प्रियंवदा सहाय:
पहचान बनाने के लिए जज़्बे की ज़रूरत होती है. खुद पर विश्वास हो तो हौसलों की उड़ान भरकर न केवल कामयाबी हासिल की जा सकती है बल्कि शोहरत भी बटोरी जा सकती है. इसे समझने के लिए किसी बड़ी हस्ती की कहानी से अलग हम आपको बताते हैं देश के उस महिला बैंड के बारे में जिनके सदस्यों ने अभावों में जी कर भी अपने सपने को पूरा किया है.
कम पढ़ी-लिखी लेकिन इरादों की पक्की बिहार की क़रीब 12 महिलाए नारी गूंजन सरगम महिला बैंड के जरिए देश भर में वाहवाही बटोर रही हैं. पटना से सटे दानापुर के ढीबरा गांव की इस बैंड में अधेड़ उम्र की महिलाएं भी शामिल है. महादलित वर्ग से ताल्लुक रखने वाली ये महिलाएं कभी दो वक्त की रोटी के लिए खेतों में दिहाड़ी मजदूर की तरह काम करती थी लेकिन आज बैंड ने उन्हें एक अलग पहचान दिला दी है. बैंड मास्टर सविता देवी, अनीता, सोना, ललिता अपने काम के जरिए अपने गांव और प्रदेश में महिला शक्तिकरण की अनोखी मिसाल पेश कर रही हैं.
नारी गूंजन महिला सरगम बैंड की शुरुआत करने की बात सुनते ही पहले तो लोगों ने खूब चुटकी ली, उनका मजाक उड़ाया लेकिन कहते हैं इरादे पक्कें हो तो दुनिया की किसी हंसी और नकारात्मक टिप्पणियों का कोई असर नहीं होता और सफलता ज्यादा दूर नहीं होती.
ऐसा ही हुआ. एक एनजीओ की मदद से इन महिलाओं ने दिन-रात मेहनत करके एक साल में बैंड बाजे में इस्तेमाल होने वाले म्यूजिकल इंस्ट्रूमेंट को बजाना सीख लिया. उन्होंने अपना प्रयास अगस्त 2013 से शुरु किया और बिहार का पहला महिला बैंड़ तैयार कर लिया. इस काम में उनकी मदद की महादलितों के बीच काम करने वाली जानी-मानी सोशल वर्कर और पद्मश्री सुधा वर्गीज ने. जब सुधा वर्गीज ने उन्हें बैंड बनाने के लिए कहा तो वे महिलाएं बोल पड़ी-हमसे नहीं होगा दीदी. लेकिन सुधा वर्गीज के लगातार प्रोत्साहन और मदद के कारण ही इन महिलाओं ने चूल्हा-चौका करते हुए बैंड को तैयार कर लिया. हालांकि यह सब इतना आसान नहीं था.
बैंड मास्टर सविता देवी के मुताबिक जब हमने बैंड बनाने और वाद्ययंत्रों को बजाने का फैसला किया तो गांव के पुरुषों के अलावा महिलाओं ने भी खूब विरोध किया लेकिन हम डटे रहे. हम अपने घर और खेत का काम निबटाने का बाद रोजाना एक घंटे की प्रैक्टिस करते थे. अब हम अपने परफॉर्मेंस के दौरान मस्ती में बैंड बजाते हैं, समाज या पुरुषों के तानों की परवाह नहीं करते.
गांव वालों के ताने को सहते हुए उन्होंने अपनी कोशिश जारी रखी. फिर गांव-मोहल्ला होते हुए शहर की ओर रुख किया और पुरुषों के वर्चस्व वाले इस क्षेत्र में उन्हें चुनौती दे डाली. सफलता का सफर शुरु हो गया. अब उन्हें देशभर से शादी से लेकर अन्य समारोहों में बैंड बजाने का बुलावा मिलता है. बड़े होटलों में उनके परफॉर्मेंस रखे जा रहे हैं. वे पटना से दिल्ली पहुंच गई और अब उनका अगला पड़ाव विदेशों में धूम मचाने का है. पहले जहां वे दिहाड़ी मजदूरी से 100 रुपए रोजाना कमाती थी अब एक परफॉर्मेंस पर 500 से 2000 रुपए तक कमा लेती हैं.
नारी गूंजन महिला सरगम बैंड में शामिल महिलाएं को इस बैंड के जरिए अपनी आर्थिक स्थिति मजबूत करने के साथ-साथ अपने बच्चों को भी पढ़ाने का हौसला मिला है. कई महिलाएं तो अब अपनी बेटियों को भी इसी क्षेत्र में उतारना चाहती हैं. इन महिलाओँ ने अपने बैंड को सामाजिक बुराईयों से लड़ने का हथियार भी बना लिया है. गांव में जब कोई पति अपनी पत्नी को पीटता है तो वे उनके घर के सामने बैंड बजाना शुरु कर देती है जिससे पूरे गांववालों का ध्यान इस मुद्दे पर खींचा जा सके.