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नीरज आनंद, बरेली:

पति ने मारपीट कर घर से निकाल दिया, एक मात्र बेटी की शादी विदेश में हो गई. जीने का न कोई सहारा बचा न मकसद, जिंदगी बेमायने लगने लगी थी. ऐसे में बरेली की रहने वाली मीना सोंधी की जिंदगी गहरे निराशा और अंधेरे में डूब गई. वे गहरे डिप्रेशन में जाने लगी, बात-बात पर रोतीं और अपनी जिंदगी को कोसतीं. लेकिन एक दिन किसी की सलाह पर वे खुद को डिप्रेशन से बाहर निकालने की कोशिश में लग गईं.

पार्क में जाकर अकेले योगा करने लगीं और डिप्रेशन से लड़ने लगीं. उन्हें योग करता देख पार्क में टहलने वाले और बीमारियों से ग्रस्त लोगों ने उनसे योगा सिखाने की गुजारिश की. यहीं से उन्हें जीने का मकसद हाथ लग गया और डिप्रेशन भी न जाने कहां गायब हो गया? अब वे न केवल दूसरों को जीवन जीने की कला सिखाती है. बल्कि नाउम्मीद हो चुके लोगों के दिलों में उम्मीद की किरण जगाती है. बीमारी से परेशान लोगों के लिए वे तो किसी फरिश्ते से कम नहीं है.उनकी क्लास में विभिन्न बीमारियों से परेशान लोग आते हैं.

कैंशर पीड़ित महिला भूमना बताती हैं कि मीना उन्हें घर आकर नि:शुल्क योग सिखाती हैं. उनका कहना है कि मीना सोंधी ने योग के जरिए मेरे दिल में फिर से जीने की उम्मीद जगाई है. 52  बर्षीय मीना बीएसएनल में कंप्यूटर ऑपरेटर के पद पर हैं. लेकिन हर रोज अपना कीमती वक्त निकाल कर लोगों को योग की क्लास देती हैं. वे 2012 से लगातार लोगों को योग सिखा रही हैं. वे कहती हैं अब यही मेरा कर्म है.

लोगों के बीच उनकी लोकप्रियता बढ़ने लगी तो बरेली की जिला जेल में भी योग सिखाने लगीं. योग शिविर लगाकर जेल में बंद महिला बंदियों को योग के माध्यम से जीने की कला सिखाती हैं. उन्होंने योगा के जरिए नारी निकेतन में बंद कई महिलाओं के चेहरे पर मुस्कान ला दी है. बरेली के बाल संरक्षण गृह में भी बाल कैदियों को भी योगा की क्लास देती रहती हैं. योगा सिखाने के एवज में वे जेल प्रशासन से भी कोई पैसा नहीं लेती हैं.

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