है वो निहायत ही निंदनीय है. रिपोर्ट है कि एक छात्रा ने छेड़खानी के विरोध में अपना सर मुड़वा लिया. लगातार उनके साथ छेड़खानी, होस्टल की सुविधा और अन्य जरूरतों पर जिस तरह का रवैय्या प्रसाशन अपना रहा है यह सामंतवादी सोच का नतीजा है.
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BHU में कल एक छात्रा के साथ छेड़खानी के विरोध में छात्राओं ने प्रदर्शन किया. छात्राओं का यह गुस्सा किसी एक घटना का प्रमाण नहीं बल्कि प्रशासनिक तानाशाही, गुंडागर्दी और लम्पटई के खिलाफ अरसे से उनके भीतर इक्कट्ठा हुए गुस्से की अभिव्यक्ति है. रिपोर्ट है कि BHU में गले में नारंगी गमछा डाले शोहदे जिस तरह से बेफिक्र हो कर वारदात करते है, आखिर किस शह पर उनकी हिम्मत मिल रही है? प्रधानमंत्री का संसदीय क्षेत्र इतना अशांत और असुरक्षित है महिलाओं के शैक्षणिक परिवेश के मामले में तो दूर दराज के कहने ही क्या। (बेटियां सिर्फ कागज़ों पर बचाई और पढाई जा रही है)
दुर्व्यवहार के लिए छात्राओं को ही “संस्कार” और “चरित्र” का पाठ पढ़ाया जा रहा है. ये लोग आखिर है कौन? यह उन तमाम स्त्री-विरोधी लोगों के मुंह पर एक ज़ोरदार तमाचा है जो स्त्रियों की आवाज़ को दबाने के लिए घटियाई और बेहयाई की सारी हदें पार करते हैं. ऐसे तमाम तत्वों को कात्यायनी की कविता में अभिव्यक्त इस बात को अच्छी तरह से गांठ बांध लेनी चाहिए :
देह नहीं होती है
एक दिन स्त्री
और
उलट-पुलट जाती है
सारी दुनिया
अचानक!
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(साभार-फेसबुक वॉल)
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