भारत में ऐसी कई जगह हैं जो प्राचीन होने के साथ-साथ रहस्यमयी भी हैं. इनसे ऐसे मिथक जुड़े हैं जो सदियों से अनसुलझे हैं और लाख कोशिशों के बावजूद इनका रहस्य कोई नहीं बूझ पाया. ऐसी ही एक जगह है मध्य प्रदेश के बुरहानपुर में जिसका नाम है असीरगढ़ का किला. इस किले में मौजूद है भगवान शिव का एक प्राचीन मंदिर. भगवान शिव के इस मंदिर में हर दिन कौन गुलाल और फूल अर्पित करके चला जाता है यह एक रहस्य है. ऐसी मान्यता है कि इस मंदिर तक आने का एक गुप्त रास्ता है जिससे अश्वत्थामा आकर यहां शिव जी की पूजा कर जाता है. क्या है ये रहस्य…
महाभारत काल में कौरव और पाण्डवों के गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र का नाम अश्वत्थामा था. अश्वत्थामा महान योद्धा था. हिंदू धर्म में जिन 8 महापुरुषों को अमर माना गया है, अश्वत्थामा भी उन्हीं से से एक है. मृत्यु से पहले दुर्योधन ने अश्वत्थामा को कौरवों का अंतिम सेनापति बनाया था. अश्वत्थामा ने महाभारत के युद्ध में कौरवों की ओर से युद्ध किया लेकिन एक गलती के कारण उन्हें भगवान कृष्ण ने ऐसा श्राप दिया जिससे उन्हें आजतक मुक्ति नहीं मिल सकी और वो आज भी भटकने को मजबूर हैं. दरअसल,महाभारत के युद्घ के दौरान द्रोणाचार्य का वध करने के लिए पाण्डवों ने झूठी अफवाह फैला दी कि अश्वत्थामा मर चुका. इससे द्रोणाचार्य शोक में डूब गए और पाण्डवों ने मौका देखकर द्रोणाचार्य का वध कर दिया.
महाभारत युद्ध के बाद अश्वत्थामा ने पिता की मृत्यु का बदला लेने के लिए पांडव पुत्रों का वध कर दिया तथा पांडव वंश के नाश के लिए उत्तरा के गर्भ में पल रहे अभिमन्यु पुत्र परीक्षित को मारने के लिए ब्रह्मास्त्र चलाया. इससे क्रोधित होकर श्रीकृष्ण ने अश्वत्थामा को यह श्राप दिया कि वह दुनिया ख़त्म होने तक जीवित रहेगा और पृथ्वी पर भटकता रहेगा. कहा जाता है इस शिव मंदिर में रहस्यमयी रूप से पांच हजार साल से भटकने वाले अश्वत्थामा पूजा करने आते हैं और उन्हें कोई देख नहीं पाता. इन्हें अगर कोई देख लेता है तो वह अपनी सुध-बुध खो बैठता है.
ऐसा बताया जाता है कि किले में स्थित तालाब में स्नान करके अश्वत्थामा शिव मंदिर में पूजा-अर्चना करने जाते हैं. आश्चर्य की बात यह है कि पहाड़ की चोटी पर बने किले में स्थित यह तालाब बुरहानपुर की तपती गर्मी में भी कभी सूखता नहीं. तालाब के थोड़ा आगे गुप्तेश्वर महादेव का मंदिर है. मंदिर चारों तरफ से खाइयों से घिरा है.
किवदंती के अनुसार, इन्हीं खाइयों में से किसी एक में गुप्त रास्ता बना हुआ है, जो खांडव वन (खंडवा जिला) से होता हुआ सीधे इस मंदिर में निकलता है. इसी रास्ते से होते हुए अश्वत्थामा मंदिर के अंदर आते हैं. भले ही इस मंदिर में कोई रोशनी और आधुनिक व्यवस्था न हो, यहां परिंदा भी पर न मारता हो,लेकिन पूजा लगातार जारी है. शिवलिंग पर प्रतिदिन ताजा फूल एवं गुलाल चढ़ा रहता है.