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कीर्ति गुप्ता:

मधुबनी पेंटिंग बनाने में पारंगत और मशहूर कलाकार आशा झा की उंगलियां जब पेटिंग पर दौड़ती रहती है तो उन्हें देखकर आप तल्लीनता में डूब जाएंगे. हाथ में ब्रश थामकर महीन रेखाओं के जरिए जब वे पेटिंग पर वे राम-सीता कृष्ण-राधा, मछलियों और बिहार के अन्य मांगलिक चिन्हों की आकृतियां उकेरती हैं तो देखने वाले का मन पौराणिक कथाओं के संसार में उतरने लगता है क्योंकि मधुबनी पेटिंग की शैली ही ऐसी है जिसमें कई कथाएं छुपी हुई हैं.

आशा हाल में ही दिल्ली हाट में अपनी मिथिला पेंटिंग्स की कारीगरी का रंग बिखेर चुकी हैं. पिछले महीने 15 दिनों के लिए लगे दिल्ली हाट के हैडीक्राफ्ट एक्जबिशन में उन्होंने अपने बेहतरीन मधुबनी डिजाईन से पर्यटकों का मन मोह लिया. वे कुर्ता, साड़ी, रुमाल, पर्स,  चादर और दुपट्टे पर अपने हाथों से शानदार डिजाईन बनाकर उन्हें अमूल्य बना देतीं हैं. उन्होंने यह काम 1992 में सरकारी बैंक से लोन लेकर 25,000 रूपये में शुरू किया था जबकि आज इस काम को उन्होंने इतना बढ़ा लिया है कि वह 50 बेरोज़गार लड़कियों को इस कला के माध्यम से रोज़गार भी देती हैं. वे अपने परिवार के लिए अब तक 10 लाख की पूंजी भी जुटा चुकी हैं.

आशा ने यह कला अपनी मां और दादी के साथ फर्श पर रंगोलियां बना-बना कर सीखी और निपुण हो गयीं. वे कहती हैं इस पेटिंग को बनाना एक साधना का काम है. क्योंकि इसमें महीन रेखाओं के जरिए आकृति बनानी होती है. पेटिंग के लिए लाल-पीले-हरे रंग का इस्तेमाल किया जाता है. अपनी इसी कला को और निखारने के लिए के लिए वे 50 साल की उम्र में भी मिथिला यूनिवर्सिटी से मधुबनी  पेंटिंग्स में पीएचडी कर रही हैं. इसके साथ वे वर्कशॉप आयोजित करके लोगों को पेंटिंग बनाने का प्रशिक्षण भी देती हैं.

उनकी पांच बेटियां है. जिनमें से एक की शादी भी कर चुकी है और चार बेटियां अभी पढ़ रही है और इस काम में अपनी मां का हाथ बटा रहीं हैं. उनके कला की ख्याति देश-विदेश तक पहुंच चुकी है. दुबई और नेपाल में तो उनकी पेंटिंग का जादू लोगों पर इस तरह छाया कि वे आशा झा के मुरीद हो गए और अब ऑर्डर पर पेटिंग मंगाने लगे हैं. मधुबनी पेटिंग के इस कला को दूर-दूर तक फैलाने और इसके जरिए रोजगार पैदा करने के कारण वे राष्ट्रपति से सम्मान भी हो चुकीं हैं.

वुमनिया से बातचीत में आशा झा ने कहा कि शादी के कुछ दिनों बाद उन्होंने अपनी पारिवारिक जिम्मेदारियों के कारण काम करना बंद कर दिया था लेकिन बाद में वे अपने हुनर को तराशने लगी और उससे अपने पैरों पर खड़े होने की कोशिश की. वे कहती हैं कि महिलाओं को अपने अंदर छुपे हुनर को पहचानने की कोशिश करनी चाहिए जिससे वे सशक्त बन सकें.

 

 

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