भावना सिंह
क़ाबिल फिल्म देखकर लौटी तो मुझे वो अपने पड़ोस में रहने वाली उस लड़की की याद एक बार फिर आ गई. जब-जब प्यार-मोहब्बत की बातें होती है वो मुझे अक्सर याद आती है. आज भी आई. जो बात मैं अपने कॉलेज के दिनों में नहीं समझ पाई थी, अब जानती हूं कि सच में यदि किसी से प्यार हो जाए तो फिर सामने कुछ नहीं दिखता है. हम अक्सर सुनते हैं कि प्यार अंधा होता है, मैंने तो सच में ऐसा देखा है.
उन दिनों मैं रांची के एक कॉलेज में पढ़ती थी. एक कमरे में हम कई लड़कियां रहते थे. हमारे लॉज के बगल में कई घर थे. वहां की लड़कियों से हमारी दोस्ती हो गई थी. वहीं थी सुमन दीदी की छोटी बहन नूतन. नूतन की एक आंख पूरी तरह ख़राब थी. वह केवल एक आंखों से देख सकती थी, वह भी बेहद कम, लेकिन फिर भी क़ुदरती इस कमजोरी को उसने अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया था. पढ़ाई में होशियार थी और कक्षा में अव्वल रहती थी. वह राजनीति शास्त्र में एमएम की पढ़ाई कर रही थी.
उन्हीं दिनों सुमन दीदी की शादी हुई और नूतन का सामना उनके देवर रीतेश से हुआ. रीतेश ने न जाने नूतन में क्या देखा वह पहले दिन से ही उस पर अपनी जान न्यौछावर कर बैठा. नूतन अपनी कमजोरी जानती थी इसलिए स्कूल से लेकर कॉलेज तक में उसने अपने मन पर पूरी तरह क़ाबू रखा था. सहेलियों के साथ रहने पर मन कभी लड़कों तो कभी प्यार-मोहब्बत की बातों में भटकने लगता लेकिन वह जानती थी उसकी आंखें नहीं है यह जानकर कोई भी उसके पास फटकेगा नहीं.
जज्बाती तौर पर उसने खुद को इस बात के लिए तैयार कर लिया था वह किसी के लिए नहीं बनी. इसलिए जब रीतेश ने उसके सामने दोस्ती का हाथ बढ़ाया तो उसने सख्त लहजे में यह संदेश दे दिया कि वह दीदी की देवर से दोस्ती नहीं करेगी, लेकिन पेश से इंजीनियर रीतेश ने भी ठान लिया था कि वह नूतन को अपना बना कर रहेगा. एक दिन रीतेश ने उसके शादी का प्रस्ताव रख दिया. नूतन घबरा गई लेकिन उसे भरोसा था कि यदि वह एक बार उसे सच्चाई बता देगी तो वह मना कर देगा. नूतन ने ही उसे पूरी बात बता दी. रीतेश धैर्य से सारी बातें सुनने के बाद नूतन से कहा जो बात तुम मुझे बता रही हो वह मुझे पहले से पता है. भाभी ने सब बता दिया था.
रीतेश ने कहा मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता कि तुम्हारी आंखें है या नहीं? मुझे तुम्हारी आंखों में अपना भविष्य दिख रहा है, मना मत करो नूतन. मैं बनूंगा तुम्हारी आंखें. रीतेश ने सच्चे मन से नूतन से इतने वादे किए अब वह मना नहीं कर पाई. घरवालों की नज़रों से बचकर अब दो मन अक्सर एक-दूसरे से मिलने लगे. यह सिलसिला दो साल तक चलता रहा. हर रविवार रीतेश नूतन से मिलने आता. कभी कोई रंगीन चश्मा लेकर तो कभी रंग-बिरंगे दुपट्टे लेकर. वह सही समय की तलाश में था जिससे कि घरवालों से बात की जा सके.
नूतन की बहन को धीरे-धीरे इस बात की भनक लगने लगी थी. सबसे पहले वे ही इस रिश्ते के ख़िलाफ खड़ी हो गईं और मायके से लेकर ससुराल तक में तूफान खड़ा कर दिया. सभी घरवाले सुमन दीदी की बातों से सहमत थी, एक ऐसी लड़की जिसे आंखों से दिखाई नहीं देता उसे कैसे घर की बहू बनाया जा सकता है, लेकिन रीतेश ने भी ठान लिया था कि वह शादी करेगा तो नूतन से. अपने घरवालों के फैसले के ख़िलाफ उसने नूतन के परिवार वालों की रजामंदी लेकर उससे शादी कर ली. नूतन को ससुराल में जगह नहीं मिली, लेकिन रीतेश ने उसके साथ अलग आशियाना बना लिया था. प्यार का आशियाना.
हम लॉज की खिड़कियों से देखते थे, अक्सर नूतन अपनी मां से मिलने रीतेश के साथ बाइक से आती थी. कितनी खुश लगती थी वो. हमें पता चला की रीतेश ने उसके आंखों के ऑपरेशन के लिए कई शहरों के चक्कर भी लगा रहा था.
फिर उनकी कहानी में क्या हुआ यह पता नहीं चल पाया. रांची से मेरा रिश्ता जो छूट गया…….लेकिन ईश्वर से यही प्रार्थना है उन्हें हमेशा एक-दूसरे के साथ रखना.