भारतीय आईटी कंपनियों में Women Engineers को आगे बढ़ने और तरक्की करने के कम मौके मिलते हैं. एक तरफ जहां एक पुरुष अपने करियर के छह साल में ही मैनेजर की भूमिका मिल जाती. वहीं एक महिला को इसके लिए दो साल और इंतजार करना पड़ता है. यानी एक महिला को मैनेजर बनने का मौका उन्हें अपने करियर के 8वें साल में मिलता है. इसलिए कई बार महिलाएं 8 साल बाद कोर इंजीनियरिंग का काम छोड़ देती हैं. वहीं भारतीय आईटी कंपनियों में इंजीनियरिंग वर्कफोर्स में सिर्फ 26 फीसदी महिलाएं ही काम करती हैं.
रिक्रूटमेंट फर्म बिलॉन्ग ने आईटी कंपनियों में किए एक सर्वे के आधार पर यह जानकारी दी है. सर्वे में 50 से ज्यादा कर्मचारियों वाले आईटी कंपनियों को शामिल किया गया है. सर्वे के लिए करीब आईटी कंपनियों में काम करने वाली क़रीब 3 लाख महिलाओं से बात की गई.
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सर्वे से पहले से चली आ रही यह धारणा सच साबित होती दिखती है कि कि साइंस, टेक्नोलॉजी, इंजीनियरिंग और मैथ्स (स्टेम) फील्ड में महिलाओं को मौके कम मिलते हैं. इसी धारणा की वजह से अक्सर लड़कियां इस फील्ड में आने से कतराती हैं. कुल कर्मचारियों में महिलाओं का अनुपात महज 34 फीसदी है.
बिलॉन्ग के सर्वे में एक और महत्वपूर्ण बात सामने आई है कि 45 फीसदी महिलाएं 8 साल बाद कोर इंजीनियरिंग का काम छोड़ देती हैं. इसके बाद वे मार्केटिंग, प्रोडक्ट मैनेजमेंट या कंस्लटिंग का जॉब करना पसंद है. यह बात भी पाई गई है कि आमतौर पर पांच साल के करियर के बाद महिलाएं नौकरी छोड़ने लगती हैं.
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यह देखा गया है प्रोग्रमिंग की तुलना में सॉफ्टवेयर टेस्टिंग स्किल को कमतर आंका जाता है. इसमें नौकरियों की संख्या भी कम है. इसके बावजूद प्रोग्रामिंग के मुकाबले सॉफ्टवेयर टेस्टिंग में महिलाएं ज्यादा है. 100 टेस्टिंग जॉब में औसतन 34 महिलाएं और 66 पुरुष है. प्रोग्रामिंग में 25 प्रतिशत महिलाएं तो 75 फीसदी पुरुष काम कर रहे हैं.
(साभार-दैनिक भास्कर)
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