दीपिका ठाकुर
हमारे हाथ में कोई हुनर है, हम उसे निखारना चाहते हैं लेकिन फिर सोचते हैं लोग क्या कहेंगे? लोगों की सोच कर हम न तो अपने हुनर को निखार पाते हैं और न अपनी क़ाबलियत किसी को दिखा पाते हैं, लेकिन गुरुग्राम की Urvashi Yadav ने ऐसा नहीं सोचा. करोड़पति घर की होते हुए भी छोले-कुल्चे बेचते समय सोचा नहीं लोग क्या कहेंगे?
उन्होंने किसी की परवाह नहीं की. सोचा तो केवल अपने वर्तमान और भविष्य की और निकल पड़ीं ऐसे रास्ते पर जिसके बारे में सुनकर आप को भी हैरानी होगी. उर्वशी करोड़पति हैं, उनके एक घर की कीमत ही तीन करोड़ है, एक एसयूवी है, आर्थिक रुप से संपन्न है लेकिन पति को गंभीर बीमारी हुई तो अपने पैरों पर खड़े रहने के लिए छोले-कुल्चे बेच रही हैं.

वे दिल्ली यूनिवर्सिटी से स्नातक हैं और फर्राटेदार अंग्रेजी बोलती हैं. पति बीमारी के कारण काम करने में असमर्थ हो गए, परिवार की आर्थिक स्थिति खराब होने लगी तो पेशे से टीचर उर्वशी ने अपनी जॉब छोड़ दी क्योंकि वह जानती थीं कि टीचिंग से घर की आर्थिक जरूरत पूरी नहीं हो पाएगी.
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उर्वशी खुद को एक अच्छा कुक मानती हैं इसलिए जब कुछ करने का सवाल आया तो उन्होंने छोले-कुल्चे का ठेला लगाने के बारे में सोचा. उर्वशी के सिर्फ घर की ही कीमत करीब तीन करोड़ रुपए है, लेकिन फिर भी उर्वशी का मानना है कि यह घर उनका नही उनके ससुर का है.
वह अपने अच्छे दिनों में खरीदी चीजों को बुरे वक्त में ना बेचकर खुद अपने बच्चों का भविष्य बनना चाहती है. उन्हें करोड़पति कहलाना अच्छा नही लगता. वह परिवार के लिए खुद कुछ करना चाहती थीं. उन्होंने किसी के सामने हाथ फैलाने से अच्छा खुद कुछ करना समझा.
इसके बाद उन्होंने अपने पति से बात की और फिर गुरुग्राम की एक मार्केट में 16 जून 2016 से एक ठेला लगाना शुरु कर दिया. अपने पति,ससुर और बच्चों के साथ रहने वाली उर्वशी अपनी जिम्मेदारियां बखूबी निभाती हैं.
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उनके दो बच्चें हैं. एक बेटी और एक बेटा. दोनों बच्चे गुरुग्राम के नामी स्कूल में पढ़ते हैं. बच्चों को तैयार कर स्कूल भेजती है और फिर रेहड़ी लगाकर छोले कुल्चे बेचती रहीं. नोटबंदी के कारण उनका बिजनेस थोड़ा ढ़ीला चला था पर अपनी मेहनत से वे बिजनेस को फिर पटरी पर ले आईं.
2016 में जब वुमनिया ने उर्वशी की स्टोरी प्रकाशित की थी तो उस समय उन्होंने बताया कि वे एक रेस्टोरेंट खोलना चाहती हैं. उर्वशी ने अप्रैल 2017 में अपना एक रेस्टोरंट Urvashi’s Food Joint के नाम से खोला भी मगर कई कारणों से उन्हें यह बंद करना पड़ा.

अब वे दोबारा अपने ठेले की ओर लौट आई हैं. लेकिन इस बार नगर निगम ने रोड वेंडर्स को व्यवस्थित करने के नियम के तहत उन्हें यह ठेला मुहैया कराया है. वे कहती हैं कि तक़लीफें और इम्तिहान तो हर किसी की जिंदगी में आता है, लेकिन आगे बढ़ना ही जिंदगी का दूसरा नाम है. उनका कहना है “जब तक जान में जान में जान है किसी के आगे भीख नही मांगूंगी, चाहे भूखा सोना पड़े.
वुमनिया से बातचीत में उर्वशी ने कहा कि मैं अपना घर चलाने की कोशिश कर रही हूं और उन सभी महिलाओं को यही कि जो लोग सोचते हैं आगे नहीं बढ़ सकते उन्हें आगे बढ़ना चाहिए. औरतों के अंदर बहुत हिम्मत होती है और सबके अंदर एक हुनर छिपा होता है. मेरे अंदर जो प्रतिभा छुपी थी उसे ही निखारा है, सभी औरतें ऐसा कर सकती हैं.
मां ठेले लगाकर छोले-कुल्चे बेचती हैं इस पर बच्चों का रिस्पांस कैसा है, इस बारे में वे कहती हैं-मेरे बच्चों को पता है कि कि मेरी मां हमारे लिए काम कर रही हैं. उर्वशी का कहना है कि उनका बेटा तो अभी छोटा है बेटी बड़ी है और वह कहती हैं कि मम्मी आपने हमारे लिए जीवन का आदर्श है, और बेटी जब ऐसा कहती है तो मैं ईश्वर को धन्यवाद देती हूं.
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