अनीता मिश्रा
इन दिनों एक सामान बेचने वाली एक साईट पर बिकने वाले एक आर्टपीस की काफी चर्चा है. इस आर्ट पीस में एक ऐश ट्रे है जिसमें एक स्त्री नग्न लेटी है दोनों पैरों को फैलाए हुए है .ये कुछ इस तरह बनाया गया है कि जो इसे खरीदकर इसका इस्तेमाल करेगा वो इस आर्ट पीस की योनि में राख डाल रहा होगा. इसकी सोशल मीडिया पर जागरूक स्त्रियों की तरफ से जबरदस्त प्रतिक्रिया हुई है . उन्होंने साइट से इस प्रोडक्ट को हटाने की मांग की है ।
वहीं कुछ लोगों का ये भी कहना है कि आर्ट को आर्ट की तरह देखा जाना चाहिए . इस तरह तो सारी कलाकृतियों पर रोक लगा दी जानी चाहिए .एक बार को मान लिया ये महंगा ऐश ट्रे महज सजाने के लिए है इसको खरीदकर शायद ही कोई राख डालेगा,लेकिन है तो ये एक ऐश ट्रे ही जिसका इस्तेमाल तो यही है सिगरेट की राख झाडना . क्या एक स्त्री के शरीर के हिस्से को कलाकृति में राख डालने के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला बनाने के पीछे महज कलात्मक नजरिया है .
ऐसा नहीं है कि आर्ट में कभी न्यूड बनाये नहीं गए हैं . जाने –माने दार्शनिक और पेंटर खलील जिब्रान ने सिर्फ न्यूड ही बनाए हैं, लेकिन उनकी कोई कलाकृति पर कभी अश्लील नहीं महसूस होती है. जिब्रान ही नहीं बहुत सारे लोगों ने ऐसी पेंटिंग या मूर्तियां बनाई हैं. सारा खजुराहो ही ऐसी मूर्तियों से भरा हुआ है, लेकिन इसे अश्लील नहीं माना जाता है .
इस भेद की सबसे बड़ी वजह है नज़रिए की. स्त्री के किसी अंग की ऐश ट्रे बनाकर उसे बेचने के लिए प्रदर्शित करना और किसी चीज को कला की तरह देखना दोनों में फर्क है . ये विज्ञापन मन में जुगुप्सा जगाता है . ये विज्ञापन अपने इरादों और सन्देश में अश्लील है इसलिए इसे लेकर जो तीखी प्रतिक्रिया हो रही है स्त्रियों में बिलकुल उचित है.