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ऐसे कैसे बेटी बचाएंगे, बेटी पढ़ाएंगे?

प्रतिभा ज्योति

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सबसे ख़ास योजनाओं में से एक ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ है, लेकिन उसे हमारे मुल्क के स्कूलों में चलाना आसान काम नहीं लगता ,क्योंकि हमारी दिमागी सोच को बदलना मुश्किल टेढ़ी खीर है. यह सोच सिर्फ़ अनपढ़ या कम पढ़े लिखे लोगों की नहीं है, बल्कि उन लोगों में भी है जिनको बेटियों को पढ़ाने की ज़िम्मेदारी मिली है, जिनके भरोसे हम बेटियों को पढ़ने के लिए स्कूल भेजते हैं. स्कूली बच्चियों में ज़्यादातर शौचालय नहीं होने की वजह से स्कूल बीच में ही छोड़ देती है, इसीलिए केन्द्र सरकार ने स्कूलों में शौचालय बनाने पर जोर दिया है. दूसरी बड़ी समस्या बच्चियों की उम्र बढ़ने के साथ पीरियड्स को लेकर है और जब स्कूली उम्र में बच्चियों को पीरियड्स शुरु होते हैं तो वे दर्द से तो परेशान होती ही हैं और किसी को कुछ बताने में शर्म भी महसूस होती है. यौन शिक्षा का अभाव और घर-परिवार का व्यवहार भी उनकी तकलीफ़ों को बढ़ाता है, लेकिन जब स्कूलों में टीचर्स भी ऐसे ही बर्ताव करें तो क्या हो सकता है?

उत्तरप्रदेश के मुजफ़्फर नगर के खतौली कस्बे के मिडिल स्कूल से आई ख़बर ने शर्मिंदगी के साथ साथ कई सवाल भी खड़े किए है. खतौली कस्बे के इस कस्तूरबा गांधी रेजीडेंशियल स्कूल में प्रिसिंपल और वार्डन ने छठी और आठवीं में पढ़ने वाली लड़कियों को एक साथ लाईन में खड़ा करके नंगा कर दिया, केवल यह पता करने के लिए कि उनमें से किसको पीरियड्स हुए हैं, क्योंकि स्कूल के बाथरूम और उसके दरवाज़े पर खून के धब्बे दिखाई दिए थे

 

इस स्कूल में ज़्यादातर गरीब परिवारों और मजदूरों की बच्चियों पढ़ती है जिनकी तादाद करीब 80 है. लड़कियां वहीं रह कर पढ़ाई करती है. मौसम बदलने की वज़ह से उस दिन वे सभी लड़कियों अपने स्कूल से मिले कंबल और स्वेटर वापस जमा करा रही थीं. प्रिंसिपल मैडम ग्राउंड फ्लोर के अपने कमरे में बैठी थी तब किसी लड़की ने आकर बताया कि बाथरूम में और उसके दरवाजे के हैंडल पर खून के निशान लगे हुए हैं तो  प्रिसिंपल मैडम नाराज़ हो गई और उन्होंनें सब लड़कियों से पूछा कि किसकी वजह से ये खून के धब्बे लगे हैं, किसको पीरियड्स हुए हैं तो किसी लड़की ने जवाब नहीं दिया .इस पर मैडम नाराज़ हो गई और भला-बुरा कहने लगी कि तुम सब बेशर्म हो …

मैडम ने फिर एक क्लासरूम में सब लड़कियों को इकट्ठा करके लाईन में खड़ा होने का आदेश दिया और दो लड़कियों को कहा कि सब लड़कियों की स्कर्ट और पेन्टीज उतार दो, कुछ लड़कियों ने ऐतराज भी किया , एक लड़की तो अड़ गई कि वह नहीं उतारेगी, लेकिन मैडम ने सबके कपड़े उतरवा कर नंगा कर दिया और चेक किया कि किसके पीरियड्स हुए हैं. इस बात का पता तो तब चला कि जब बच्चियों के पेरेंट्स टीचर्स के मोबाइल फोन पर लड़कियों से हाल-चाल पूछने के लिए बात कर रहे थे तो कुछ बच्चियों ने पूरी घटना बताई.

इस पर नाराज़ पेरेंट्स स्कूल पहुंच कर प्रदर्शन करने लगे ,फिर ज़िला प्रशासन ने जांच समिति बनाई और प्रिसिंपल को सस्पेंड कर दिया गया. प्रिसिंपल इन सब आरोपों को गलत बताती हैं और उनका कहना है कि स्कूल की कुछ टीचर्स ने उनके ख़िलाफ़ साज़िश रच कर यह सब कहा है क्योंकि वे प्रशासनिक मामलों में सख़्त रवैया अपनाती है जिससे टीचर्स परेशान रहती हैं.

बात में कितनी सच्चाई है और असल में कौन दोषी है, इसकी जानकारी तो जांच पूरी होने के बाद ही होगी, लेकिन यह सच है कि समाज के तौर पर भी हममें बच्चियों को लेकर संवेदनशीलता की कमी हर जगह दिखाई देती है तो ऐसे में कैसे आगे बढ़ेंगी लड़कियां?

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