Share on Facebook
Tweet on Twitter

दिनेश मानसेरा:

उत्तराखंड के जंगलों में लकड़ी चुनने जाने वाली महिलाओं को आजकल एक ही डर सताता रहता है, तेंदुओं का जो आदमखोर हो रहे हैं. वे पहाड़ों पर मासूम बच्चों, बूढ़ों और महिलाओं को अपना निशाना बना रहे हैं? उत्तराखंड में इंसान और तेंदुए के बीच एक जंग सी  छिड़ी हुई है. उत्तराखंड में लेपर्ड यानि तेंदुए इंसानों के निशाने पर है और कहीं न कहीं लैपर्ड के निशाने पर हम इंसान भी आ गए हैं. पिछले कुछ सालों में मानव और तेंदुए की लड़ाई में दोनों तरफ से जान माल का नुकसान हुआ है.

उत्तराखण्ड के पहाड़ो और तलहटियों में तेंदुए इस वक्त तेज़ी से बढ़ रहे है,  पहाड़ों में इन्हें बाघ और गुलदार भी कहा जाता है. जंगलों में रहने वाले गुलदार को बिल्ली प्रजाति का जीव माना जाता है जो कि कई मायनों में टाइगर या लायन से भी खतरनाक माना जाता है. वजह इसकी इंसानों पर हमला करने की आदत और इसकी चपलता है.देश मे तेंदुओं की आबादी करीब चौदह हज़ार है जिनमे से तकरीबन 7900 वाइल्डलाइफ रिज़र्व में पाए जाते हैं. उत्तराखण्ड में इस वक्त करीब 2 हज़ार 2 सौ से ज्यादा गुलदार है, टाइगर की तुलना में इसकी आबादी तेज़ी से बढ़ती है. उत्तराखंड के 34434 वर्ग किलोमीटर के पहाड़ भावर औऱ तराई के जंगलों में इनकी मौजूदगी दर्ज हुई है. इसके लिए मौसम के कोई मायने नही इसलिए ये हर जगह आसानी से अपना ठिकाना बना लेते हैं.

जिम कॉर्बेट पार्क के निदेशक डॉ सुरेंन्द्र मेहरा कहते है तेंदुआ या गुलदार बेहद खतरनाक जानवर है और इसके हमले से उत्तराखंड की एक बड़ी आबादी प्रभावित भी है. आदमखोर होते गुलदार इंसानों खास तौर पर छोटे बच्चों को अपना निवाला बना रहे है. इसके कारण महिलाएं काफी डरी रहती हैं.

उत्तराखण्ड में औसतन हर एक दिन छोड़कर गुलदार कहीं न कहीं इन्सानी बस्तियों पर हमले कर रहे हैं. पिछले 16 सालों में करीब 310 लोग तेंदुएं का निवाला बन चुके है. गुलदार और इंसान की इस लड़ाई में 170 से ज्यादा तेंदुओं को नरभक्षी घोषित कर उन्हें मार गिराया गया. इंसान और तेंदुए की ये लड़ाई कोई नई नहीं है. 1926 में 125 लोगों को एक ही तेंदुए ने अपना निवाला बनाया था और उसे शिकारी जिम कॉर्बेट ने मार गिराया था. तब से लेकर अब तक ये सिलसिला लगातार जारी है. इसकी वजह से तेंदुओं को कई बार इंसानों के गुस्से का शिकार होना पड़ा है. अब तो लोग इनको पकड़ने या मारने के लिए लोग खेतों किनारे करंट और जहर का भी इस्तेमाल करने लगे है.

जबसे इंसानों ने जंगल में दखल देना शुरू किया है तब से गुलदारों के हमले बढ़े हैं. जंगल मे लकड़ी, चारा लेने जाने वाली महिलाएं ज्यादातर इसका शिकार हुई हैं. तेंदुआ बाघ से भी ज्यादा खतरनाक जीव है वजह बाघ ज़मीनी हमले करता है जबकि तेंदुआ पेड़ों से ऊंची दीवार से भी हमले करता है. तेंदुए का शिकार करने में शिकारी भी कामयाब हो जारहे है क्योंकि ये अक्सर जंगल के पास के गांव में ही दिख जाते है, साथ ही इन्हें गांव के कुछ मुखबिर भी मदद करते है. उत्तराखंड के जंगल तेंदुए की शिकार का एक हब बन गया है.  रिज़र्व फॉरेस्ट के अलावा जो जंगल है वहां अंतरराष्ट्रीय वन्यजीव तस्करों की गतिविधियां तेज़ हुई है, खाल और हड्डियां पड़ोसी देश नेपाल के रास्ते चीन के बाजार में तस्करी के जरिये पहुंचाई जा रही है.वन्य जीव जंतु अधिनियम 1972 की धारा 13 के एक गुलदार या बाघ को नरभक्षी घोषित किया जा सकता है ,जब उसने तीन से अधिक लोगों को मारा हो,  लेकिन पिछले कुछ मामले ऐसे भी आए जब जन दबाव में दो लोगों की शिकार होने पर भी वन विभाग को उन्हें नरभक्षी घोषित करना पड़ा. जिम कॉर्बेट पार्क के उपनिदेशक अमित वर्मा के मुताबिक़ इंसानों पर हमले के बाद जिस तरह से लोगो का गुस्सा तेंदुए और वन विभाग को झेलना पड़ रहा है वो चिंता की बात है. गुस्से की वजह से तेंदुए को नरभक्षी घोषित करना पड़ रहा है और उसे मारना मजबूरी हो जाता है.

डब्लू डब्लू एफ के शोधार्थी शाह बिलाल का कहना है कि यदि जंगलो के किनारे रहने वाले गांवों में शौचालय बनाये जाए और लोगों को घरों में गैस कनेक्शन दिए जाएं तो लोगो का जंगल की तरफ जाना रुकेगा और इससे तेंदुआ भी हमला नहीं करेगा.

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और वाइल्डलाइफ के जानकार हैं.)

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here