रोज बैग लेकर कहां जाती हैं दादी मां?

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दादी का स्कूल
दादी का स्कूल

आजीबाईची शाला अर्थात दादी का स्कूल , सुनने में थोड़ा अटपटा लगता है मगर महाराष्ट्र के ठाणे जिले के छोटे से गाँव मुबड़ फांगने में एक ऐसा ही स्कूल चलता  है. जहां गुलाबी साड़ियां पहनकर हाथों में बैग लिए दादी मां स्कूल आती हैं. यह स्कूल चलाते हैं योगेन्द्र बांगड़ जो पेशे से शिक्षक हैं और गांव में सभी महिलाओं को साक्षर बनाने का सपना देख रहे हैं.




गुलाबी यूनिफार्म में दादियां स्कूल जातीं हुई
गुलाबी यूनिफार्म में दादियां स्कूल जातीं हुई

इस स्कूल की खूबियों के बारे में योगेन्द्र कहते हैं, ‘यहां 60 से 80 बरस तक की दादियों को पढ़ाया जाता है. यहां पढ़ने वाली सभी महिलाएं इसी गांव की हैं. कुछ खेतों में काम करती हैं कुछ घर पर ही रहती हैं. पाठशाला में दादियों को मराठी लिखना सिखाया जाता है और जीवनशैली से जुड़ी बातों की जानकारी दी जाती है, जैसे सेहत का ख्याल कैसे रखें, बैंक के कामकाज कैसे करें और खेती में मुनाफा कैसे कमाएं इन सब बातों के बारे में बताया जाता है.




स्कूल की खूबियां यहीं खत्म नहीं होती. आम स्कूलों की तरह यहां भी यूनीफ़ार्म है और बकायदा स्कूल बैग के साथ दादियों को शाम के ठीक 4 बजे स्कूल पहुंचना होता है. दादियों को गुलाबी साड़ी पहनकर आना होता है. गुलाबी रंग इसलिए चुना क्योंकि यह महिलाओं का रंग है और जो महिलाएं विधवा हैं वे भी इस रंग को ही पहन कर स्कूल आती हैं.’




योगेन्द्र बताते हैं, ‘कक्षाएं 2 घंटे की होती है. स्कूल चलाने के लिए शाम का समय इस लिए चुना क्योंकि इस वक्त गांव की औरतें अपने कामकाज से फुर्सत पाती हैं. 8 मार्च 2016 से शुरु हुए इस स्कूल के बारे में योगेन्द्र बताते हैं, ‘मै सरकारी स्कूल में टीचर हूं, मै हमेशा से अपने गांव के हर व्यक्ति को पढ़ा लिखा देखना चाहता था. इस गांव में पुरुष तो पढ़े लिखे हैं मगर महिलाएं बहुत कम पढ़ी लिखी थीं. यदि नई पीढ़ी को छोड़ दें तो 60 से 80 बरस की महिलाएं लिखना पढ़ना बिल्कुल नहीं जानती थी. ‘गांव की एक बुढ़ी दादी मज़ाक में अक्सर मुझसे पढ़ाने की बात करती थी बस यहीं से यह सफर शुरु हो गया.

मैंने जब गांव के पुरुषों से बात की तो वे बड़े खुश हुए कि उनकी मां और दादियों को भी पढ़ने को मिलेगा. बस फिर क्या था गांव के ही एक किसान ने हमें अपने घर में स्कूल खोलने की जगह दे दी, गां कुछ पढ़ीलिखी बेटियों और बहुओं ने भी इसमें पढ़ाना शुरू कर दिया. अभी दादी का स्कूल शुरू हुये एक साल पूरा हो गए हैं और क्लास में 60 महिलाएं रोजाना पढ़ने आती हैं.  सबसे दिलचस्प बात यह है की गांव के पुरुष भी अपने-अपने घरों की बुजुर्ग महिलाओं को योगेन्द्र के स्कूल जाने के लिए प्रोत्साहित करते हैं. दादियों को पढ़ाने के साथ ही समय-समय पर उनकी परीक्षा भी ली जाती है. योगेन्द्र बताते हैं, ‘स्कूल में आने वाली हर दादी अब अपना नाम लिखना और पढ़ना जानती है और यह बात मुझे बहुत गर्व महसूस कराती है.’

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